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मेकेदातु परियोजना:कावेरी नदी

  • 29 May 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण, कावेरी वन्यजीव अभयारण्य, सर्वोच्च न्यायालय,मेकेदातु परियोजना, कावेरी एवं उसकी सहायक नदियाँ  

मेन्स के लिये:

मेकेदातु परियोजना के संदर्भ में  कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण एवं सर्वोच्य न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का महत्त्व, कावेरी जल विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक सरकार ने  राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा संयुक्त समिति गठित करने के निर्णय को चुनौती देने का फैसला किया है।

  • यह संयुक्त समिति मेकेदातु में अनधिकृत निर्माण गतिविधि के आरोपों की जांँच करेगी, जहांँ कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी नदी पर एक बांँध बनाने का प्रस्ताव किया गया था।

Mekedatu

प्रमुख बिंदु: 

मेकेदातु परियोजना:

  • इस परियोजना की कुल लागत 9,000 करोड़ रुपए है जिसका उद्देश्य बंगलूरु शहर के लिये पीने के पानी का भंडारण और आपूर्ति करना है। परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट (मेगावाट) बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव है।
  • वर्ष 2017 में सर्वप्रथम कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा इसे अनुमोदित किया गया था।
  • परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट को पहले ही जल संसाधन मंत्रालय (Ministry of Water Resources) से मंज़ूरी मिल मिल चुकी है तथा अब इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) से मंज़ूरी मिलना शेष है।
    • MoEFCC का अनुमोदन प्राप्त होना इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे कावेरी वन्यजीव अभयारण्य (Cauvery Wildlife Sanctuary) का 63% वन क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा।
  • वर्ष 2018 में, तमिलनाडु राज्य द्वारा परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में अपील की गई, हालांँकि कर्नाटक द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया था यह परियोजना तमिलनाडु में जल के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेगी।
  • जून 2020 में, कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (Cauvery Water Management Authority) की बैठक के दौरान, तमिलनाडु ने परियोजना को लेकर पुनः अपना विरोध व्यक्त किया।

तमिलनाडु द्वारा विरोध के कारण:

  • तमिलनाडु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने तक ऊपरी तट (Upper Riparian) पर प्रस्तावित किसी भी परियोजना का विरोध करता है।
  • कर्नाटक को इस मामले में निचले तटवर्ती राज्य यानी तमिलनाडु की सहमति के बिना अंतरराज्यीय नदी पर कोई जलाशय बनाने का कोई अधिकार नहीं है।
    • यह परियोजना कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (Cauvery Water Disputes Tribunal-CWDT) के उस अंतिम निर्णय के विरुद्ध है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कोई भी राज्य विशेष स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है या अन्य राज्यों को अंतरराज्यीय नदियों के जल  से वंचित करने का अधिकार नहीं रखता है।
  • CWDT और SC ने पाया है कि कावेरी बेसिन में उपलब्ध मौजूदा भंडारण सुविधाएंँ जल भंडारण और वितरण हेतु  पर्याप्त थीं, इसलिये कर्नाटक का प्रस्ताव प्रथम दृष्टि में सीधे तौर पर खारिज कर दिया जाना चाहिये।

कावेरी नदी विवाद

Karnataka

कावेरी नदी (कावेरी):

  • तमिल भाषा में इसे 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस नदी को दक्षिण की गंगा (Ganga of the south) भी कहा जाता है और यह दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
  • यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाटों में स्थित ब्रह्मगिरी पहाड़ी से होता है तथा यह कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है और एक शृंखला बनाती हुई पूर्वी घाटों में उतरती है इसके बाद पांडिचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी, भवानी, हरंगी आदि इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं।

विवाद:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • चूँकि इस नदी का उद्गम कर्नाटक से होता है और केरल से आने वाली प्रमुख सहायक नदियों के साथ यह तमिलनाडु से होकर बहती है तथा पांडिचेरी से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इसलिये इस विवाद में 3 राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश शामिल हैं।
    • इस विवाद का इतिहास लगभग 150 साल पुराना है तथा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के बीच वर्ष 1892 एवं वर्ष 1924 में हुए दो समझौते भी इससे जुड़े हुए हैं।
    • इन समझौतों में इस सिद्धांत को शामिल किया गया था कि ऊपरी तटवर्ती राज्य को किसी भी निर्माण गतिविधि ( उदाहरण के लिये कावेरी नदी पर जलाशय) के लिये निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • हालिया विकास:
    • वर्ष 1974 से, कर्नाटक ने अपने चार नए बने जलाशयों में तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी को मोड़ना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप विवाद उत्पन्न हुआ।
    • इस मामले को सुलझाने के लिये, वर्ष 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण  (Cauvery Water Disputes Tribunal- CWDT) की स्थापना की गई थी। सामान्य वर्षा की स्थिति में कावेरी नदी के जल को 4 तटवर्ती राज्यों के बीच किस प्रकार साझा किया जाना चाहिये इस संदर्भ में  अंतिम आदेश (2007) तक पहुँचने में न्यायाधिकरण को 17 वर्षों का समय  लगा।
    • न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया कि संकट के वर्षों में जल साझाकरण हेतु आनुपातिक आधार का उपयोग किया जाना चाहिये। सरकार ने पुनः 6 वर्ष का समय लिया और वर्ष 2013 में आदेश को अधिसूचित किया
    • इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जिसके तहत कर्नाटक को तमिलनाडु के लिये 12000 क्यूसेक जल छोड़ने का निर्देश दिया गया था। इस निर्देश के बाद राज्य में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ।
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय वर्ष 2018 में आया जिसमें न्यायालय ने कावेरी नदी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और CWDT द्वारा जल-बंटवारे हेतु अंतिम रूप से की गई व्यवस्था को बरकरार रखा तथा कर्नाटक से तमिलनाडु को किये जाने वाले जल के आवंटन को भी कम कर दिया।
      • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, कर्नाटक को 284.75 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट (tmcft), तमिलनाडु को 404.25 tmcft, केरल को 30 tmcft और पुदुचेरी को 7 tmcft जल प्राप्त होगा।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को कावेरी प्रबंधन योजना (Cauvery Management Scheme) को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' अधिसूचित की, जिसके तहत 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' (Cauvery Water Management Authority- CWMA) और 'कावेरी जल विनियमन समिति' (Cauvery Water Regulation Committee) का गठन किया गया।

आगे की राह:

  • राज्यों को क्षेत्रीय दृष्टिकोण को त्यागने की ज़रूरत है क्योंकि समस्या का समाधान सहयोग और समन्वय में निहित है न कि संघर्ष में। स्थायी एवं पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य समाधान के लिये बेसिन स्तर पर योजना तैयार की जानी चाहिये।
  • दीर्घावधि में वनीकरण, रिवर लिंकिंग आदि के माध्यम से नदी का पुनर्भरण किये जाने और जल के दक्षतापूर्ण उपयोग (जैसे- सूक्ष्म सिंचाई आदि) को बढ़ावा देने के साथ-साथ जल के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु लोगों को जागरूक करने तथा जल स्मार्ट रणनीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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