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भारतीय अर्थव्यवस्था

15वें वित्त आयोग की भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ बैठक

  • 09 May 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन श्री एन.के. सिंह ने मुंबई में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नरों के साथ बैठक की जिसमें कुछ प्रमुख मामलों पर विस्तार से चर्चा की गई। गौरतलब है कि वित्त आयोग बैंकों, वित्तीय संस्थानों और अर्थशास्त्रियों के साथ भी बैठकें आयोजित करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • चर्चा में शामिल कुछ प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-
  • बैठक में ‘संबंधित राज्य सरकारों के लिये राज्य वित्त आयोगों के गठन की आवश्यकता’ के साथ ही ‘सार्वजनिक क्षेत्र हेतु वित्तीय ऋण की आवश्यकता’ पर भी चर्चा की गई।
  • वित्त आयोग की निरंतरता (Continuity of the Finance Commission) राज्यों के वित्तीय प्रबंधन के लिये आवश्यक है, विशेषकर वर्तमान स्थिति में जब मध्यावधि समीक्षा नहीं हुई है क्योंकि पहले यह समीक्षा योजना आयोग के द्वारा की जाती थी।
  • परिव्यय संहिता (Expenditure Codes) की आवश्यकता, क्योंकि परिव्यय कानून राज्य-दर-राज्य परिवर्तित होते हैं।
  • विकास और महँगाई दर में राज्यों की भूमिका, उदाहरण के लिये व्यापार सुगमता (Ease of doing Business) के संबंध में राज्यों की भूमिका।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्त आयोग को वर्ष 2019-20 के लिये राज्य सरकार वित्त (State Government Finances) विषय पर विस्तृत जानकारी दी। इसके प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-
  • सरकारी वित्त की संरचना में बदलाव के कारण अर्थव्यवस्था में राज्यों की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण हुई है।
  • 2019-20 के बजट अनुमानों (Budgeted Estimate) में राज्यों का वित्तीय घाटा निम्न स्तर पर रहने की बात कही गई थी परंतु संशोधित अनुमान (Revised Estimate) और वास्तविक स्थिति भिन्न है।
  • कुछ विशिष्ट कारकों से वित्तीय असंतलुन की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे कारकों में ‘उदय’ (UDAY) और कृषि कर्ज़ माफी तथा आय समर्थन योजना आदि शामिल हैं।
  • ब्याज अदायगी प्रक्रिया को उदार बनाए जाने के बावजूद जीडीपी की तुलना में ऋण प्रतिशत बढ़ रहा है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने राज्य सरकारों द्वारा बाज़ार से ऋण प्राप्त करने की चुनौतियों के मामले में भी जानकारी दी। इसके प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • सीएसएफ/जीआरएफ कोष को मज़बूत करना और कोष को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन।
  • नकद प्रबंधन- राज्यों द्वारा नकद क्षमता को बेहतर बनाना और अल्प अवधि के ऋणों के लिये बेहतर अवसरों के निर्माण का अनुरोध।
  • प्रकटीकरण- महत्त्वपूर्ण आँकड़ों, बजट तथा वित्तीय आँकड़ों को सामने रखना।

15वाँ वित्त आयोग (Finance Commission-FC)

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी प्रदान की।
  • 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2020-25 तक होगा। अभी तक 14 वित्त आयोगों का गठन किया जा चुका है।
  • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2019-20 तक के लिये वैध हैं।
  • ध्यातव्य है कि 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष के.सी. नियोगी थे।
  • श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्य सभा के सदस्य भी रह चुके हैं।

वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों?

  • भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति एवं कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
  • राज्य विधायिका को अधिकार है कि वह स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकती है।  
  • केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
  • स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को  निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्रों में लोकहित को ध्यान में रखें। हालाँकि इन सभी कारणों की वज़ह से कभी-कभी राज्यों का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
  • इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ होते हैं।
  • इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग द्वारा राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा तय करने की सिफारिश की गई है।

स्रोत- पीआइबी

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