पवन ऊर्जा परियोजना हेतु पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन | 01 Sep 2017
चर्चा में क्यों ?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने आंध्र प्रदेश में 40 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना को केवल प्रवासी पक्षियों पर किये गए अध्ययन के आधार पर मंज़ूरी देते हुए कहा है कि पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पर्यावरण प्रभाव के आकलन की आवश्यकता नहीं है।
प्रमुख घटनाक्रम
- समिति ने यह सिफारिश पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन्य जीव विभाग द्वारा पर्यावरण प्रभाव के आकलन की आवश्यकता की वकालत करने के बावजूद भी की है।
- अन्य विशेषज्ञ सदस्यों के आपत्ति के बावजूद भी वन सलाहकार समिति द्वारा ऐसा पहली बार नहीं किया गया है। इससे पहले भी जून 2017 में समिति ने गुजरात के कच्छ में प्रवासी पक्षियों एवं चमगादड़ों के जोखिम के बावजूद भी 400 मेगावाट क्षमता के एक पवन ऊर्जा परियोजना को मंज़ूरी दी थी।
- वर्तमान परियोजना के लिये आंध्र प्रदेश के रामागिरी क्षेत्र में 55.73 हेक्टेयर वन भूमि को लिया जाना है।
- इस परियोजना को अनुमति के लिये सबसे पहले फरवरी 2012 में वन सलाहकार समिति के पास भेजा गया था।
- तब समिति ने वहाँ सभी प्रकार के पक्षियों पर इस परियोजना के प्रभाव का आकलन करने तथा प्रभाव को कम करने एवं दूर करने के लिये सुझाव मांगे थे।
- परन्तु इन चार वर्षो में समिति द्वारा सुझाए गए कोई भी विशेषज्ञ निकाय ने इस पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।
- अंत में, दिसंबर 2016 में वन सलाहकार समिति ने इस विषय पर आंध्र प्रदेश के कृष्णादेवराय विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन पर विचार किया तथा इसके एक सदस्य को इसकी समीक्षा करने को कहा। उस सदस्य ने इस अध्ययन को मानक से कम बताया था।
- मार्च 2017 में वन सलाहकार समिति ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वन्य जीव विभाग को इस अध्ययन की जाँच करने को कहा। वन्य जीव विभाग ने इसे सलीम अली पक्षी विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र से करवाने का सुझाव दिया।
- परन्तु समिति वन्य जीव विभाग की राय से सहमत नहीं हुआ और इस तरह पवन ऊर्जा के लिये वन्य जीव विभाग द्वारा सुझाए गए पर्यावरण प्रभाव के आकलन की आवश्यकता से इंकार कर दिया।
- समिति ने इस पर अपनी सैधांतिक मंज़ूरी दे दी है। अब इस पर अंतिम निर्णय वन मंत्रालय को देना होगा। मंत्रालय ने शायद ही कभी समिति की सिफारिशों को अस्वीकार किया हो।