मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय | 05 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्तुत किया गया। इसके मुताबिक, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना केंद्र सरकार की प्रमुख प्राथमिकता है।
सरकार द्वारा इसके लिये कई कदम उठाए हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- जमाखोरी और कालाबाज़ारी के खिलाफ कार्रवाई करने, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और कम आपूर्ति वाली वस्तुओं की कालाबाज़ारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु अनुरूप अधिनियम, 1980 को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु ज़रूरत पड़ने पर समय-समय पर राज्य सरकारों को परामर्शिकाएँ जारी की जा रही हैं।
- कीमत और उपलब्धता की स्थिति के आकलन के लिये नियमित तौर पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकें की जा रही हैं। ये बैठकें सचिवों की समिति, अंतर-मंत्रालय समिति, कीमत स्थिरीकरण निधि प्रबंधक समिति और अन्य विभागीय स्तर पर की जाती है।
- उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये खाद्य पदार्थों के अधिकतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की गई। इसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों उपलब्धता बढ़ाना भी है, जिससे कीमतों को कम रखने में मदद मिलेगी।
- दालों, प्याज आदि कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिये कीमत स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) योजना लागू की जा रही है।
- खुदरा कीमतों को बढ़ने से रोकने के प्रयासों के तहत सरकार ने दालों के सुरक्षित भंडार (बफर स्टॉक) को 1.5 लाख मी. टन से बढ़ाकर 20 लाख मी. टन करने का अनुमोदन किया है। इस क्रम में 20 लाख टन तक दालों का सुरक्षित भंडार तैयार किया गया है।
- राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित करने, मध्याह्न भोजन योजना आदि के लिये सुरक्षित भंडार से दालें दी जा रही हैं।
- इसके अलावा सेना और केंद्रीय अर्द्ध सैन्य बलों की दाल की ज़रूरत को पूरा करने के लिये भी सुरक्षित भंडार से दालों का उपयोग किया जा रहा है।
- सरकार द्वारा अप्रैल 2018 तक चीनी के स्टॉकिस्टों/डीलरों पर स्टॉक होल्डिंग की सीमा तय कर दी गई है।
- सरकार द्वारा उपलब्धता को बढ़ावा देने और कीमतों को कम बनाए रखने के लिये चीनी के निर्यात पर 20% शुल्क लगाया गया।
- शून्य सीमा शुल्क पर 5 लाख टन कच्ची चीनी के आयात को अनुमति दी गई है। इसके बाद 25% शुल्क पर 3 लाख टन अतिरिक्त आयात की अनुमति प्रदान की गई है।
- साख पत्र पर सभी प्रकार के प्याज के निर्यात की अनुमति दी जाएगी, जो 31 दिसंबर, 2017 तक 850 डॉलर प्रति मी. टन न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) से संबद्ध होगा।
- राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को प्याज पर भंडारण सीमा लगाने की सलाह दी गई है।
- राज्यों से अपनी प्याज की ज़रूरत की सूचना देने का अनुरोध किया गया, जिससे उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों में कमी लाने के लिये आवश्यक आयात की दिशा में कदम उठाए जा सकें।
निवेश एवं बचत संबंधी मुख्य बिंदु
- जीडीपी और घरेलू बचत का अनुपात वर्ष 2003 के 29.2% से बढ़कर वर्ष 2007 में 38.3% के सर्वोच्च स्तर पर पहुँच गया। हालाँकि, इसके बाद यह अनुपात वर्ष 2016 में घटकर 29% के स्तर पर आ गया।
- वर्ष 2007 और वर्ष 2016 की अवधि में संचयी कमी बचत की तुलना में निवेश की दृष्टि से हल्की रही है, लेकिन निवेश घटकर निचले स्तर पर आ गया है।
- वर्ष 2015-16 तक के लिये उपलब्ध निवेश और बचत के विस्तृत विवरण से पता चलता है कि वर्ष 2007-08 और वर्ष 2015-16 की अवधि में कुल निवेश में दर्ज की गई 6.3% की कमी में 5% हिस्सेदारी निजी निवेश की रही है।
- वर्ष 1997 के बाद एशियाई देशों में ही सबसे अधिक बार आर्थिक सुस्ती आई है। वर्तमान में (वर्ष 2008 के बाद से) इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं में बचत के संबंध में सुस्ती का दौर देखा गया है।
- भारत में निवेश में सुस्ती की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई थी, जो बाद में और तेज़ हो गई। यह दौर वर्ष 2016 तक कायम रहा।
- चूंकि बचत में सुस्ती की तुलना में निवेश में सुस्ती या कमी विकास की दृष्टि से ज्यादा हानिकारक होती है, इसलिये अल्प अवधि में नीतिगत प्राथमिकताओं के तहत निवेश में नई जान फूंकने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- इसके तहत काले धन को बाहर निकालने के प्रयासों के साथ-साथ सोने को वित्तीय बचत में तब्दील करने को प्रोत्साहित कर बचत राशि जुटाई जा रही है। कुल घरेलू बचत में वित्तीय बचत, जो बाज़ार प्रपत्रों में बढ़ती रुचि से स्पष्ट होती है, की हिस्सेदारी पहले से ही बढ़ रही ह जिसमें विमुद्रीकरण से काफी सहायता प्राप्त हुई है।
- निवेश और बचत में सुस्ती या कमी के रुख के संबंध में किये गए अध्ययन से जानकारी प्राप्त होती है कि निवेश में कमी से विकास पर काफी प्रभाव पड़ता है, जबकि बचत के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है।
- नीतिगत निष्कर्षों से यही स्पष्ट होता है कि निवेश में नई जान डालने हेतु तत्काल रूप से प्रयास किये जाने चाहिये, ताकि विकास पर और अधिक दीर्घकालिक असर न हो। इस समस्या को मद्देनज़र रखते हुए सरकार ने एनपीए की समस्या को सुलझाने और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु ध्यान केंद्रित करना आरंभ किया है।
मुद्रास्फीति क्या है?
- मुद्रास्फीति (Inflation) जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं।
- अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2 से 3% की मुद्रास्फीति की दर अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होती है।
- मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांग कारक और मूल्य वृद्धि कारक से। मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में मंदी आ जाती है।
- मुद्रास्फीति का मापन तीन प्रकार से किया जाता है:- थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एवं राष्ट्रीय आय विचलन विधि से।
अपस्फीति क्या है?
- अपस्फीति, मुद्रास्फीति की उलट स्थिति है। दरअसल, यह कीमतों में लगातार गिरावट आने की स्थिति है। जब मुद्रास्फीति दर शून्य फीसदी से भी नीचे चली जाती है, तब अपस्फीति की परिस्थितियाँ बनती है।
- अपस्फीति के माहौल में उत्पादों और सेवाओं के मूल्य में लगातार गिरावट होती है।
- लगातार कम होती कीमतों को देखते हुए उपभोक्ता इस उम्मीद से खरीदारी और उपभोग के फैसले टालता रहता है कि कीमतों में और गिरावट आएगी।
- ऐसे में समूची आर्थिक गतिविधियाँ विरामावस्था में चली जाती हैं। मांग में कमी आने पर निवेश में भी गिरावट देखी जाती है।
- अपस्फीति का एक और साइड इफेक्ट बेरोज़गारी बढ़ने के रूप में सामने आता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर काफी घट जाता है। ऐसे में रोज़गार की कमी मांग को और कम कर देती है, जिससे अपस्फीति को और तेज़ी मिलती है।