भौतिकवाद | 25 Nov 2023
प्रिलिम्स के लिये:भौतिकवाद, लोकायत, चार्वाक, भौतिकवाद, और जड़वाद, अस्तित्व की भौतिक प्रकृति, डेमोक्रिटस और एपिकुरस का परमाणुवाद मेन्स के लिये:भौतिकवाद, भारत और विश्व के नैतिक विचारकों और दार्शनिकों का योगदान |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भौतिकवाद, जो प्राचीन उत्पत्ति से जुड़ा है, एक सुसंगत ढाँचा प्रदान करता है जो अस्तित्व के आधार के रूप में पदार्थ पर केंद्रित है।
भौतिकवाद क्या है?
- परिचय:
- भौतिकवाद का दावा है कि सारा अस्तित्व (Existence) पदार्थ से उत्पन्न होता है और मूल रूप से पदार्थ से बना है।
- यह गैर-भौतिक संस्थाओं के अस्तित्व का खंडन करता है, अन्य सभी घटनाओं, यहाँ तक कि बुद्धि को अंतर्निहित प्राकृतिक कानूनों का पालन करते हुए पदार्थ के परिवर्तन या उत्पाद के रूप में मानता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ:
- भौतिकवाद की जड़ें दुनिया भर के प्राचीन दर्शनों में हैं। भारत में इसे अन्य नामों के अलावा लोकायत (Lokāyata), चार्वाक (Chárváka), भौतिकवाद (Bhautikvad) और जड़वाद (Jadavāda) में अभिव्यक्ति मिली।
- लोकायत, जिसका अर्थ है लोगों का दर्शन, सांसारिकता और सहज भौतिकवाद पर ज़ोर देता है। लोकायत के प्रणेता बृहस्पति, अजिता और जाबालि जैसे दार्शनिक थे।
- चार्वाक सुखवाद पर प्रकाश डालता है, यह विश्वास कि आनंद जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ है।
- भौतिकवाद अस्तित्व की भौतिक या भौतिक प्रकृति पर केंद्रित है।
- जड़वाद अस्तित्व की भौतिक जड़ों की तलाश करने के भौतिकवादियों के झुकाव को दर्शाता है।
- प्रारंभिक यूनानी दार्शनिकों ने भी विशेष रूप से डेमोक्रिटस और एपिकुरस के परमाणुवाद के माध्यम से ब्रह्मांड के लिये भौतिकवादी स्पष्टीकरण का अनुसरण किया।
- विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न नाम भौतिकवादी दर्शन को दर्शाते हैं।
- भौतिकवाद की जड़ें दुनिया भर के प्राचीन दर्शनों में हैं। भारत में इसे अन्य नामों के अलावा लोकायत (Lokāyata), चार्वाक (Chárváka), भौतिकवाद (Bhautikvad) और जड़वाद (Jadavāda) में अभिव्यक्ति मिली।
- विचार का विकास:
- प्राचीन भौतिकवादियों ने चार शास्त्रीय तत्त्वों (महाभूतों) पर विचार किया तथा 'स्वभाव' अथवा स्व-निर्माण के माध्यम से वास्तविकता की विविधता को समझाया।
- चार मूलभूत तत्त्व अग्नि (Fire), अप् (Water), वायु (Wind) तथा पृथ्वी (Earth) माने गए।
- उन्होंने दैवीय विधान को अस्वीकार कर दिया तथा एकल दृश्यमान/प्रत्यक्ष वास्तविकता से परे किसी भी संसार के अस्तित्व से इनकार किया, जिसका अर्थ है कि वे घटनाओं या ब्रह्मांड की नियति को निर्देशित करने वाली उच्च शक्ति में विश्वास नहीं करते थे।
- उन्होंने एकमात्र वास्तविकता के रूप में अनुभवजन्य वास्तविकता के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए प्रत्यक्ष रूप से अवलोकित अथवा अनुभव किये जा सकने वाले संसार से परे किसी भी अन्य संसार के अस्तित्व को खारिज़ किया।
- प्राचीन भौतिकवादियों ने चार शास्त्रीय तत्त्वों (महाभूतों) पर विचार किया तथा 'स्वभाव' अथवा स्व-निर्माण के माध्यम से वास्तविकता की विविधता को समझाया।
- भौतिकवाद की नैतिकता:
- कथित तौर पर भोगी जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिये भौतिकवाद की नैतिकता को आलोचना का सामना करना पड़ा, जैसा कि संस्कृत की उक्ति "यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्" में परिलक्षित होता है, जिसका अर्थ है "जब तक आप जीवित हैं, सुख से जिएँ"।
- भौतिकवाद ने किसी भी सदाचार अथवा नैतिक सिद्धांतों को स्वीकार नहीं किया जो धार्मिक अथवा आध्यात्मिक सिद्धांतों से प्राप्त हुए थे।
- भौतिकवाद ने नैतिकता के अस्तित्व से इनकार नहीं किया अपितु तर्क दिया कि नैतिकता मानवीय तर्क तथा अनुभव पर आधारित होनी चाहिये एवं नैतिकता का लक्ष्य स्वयं व दूसरों के लिये आनंद को अधिकतम करना एवं पीड़ा को कम करना होना चाहिये।
भौतिकवाद का दार्शनिक महत्त्व क्या है?
- भौतिकवाद एक व्यापक विश्व दृष्टिकोण प्रदान करता है जो अनुभवजन्य अवलोकन और अस्तित्व को नियंत्रित करने वाले प्राकृतिक कानूनों पर ज़ोर देता है।
- यह धार्मिक हठधर्मिता को चुनौती देता है और मूर्त, अवलोकन योग्य घटनाओं के आधार पर वास्तविकता की आलोचनात्मक विश्लेषण को प्रोत्साहित करता है।
- इसने सामाजिक मानदंडों और परंपराओं को चुनौती देते हुए विचार की स्वतंत्रता का समर्थन किया।
- समय के साथ प्रमुख दर्शन में बदलाव के बावजूद भौतिकवादी विचार कायम हैं और समकालीन वैज्ञानिक जाँच को आकार दे रहे हैं, विशेषकर वास्तविकता की मौलिक प्रकृति को समझने में।
- इसका प्रभाव संस्कृतियों और युगों तक फैला हुआ है, जो ब्रह्मांड की तर्कसंगत खोज को प्रोत्साहित करता है और अनुभवजन्य अवलोकन तथा समझ के पक्ष में अलौकिक व्याख्याओं को खारिज़ करता है।