भारतीय विरासत और संस्कृति
भारत में मार्शल आर्ट के रूप
- 13 Jun 2022
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प्रिलिम्स के लिये:भारत में मार्शल आर्ट। मेन्स के लिये:भारतीय विरासत और संस्कृति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कश्मीर में एक मौलवी ने थांग-टा, (एक मार्शल लॉ) प्रथा को बचाने के लिये कदम उठाया। थांग टा एक मार्शल आर्ट तकनीक है जो मणिपुर राज्य में अत्यधिक प्रचलित है।
भारत में विभिन्न मार्शल आर्ट रूप
थांग टा – मणिपुर:
- ह्यूएन लैंगलॉन मणिपुर की एक भारतीय मार्शल आर्ट है।
- मैतेई भाषा में, ह्यूएन का अर्थ युद्ध है जबकि लैंगलॉन या लैंगलोंग का अर्थ जाल, ज्ञान या कला होता है।
- ह्यूएन लैंगलॉन में दो मुख्य घटक होते हैं:
- थांग-टा (सशस्त्र युद्ध)
- सरित सरक (निहत्थे युद्ध)
- ह्यूएन लैंगलॉन के प्राथमिक हथियार थांग (तलवार) और टा (भाला) हैं। अन्य हथियारों में ढाल और कुल्हाड़ी शामिल हैं।
लाठी खेला - पश्चिम बंगाल:
- लाठी लड़ने के लिये तथा भारत में मार्शल आर्ट में इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्राचीन लकड़ी का हथियार है।
- पंजाब और बंगाल राज्य में मार्शल आर्ट में लाठी या छड़ी का उपयोग किया जाता है।
- लाठी खेल में अपनी उपयोगिता के लिये विशेष रूप से भारतीय गाँवों में लोकप्रिय है।
- एक अभ्यासी को लाठियाल के रूप में जाना जाता है।
गतका – पंजाब:
- गतका एक पारंपरिक मार्शल आर्ट रूप है जो सिख गुरुओं से जुड़ा हुआ है।
- यह तलवार और लाठी लड़ने के कौशल और आत्म-नियंत्रण को आत्मसात करता है।
- माना जाता है कि गतका की उत्पत्ति तब हुई थी जब 6वें सिख गुरु हरगोबिंद ने मुगल काल के दौरान आत्मरक्षा के लिये 'कृपाण' को अपनाया था।
- दो या दो से अधिक अभ्यासियों के बीच लड़ाई की एक शैली गतका घातक शास्त्र विद्या का टोंड-डाउन संस्करण है। गतका में शास्त्री विद्या की तेज़ तलवारों की जगह लकड़ी के डंडे (सोती) और ढाल ने ले ली है।
- इसे युद्ध तकनीक माना जाता है।
- 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सभी को आत्मरक्षा के लिये हथियारों का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया था।
- यह पहले गुरुद्वारों, नगर कीर्तन और अखाड़ों तक ही सीमित था, लेकिन अब यह वर्ष 2008 में गतका फेडरेशन ऑफ इंडिया (GFI) के गठन के बाद खेल श्रेणी में शामिल है।
- आज इसका उपयोग आत्मरक्षा और युद्ध कौशल दिखाने के लिये किया जाता है और यह सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के लिये खुला है।
कलारीपयट्टू - केरल
- कलारीपयट्टू मानव शरीर के प्राचीन ज्ञान पर आधारित एक मार्शल आर्ट है।
- इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान केरल में हुई थी। यह अब केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
- जिस स्थान पर इस मार्शल आर्ट का अभ्यास किया जाता है उसे 'कलारी' कहा जाता है। यह एक मलयालम शब्द है जो एक प्रकार के व्यायामशाला को दर्शाता है। कलारी का शाब्दिक अर्थ है 'खलिहान' या 'युद्धक्षेत्र'। कलारी शब्द सबसे पहले तमिल संगम साहित्य में युद्ध के मैदान और युद्ध क्षेत्र दोनों का वर्णन करता है।
- इसे अस्तित्व में सबसे पुरानी युद्ध प्रणालियों में से एक माना जाता है।
- इसे आधुनिक कुंग-फू का जनक भी माना जाता है।
मल्लखंब- मध्य प्रदेश
- मल्लखंब एक पारंपरिक खेल है, जिसकी उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप में हुई हैै। इसमें एक जिमनास्ट एक ऊर्ध्वाधर स्थिर या लटकते लकड़ी के खंभे, बेंत या रस्सी से लटककर योग या जिमनास्टिक आसन और कुश्ती की क्रियाओं का प्रदर्शित करता है।
- मल्लखंब नाम मल्ला शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है पहलवान और खम्ब, जिसका अर्थ है पोल। शाब्दिक अर्थ "कुश्ती पोल", यह शब्द पहलवानों द्वारा उपयोग किये जाने वाले पारंपरिक प्रशिक्षण कार्यान्वयन को संदर्भित करता है।
- मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इस खेल के आकर्षण के केंद्र रहे हैं।
सिलंबम - तमिलनाडु:
- सिलंबम (Silambam) एक मार्शल आर्ट है जिसमे हथियारों के उपयोग की अनुमति होती है। यह तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है।
- सिलंबम में हथियारों की एक विस्तृत शृंखला का उपयोग किया जाता है।
- सिलंबम कला में सांप, बाघ और चील जैसे जानवरों की गति शामिल है। फुटवर्क्स का उपयोग इन कला रूपों की एक बहुत ही प्रमुख विशेषता है।
- भगवान मुरुगा (भगवान शिव के पुत्र, जिन्हें कार्तिकेय भी कहा जाता है) और ऋषि अगस्त्य द्वारा इस मार्शल आर्ट शैली का निर्माण किया गया।
मुष्टि युद्ध- वाराणसी:
- यह मूल रूप से लड़ने की एक निहत्थे (बिना हथियारों के) लड़ने की तकनीक है।
- मार्शल आर्ट की यह तकनीक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर की है।
- इस मार्शल आर्ट में हाथ, पैर, घुटने और कोहनी का प्रयोग बहुत प्रमुख है।
- मार्शल आर्ट की यह तकनीकी सिखाती है कि हथियारों और गोला-बारूद के इस्तेमाल के बिना खुद को कैसे बचाया जाए।
- मार्शल आर्ट की इस तकनीक में पूर्ण शारीरिक और मानसिक समन्वय की आवश्यकता होती है।
काठी सामू - आंध्र प्रदेश:
- काठी सामू (Kathi Samu) आंध्र प्रदेश की एक बहुत प्रसिद्ध प्राचीन मार्शल आर्ट है।
- मार्शल आर्ट की इस तकनीक में विभिन्न प्रकार की तलवारों का प्रयोग प्रचलित है।
- 'गरदी' उस स्थान को दिया गया नाम है, जहाँ काठी सामू का आयोजन किया जाता है।
- कोठी सामू में, छड़ी की लड़ाई जिसे 'वैरी' के नाम से जाना जाता है, तलवार की लड़ाई के अग्रगामी के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- तलवार कौशल के अन्य आवश्यक घटकों में 'गरेजा' शामिल है, जिसमें एक व्यक्ति चार तलवारें रखता है (प्रत्येक हाथ में दो)।
स्काय – कश्मीर:
- स्काय एक मार्शल आर्ट है जो कश्मीर से संबंधित है।
- यह एक तरह की तलवारबाजी है।
- सशस्त्र वर्ग द्वारा एक घुमावदार एकधारी तलवार और एक ढाल का उपयोग किया जाता है।
- सशस्त्र वर्ग प्रत्येक हाथ में एक तलवार का उपयोग कर सकता है।
- पैर, घूँसे, ताले और चॉप का प्रयोग निहत्थी तकनीक के दौरान प्रयोग किये जाते हैं।
- स्काय में विभिन्न दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है। ‘सिंगल’ और ‘डबल’ तलवारों के लिये फ्रीहैंड और तलवार दोनों तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
पाइका अखाड़ा– ओडिशा:
- पैका अखाड़ा जिसे पाइका अखाड़ा भी कहा जाता है, "योद्धा विद्वान" हेतु एक ओडिया नाम है।
- इसका उपयोग ओडिशा में एक किसान मिलिशिया प्रशिक्षण स्कूल के रूप में किसानों को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु किया गया था।
- इसका उपयोग पारंपरिक शारीरिक व्यायाम को करने के लिये किया जाता है।
- इस प्रदर्शन कला में लयबद्ध हावभाव और ढोल की थाप के साथ तालमेल बिठाने वाले हथियारों का उपयोग किया जाता है।