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वैवाहिक बलात्कार की वैधानिकता पर दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी

  • 18 Sep 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक जीवन को लेकर महत्त्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि शादी का मतलब यह नहीं कि कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिये हमेशा राज़ी हो और अपना शरीर पति को सौंप दे| साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ज़रूरी नहीं कि बलात्कार के लिये बल प्रयोग ही किया जाए यह किसी भी तरह का दबाव बनाकर किया जा सकता है|

प्रमुख बिंदु 

  • कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की एक खंडपीठ का यह निर्णय तब आया जब पुरुषों के समूह द्वारा संचालित एक गैर-सरकारी संगठन ने तर्क दिया कि विवाहित महिलाओं को अपने पतियों द्वारा यौन हिंसा के खिलाफ कानून के तहत पर्याप्त सुरक्षा दी गई है।
  • एनजीओ ने दावा किया कि यौन उत्पीड़न में  बल प्रयोग या भय उत्पन्न करना अपराध के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं| खंडपीठ ने कहा, "बलात्कार, बलात्कार होता है, क्या ऐसा है कि आप विवाहित हैं, तो यह ठीक है लेकिन यदि आप नहीं हैं, तो यह बलात्कार है?
  • अदालत ने कहा, आईपीसी की धारा 375 के तहत इसे अपवाद क्यों होना चाहिये? बल प्रयोग बलात्कार के लिये एक पूर्व शर्त नहीं है।
  • धारा 375 के अपवाद में कहा गया है कि एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी जिसकी उम्र 15 साल से कम नहीं है के साथ, संबंध बनाना बलात्कार नहीं है|
  • न्यायालय ने कहा, इन दिनों बलात्कार की परिभाषा बदल गई है| पति के द्वारा बलात्कार में यह ज़रूरी नहीं है कि इसके लिये बल प्रयोग किया जाए| यह आर्थिक ज़रुरत, बच्चों और घर की अन्य ज़रूरतों के नाम पर दबाव बनाकर भी किया जा सकता है|
  • यदि महिला ऐसे आरोप लगाकर अपने पति के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करती है तो क्या होगा?

धारा 375 की वैधानिकता को चुनौती 

  • अदालत वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है  जिसका विरोध एनजीओ, मेन कल्याण ट्रस्ट द्वारा किया गया है जिसने दावा किया है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना बलात्कार नहीं है और यह "असंवैधानिक भी नहीं है" इसे ख़ारिज करने से अन्यायपूर्ण स्थिति पैदा होगी।
  • मेन वेलफेयर ट्रस्ट, एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन एसोसिएशन तथा एक वैवाहिक बलात्कार पीड़ित द्वारा दायर याचिकाओं का विरोध कर रहा है, जिसने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) की संवैधानिकता को चुनौती दी है और कहा है कि यह पतियों द्वारा विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को प्रदर्शित करता है| 
  • खंडपीठ ने ट्रस्ट के उन प्रतिनिधियों के समक्ष  विभिन्न प्रश्न उठाए, जिन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया था और पूछा कि क्या उनका कहना है कि पति  अपनी पत्नी पर संबंध के लिये दबाव डाल सकता है? इसके जवाब में एनजीओ ने  नकारात्मक जवाब दिया| घरेलू हिंसा कानून, विवाहित महिला को घरेलू हिंसा,  अप्राकृतिक संबंध तथा यौन उत्पीड़न के विरुद्ध पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।
  • हालाँकि, पतियों को ऐसी कोई सुरक्षा नहीं दी जाती है क्योंकि भारत में कानून लिंग विशिष्ट है| 
  • वहीं, केंद्र ने भी मुख्य याचिकाओं का विरोध किया है कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक कृत्य नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने के लिये एक आसान साधन बन सकती है।

इस बारे में और अधिक जानकारी के लिये इन लिंक्स पर क्लिक करें:

धारा 375 का अपवाद (2) असंवैधानिक करार
पत्नी के साथ यौनाचार, बलात्कार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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