भारतीय समाज
भारत में वैवाहिक बलात्कार
- 29 Dec 2022
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:वैवाहिक बलात्कार, IPC की धारा 375, न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति मेन्स के लिये:वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण, IPC की धारा 375 न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
दुनिया के 185 देशों में से, 77 देशों में ऐसे कानून हैं जो स्पष्ट रूप से वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखते हैं, जबकि 34 देश ऐसे हैं जो स्पष्ट रूप से वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर मानते हैं या संक्षेप में कहें तो, अपनी पत्नी की सहमति के विरुद्ध यौन अत्याचार करने वाले पति को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं।
- भारत उन 34 देशों में से एक है, जिन्होंने वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है
वैवाहिक बलात्कार पर भारतीय कानून:
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 375:
- भारतीय दंड संहिता की धारा 375 उन कृत्यों को परिभाषित करती है जो एक पुरुष द्वारा किये बलात्कार को परिभाषित करते हैं।
- हालाँकि यह प्रावधान दो अपवादों को भी निर्धारित करता है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपराधमुक्त करने के अलावा यह उल्लेख करता है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं या हस्तक्षेप को बलात्कार नहीं माना जाएगा।
- धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि "किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य, यदि पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है"।
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005:
- यह ‘लिव-इन’ या विवाह संबंध में किसी भी प्रकार के यौन शोषण द्वारा वैवाहिक बलात्कार का संकेत देता है।
- हालाँकि यह केवल नागरिक उपचार प्रदान करता है। भारत में वैवाहिक बलात्कार पीड़ितों के लिये अपराधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का कोई तरीका नहीं है।
भारत में वैवाहिक बलात्कार कानून का इतिहास:
- न्यायपालिका:
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005:
- दिल्ली उच्च न्यायालय वर्ष 2015 से इस मामले में दलीलें सुन रहा है।
- जनवरी 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने छूट को चुनौती देने वाले व्यक्तियों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
- मई 2022 तक वे एक विवादास्पद द्विपक्षीय फैसले पर पहुँचे थे। एक न्यायाधीश वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक घोषित करने के पक्ष में था क्योंकि यह किसी महिला की सहमति के अधिकार का उल्लंघन करता है, जबकि दूसरा न्यायाधीश यह कहते हुए कि विवाह में "आवश्यक रूप से" सहमति होती है, इसके खिलाफ था।
- फिर यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुँचा।
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005:
- सर्वोच्च न्यायालय:
- सितंबर 2022 में वैवाहिक स्थिति की परवाह किये बिना महिलाओं के सुरक्षित गर्भपात के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के उद्देश्यों के लिये बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया जाना चाहिये।
- भारत का विधि आयोग:
- यौन हिंसा पर भारत के कानूनों में सुधार के कई प्रस्तावों पर विचार करते हुए वर्ष 2000 में भारत के विधि आयोग द्वारा वैवाहिक बलात्कार अपवाद को हटाने की आवश्यकता को खारिज़ कर दिया गया था।
- न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति:
- वर्ष 2012 में न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति को भारत के बलात्कार कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव पेश करने का काम सौंपा गया था।
- जबकि इसकी कुछ सिफारिशों ने वर्ष 2013 में पारित आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम को आकार देने में मदद की, वैवाहिक बलात्कार सहित कुछ अन्य सुझावों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
- संसद:
- इस मामले को संसद में भी उठाया गया है।
- वर्ष 2015 में एक संसद सत्र में सवाल किये जाने पर वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने के विचार को इस दृष्टिकोण से खारिज़ कर दिया गया था कि "वैवाहिक बलात्कार को देश में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि विवाह को भारतीय समाज में एक संस्कार या पवित्र माना जाता है"।
- सरकार का पक्ष:
- केंद्र सरकार ने शुरू में बलात्कार अपवाद का बचाव किया लेकिन बाद में अपना पक्ष बदल दिया और न्यायालय को बताया कि सरकार कानून की समीक्षा कर रही है, यह भी कि "इस मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है"।
- दिल्ली सरकार ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद को बरकरार रखने के पक्ष में तर्क दिया।
- सरकार की दलीलें पुरुषों को पत्नियों द्वारा कानून के संभावित दुरुपयोग से बचाने से लेकर शादी की संस्थात्मक व्यवस्था की रक्षा संबंधी तत्त्वों की व्याख्या करती हैं।
वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने से संबंधित मुद्दे:
- महिलाओं के मूल अधिकारों के खिलाफ:
- वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा व लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।
- यह महिलाओं को अपने शरीर से संबंधित निर्णय लेने से दूर करता है और उन्हें एक साधन के रूप में प्रस्तुत करता है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा व लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।
- न्यायिक प्रणाली की निराशाजनक स्थिति:
- भारत में वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अभियोजन की कम दर के कुछ कारणों में शामिल हैं:
- सामाजिक अनुकूलन और कानूनी जागरूकता के अभाव के कारण अपराधों की कम रिपोर्टिंग।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंँकड़ों के संग्रह का गलत तरीका।
- न्याय की लंबी प्रक्रिया/स्वीकार्य प्रमाण की कमी के कारण न्यायालय के बाहर समझौता।
- भारत में वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अभियोजन की कम दर के कुछ कारणों में शामिल हैं:
वैवाहिक बलात्कार अपवाद और भारतीय दंड संहिता (IPC):
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन:
- 1860 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में IPC को लागू किया गया था।
- नियमों के पहले संस्करण के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद 10 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं पर लागू था, जिसे 1940 में बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया गया था।
- 1847 का लॉर्ड मैकाले का मसौदा:
- जनवरी 2022 में न्याय मित्र (Amicus Curiae) द्वारा यह तर्क दिया गया कि IPC औपनिवेशिक युग के भारत में स्थापित प्रथम विधि आयोग के अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले के 1847 के मसौदे पर आधारित है।
- मसौदे ने बिना किसी आयु सीमा के वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
- यह प्रावधान एक सदी पुराना विचार है जिसका तात्पर्य विवाहित महिलाओं की सहमति से है और जो पति के वैवाहिक अधिकारों की रक्षा करता है।
- सहमति का विचार 1736 में तत्कालीन ब्रिटिश मुख्य न्यायाधीश मैथ्यू हेल द्वारा दिये गए ‘हेल सिद्धांत’ से प्रेरित है।
- इसमें कहा गया है कि पति बलात्कार का दोषी नहीं हो सकता है क्योंकि "आपसी वैवाहिक सहमति और अनुबंध द्वारा पत्नी ने पति के समक्ष अपने-आप को समर्पित कर दिया है"।
- पति-आश्रय का सिद्धांत:
- पति-आश्रय के सिद्धांत के अनुसार, शादी के बाद एक महिला की कोई व्यक्तिगत कानूनी पहचान नहीं होती है।
- विशेष रूप से पति-आश्रय के सिद्धांत के विषय पर सुनवाई के दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में व्यभिचार को अपराध घोषित कर दिया था।
- यह माना गया कि धारा 497, जो कि व्यभिचार को अपराध के रूप में वर्गीकृत करती है, पति-आश्रय के सिद्धांत पर आधारित है।
- यह सिद्धांत, संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है जो यह मानता है कि एक महिला शादी के साथ ही अपनी पहचान और कानूनी अधिकार खो देती है, परंतु यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
वैश्विक स्तर पर वैवाहिक बलात्कार की स्थिति:
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र ने देशों से कानूनों में व्याप्त खामियों को दूर करके वैवाहिक बलात्कार को समाप्त करने का आग्रह करते हुए कहा है कि "घर महिलाओं के लिये सबसे खतरनाक जगहों में से एक है"।
- वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने वाले देश:
- संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 1993 में अमेरिका के सभी 50 राज्यों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया गया था, लेकिन कानून अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं।
- यूनाइटेड किंगडम: ब्रिटेन में भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया गया है और दोषी पाए जाने वालों को आजीवन कारावास की सज़ा हो सकती है।
- दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 1993 से वैवाहिक बलात्कार अवैध है।
- कनाडा: कनाडा में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने वाले देश:
- घाना, भारत, इंडोनेशिया, जॉर्डन, लेसोथो, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, श्रीलंका और तंजानिया स्पष्ट रूप से किसी महिला या लड़की के साथ उसके पति द्वारा किये गए वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हैं।
आगे की राह
- भारतीय कानून अब पति और पत्नी को अलग एवं स्वतंत्र कानूनी पहचान प्रदान करता है तथा आधुनिक युग में न्यायशास्त्र स्पष्ट रूप से महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित है।
- इसलिये यह सही समय है कि विधायिका को इस कानूनी दुर्बलता का संज्ञान लेना चाहिये और IPC की धारा 375 (अपवाद 2) को समाप्त करके वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार कानूनों के दायरे में लाना चाहिये।
- ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो सीमाओं को स्पष्ट करते हैं कि हम एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं और व्यवहार में उनके सीमित उपयोग के बारे में अप्रिय सामाजिक वास्तविकताओं के साथ समानता, गरिमा एवं शारीरिक स्वायत्तता के संवैधानिक विचारों को बनाए रखते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के खिलाफ यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरूद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाएँ। (Mains-2014) |