वैवाहिक बलात्कार को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता | 31 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया है कि वैवाहिक बलात्कार को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से यह वैवाहिक संस्था यानि  पति-पत्नी के संबंधों में अस्थिरता पैदा कर सकता है और पतियों को परेशान करने वाला एक आसान उपकरण भी बन सकता है। 

प्रमुख बिंदु 

  • उल्लेखनीय है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने की माँग करने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (विवाहित महिला को उसके पति और ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित करना) के बढ़ते दुरूपयोग पर टिप्पणी कर चुके हैं। 

धारा 375 

  • सरकार भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (offence of rape) को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित करने के लिये विभिन्न याचिकाओं की मांग का जवाब दे रही थी कि यह विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा यौन प्रताड़ना के विरुद्ध पक्षपात है। 
  • इस मामले में याचिकाकर्त्ताओं की दलील थी कि विवाह को ऐसे नहीं देखा जा सकता कि यह अपनी मर्ज़ी से पतियों को ज़बरन संबंध बनाने का अधिकार दे देता है। 
  • उन्होंने कहा कि वैवाहिक संबंधों को पति को सज़ा से मुक्ति के साथ अपनी पत्नी का ज़बरन बलात्कार करने का लाइसेंस दिये जाने के तौर पर नहीं देखा जा सकता।
  • एक विवाहित महिला को एक अविवाहित महिला की तरह ही अपने शरीर पर पूरे नियंत्रण का समान अधिकार है। इस संदर्भ में विदेशों के विभिन्न फैसलों का भी हवाला दिया गया।   

पश्चिमी देशों का अनुकरण नहीं 

  • इस बारे में केंद्र का कहना था कि बहुत सारे पश्चिमी देशों में वैवाहिक बलात्कार अपराध है लेकिन ज़रूरी नहीं कि भारत में भी आँख बंद कर इसका पालन किया जाए। 
  • वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से पहले भारत की विभिन्न समस्याओं जैसे साक्षरता का स्तर, महिलाओं की आर्थिक स्थिति, गरीबी आदि के बारे में भी विचार करना चाहिये।