विनिर्मित रेत | 28 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

कोल इंडिया लिमिटेड (CIL), विनिर्मित रेत, ओपनकास्ट कोयला खनन, लघु खनिज, खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम 1957, सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016, लूनी नदी, कोसी नदी।

मेन्स के लिये:

विनिर्मित रेत (M-Sand) के लाभ, भारत में रेत खनन से संबंधित मुद्दे, भारत में खनन गतिविधियों का विनियमन।

चर्चा में क्यों?  

रेत की कमी की समस्या के अपने अभिनव समाधान के लिये कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) सुर्खियों में है। विनिर्मित रेत (M-Sand) के उत्पादन के लिये यह कंपनी पत्थरों के महीन कण, कोयला खदानों के अधिभार/ ओवरबर्डन (OB) से प्राप्त रेत और ओपनकास्ट कोयला खनन के दौरान हटाई गई मृदा का उपयोग कर रही है।

  • यह न केवल अपशिष्ट पदार्थों का पुनरुपयोग करता है बल्कि प्राकृतिक रेत खनन की आवश्यकता को भी कम करता है और कंपनी के लिये अतिरिक्त राजस्व का स्रोत निर्मित करता है।

विनिर्मित रेत (M-सैंड) के लाभ:  

  • लागत-प्रभावशीलता: प्राकृतिक रेत के उपयोग की तुलना में विनिर्मित रेत का उपयोग करना अधिक सस्ता हो सकता है, क्योंकि इसे कम लागत पर बड़ी मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है।
  • स्थिरता: निर्मित रेत आकार में एक समान दानेदार हो सकती है, जो उन निर्माण परियोजनाओं हेतु लाभदायक हो है जिनके लिये एक विशिष्ट प्रकार के रेत की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरणीय लाभ: विनिर्मित रेत का उपयोग प्राकृतिक रेत के खनन की आवश्यकता को कम कर सकता है। प्राकृतिक रेत के खनन के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं। 
    • इसके अलावा कोयले की खदानों से ओवरबर्डन का उपयोग करने से उन सामग्रियों का पुन: उपयोग करने में मदद मिल सकती है जिन्हें अन्यथा अपशिष्ट माना जाता है। 
  • कम पानी की खपत: निर्मित रेत का उपयोग निर्माण परियोजनाओं के लिये आवश्यक पानी की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है, क्योंकि इसे उपयोग करने से पहले धोने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अन्य लाभ: वाणिज्यिक उपयोग के अलावा उत्पादित रेत का उपयोग भूमिगत खानों में किया जाएगा जो सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ाता है। 
    • इसके अलावा नदियों से कम रेत निष्कर्षण चैनल बेड और किनारों के कटाव को कम करेगा तथा जल आवास की रक्षा करेगा

भारत में रेत खनन की स्थिति:  

  • परिचय:  
    • खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत रेत को "गौण खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है और गौण खनिजों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है। 
    • नदियाँ और तटीय क्षेत्र रेत के मुख्य स्रोत हैं, और देश में निर्माण तथा बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण हाल के वर्षों में इसकी मांग में काफी वृद्धि हुई है।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने वैज्ञानिक रेत खनन तथा पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये "सतत् रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016" जारी किये हैं। 
  • भारत में रेत खनन से संबंधित मुद्दे: 
    • पर्यावरण क्षरण: रेत खनन से आवास और पारिस्थितिक तंत्र का विनाश हो सकता है, साथ ही नदी के किनारों और तटीय क्षेत्रों का क्षरण भी हो सकता है। 
    • जल की कमी: रेत खनन के कारण जल स्तर में कमी आ सकती है और पीने तथा सिंचाई के लिये जल की उपलब्धता की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये राजस्थान में रेत खनन से लूनी नदी के जल स्तर में गिरावट आई है, जिस कारण आस-पास के गाँवों की पेयजल आपूर्ति काफी प्रभावित हुई है।
    • बाढ़: अत्यधिक रेत खनन से नदी के तल उथले हो सकते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।  
      • उदाहरण के लिये बिहार राज्य में रेत खनन के कारण कोसी नदी में बाढ़ आने की समस्या बनी रहती है, जिससे फसलों और संपत्ति की क्षति होती है।
    • भ्रष्टाचार: रेत खनन अत्यधिक लाभदायक गतिविधि है और खनन पट्टों के आवंटन तथा विनियमों के प्रवर्तन में भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के कई उदाहरण सामने आते ही रहते हैं। 

आगे की राह

  • सतत् खनन पद्धतियाँ: पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने वाले वैज्ञानिक तरीकों और उपकरणों का उपयोग करके पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तरीके से रेत खनन किया जा सकता है।  
    • इसमें ड्रेजिंग (नदी, नहर आदि के तल पर जमा कीचड़ को विशेष मशीन से साफ करने की प्रक्रिया) और खनन तकनीकों का उपयोग शामिल किया जा सकता है जो नदी तल को प्रभावित नहीं करते हैं या फिर नदी की रेत के विकल्प के रूप में निर्मित रेत का उपयोग भी एक अच्छा कदम हो सकता है।
  • नियमन और प्रवर्तन: सरकार कानून के माध्यम से रेत खनन को विनियमित कर सकती है और अवैध खनन के लिये सख्त दंड लागू अथवा प्रावधान  कर सकती है।  
    • इसमें एक नियामक निकाय का गठन भी शामिल किया जा सकता है जो खनन गतिविधियों पर नज़र रखे और कानूनों तथा विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करे। 
  • सामुदायिक भागीदारी: रेत खनन से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल किया जा सकता है, जो उनकी चिंताओं को दूर करने में मदद कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। 
  • अभिनव समाधान: रेत खनन से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु सरकार अभिनव समाधान तलाश सकती है।
    • उदाहरण के लिये अवैध खनन का पता लगाने और रोकने हेतु खनन गतिविधियों की निगरानी के लिये ड्रोन एवं सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित खनिजों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. बेंटोनाइट  
  2. क्रोमाइट 
  3. कानाइट  
  4. सिलिमेनाइट

भारत में उपर्युक्त में से किसे आधिकारिक रूप से प्रमुख खनिजों के रूप में नामित किया गया है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

Q. तटीय रेत खनन, चाहे कानूनी हो या अवैध, हमारे पर्यावरण के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है। विशिष्ट उदाहरण देते हुए भारतीय तटों पर रेत खनन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.