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क्लिनिकल ट्रायल के परिणाम जारी करना अनिवार्य

  • 24 Nov 2017
  • 5 min read

संदर्भ
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने क्लिनिकल परीक्षण के लिये भारत में पंजीकृत कंपनियों और संगठनों के लिये परीक्षण के परिणामों को जारी करना अनिवार्य कर दिया है।

अब इन कंपनियों को क्लिनिकल परीक्षण समाप्त होने के एक वर्ष के अंदर परीक्षण के परिणामों की जानकारी उजागर करनी होगी। 

यह निर्णय क्यों लिया गया?

  • अभी भारत में क्लिनिकल ट्रायल ‘Clinical Trial Registry-India’ (CTRI) में पंजीकृत होते हैं। जून 2017 में CTRI में 3318 पंजीकरण भविष्य में निर्मित होने वाली दवाओं के ट्रायल के लिये और 5604 पंजीकरण निर्मित हो चुकी दवाओं के ट्रायल के लिये पंजीकृत किये गए। 
  • इसका अर्थ यह है कि कंपनियों ने मरीज़ों से करार करने के बाद परीक्षण से संबंधित जानकारी जमा की।
  • ICMR की प्रमुख डॉ.सौम्या स्वामीनाथन का कहना है कि हमें क्लिनिकल ट्रायल के नकारात्मक परिणामों बारे में बहुत कम सुनने को मिलता है। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी 60% से कम क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों को उजागर किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि ट्रायल के नकारात्मक परिणामों को छिपाने के प्रयास किये जाते हैं।

इससे पहले 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नए ट्रायल-आवेदनों पर रोक लगा दी थी क्योंकि कई रिपोर्टों के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल के लिये पंजीकृत होने वाले लोगों की मृत्यु के मामले बढ़ गए थे। 

इसके लिये न्यायालय ने सरकार से एक ऐसी कारगर व्यवस्था बनाने के लिये कहा था, जिसके अंतर्गत परीक्षण से प्रभावित होने वाले लोगों के लिये मुआवज़ा दिया जाना सुनिश्चित किया जा सके और ऐसा कोई ऑडियो-विज़ुअल प्रमाण हो जिससे यह साबित हो सके कि ट्रायल में भाग लेने वाला व्यक्ति ट्रायल के लिये सहमत है। 

क्लिनिकल ट्रायल क्या होते हैं ?

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  • क्लिनिकल ट्रायल (नैदानिक परीक्षण) ऐसे शोध या अध्ययन को कहते हैं, जिनका उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि कोई चिकित्सकीय प्रणाली, दवा या कोई चिकित्सकीय उपकरण मनुष्य के लिये सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं। 
  • ये शोध अध्ययन यह भी बता सकते हैं कि किसी रोग या लोगों के समुदाय विशेष के लिये कौन-सी चिकित्सकीय पद्धति उपयुक्त रहेगी।
  • इन शोधों का उद्देश्य अनुसंधान है, अतः इनके लिये सख्त वैज्ञानिक मानकों का पालन किया जाता है।
  • ऐसे परीक्षणों की शुरुआत आमतौर पर एक नए विचार या प्रयोग से होती है और उसके आशाजनक पाए जाने पर परीक्षण पशु पर किया जाता है। 
  • पशु पर क्लिनिकल परीक्षण का उद्देश्य यह जानना होता है कि कोई दवा या चिकित्सा पद्धति जीवित शरीर पर क्या प्रभाव छोड़ती है या वह हानिकारक तो नहीं है।
  • हालाँकि जो परीक्षण प्रयोगशाला में अथवा जानवरों पर सकारात्मक परिणाम देते हैं, यह ज़रूरी नहीं है कि वे मनुष्यों पर भी वही परिणाम दें। अतः इनका मनुष्यों पर भी परीक्षण आवश्यक है।
  • पशुओं और मनुष्यों पर किये जाने वाले क्लिनिकल परीक्षणों को लेकर पूरे विश्व में विवाद जारी है।
  • इन परीक्षणों की अपारदर्शिता और कंपनियों की मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति तथा संवेदनशीलता की कमी के चलते आज क्लिनिकल परीक्षण विवादित मुद्दा बन गया है।
  • पशु-अधिकार संगठन PETA पशुओं पर और कई मानवाधिकार संगठन मनुष्यों पर क्लिनिकल ट्रायल का लगातार विरोध करते आ रहे हैं।
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