सतत् पशुधन खेती हेतु तापीय दबाव का प्रबंधन | 20 Apr 2023

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् पशुधन खेती, तापीय दबाव/थर्मल स्ट्रेस , पशुधन क्षेत्र, डेयरी, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, AHIDF

मेन्स के लिये:

सतत् पशुधन खेती

चर्चा में क्यों?

केरल में तापीय दबाव सतत् पशुधन खेती हेतु एक गंभीर खतरा बन गया है।

  • केरल में 95% से अधिक मवेशी देशी किस्मों की तुलना में कम तापीय सहनशक्ति वाले संकर नस्ल के हैं। केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (Kerala Veterinary and Animal Sciences University- KVASU) ने तापीय दबाव से निपटने हेतु जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मवेशियों का चयन करने के लिये एक परियोजना शुरू की है।

तापीय दबाव और पशुधन पर इसका प्रभाव: 

  • परिचय: 
    • तापीय दबाव जानवरों के शारीरिक और चयापचय प्रतिक्रियाओं को संदर्भित करता है जो सामान्य सीमा से अधिक तापमान पर प्रभावी होता है।
    • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब जानवर का शरीर अपने सामान्य आंतरिक तापमान को बनाए रखने में असमर्थ होता है और इसके परिणामस्वरूप जानवर के स्वास्थ्य एवं उसकी उत्पादकता पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
  • कारण: 
    • तापीय दबाव के कई कारक हो सकते हैं, जैसे- परिवेश का उच्च तापमान, आर्द्रता, सौर विकिरण और उचित वेंटिलेशन या शीतलन तंत्र की कमी।
      • पशुपालन के संदर्भ में यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि इसके गंभीर आर्थिक और पशु कल्याण संबंधी परिणाम हो सकते हैं।
  • तापीय दबाव का प्रभाव: 
    • उत्पादकता में कमी: उच्च स्तर के तापीय दबाव से दुग्ध उत्पादन में गिरावट, चारे की कमी और पशुओं के वज़न में कमी आने जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इससे किसानों की उत्पादकता और आय में कमी आ सकती है।
    • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: यह पशुओं में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें श्वसन संबंधी समस्या, हीट स्ट्रोक और निर्जलीकरण शामिल हैं।
      • इससे बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि, प्रतिरक्षा में कमी आने के साथ-साथ उम्र भी प्रभावित हो सकती है।
    • आर्थिक नुकसान: पशुधन किसानों को तापीय दबाव और इससे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य समस्याओं तथा उच्च मृत्यु दर के कारण आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
      • तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये किसानों को अपने पशुओं को पंखे अथवा स्प्रिंकलर जैसे शीतलन तंत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु अतिरिक्त लागत का भर भी उठाना पड़ सकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये पशुओं को शीतलता प्रदान करने के लिये जल के अत्यधिक उपयोग जैसी अस्थिर प्रथाओं का सहारा लेना पड़ सकता है जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

पशुओं को तापीय दबाव से बचाने के उपाय: 

  • प्रजनन प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव के दौरान गायें गंभीर गर्मी के लक्षण कम प्रदर्शित करती हैं, इसलिये इन लक्षणों का अच्छे से पता लगाने के लिये एक बेहतर ताप पहचान कार्यक्रम की आवश्यकता है।
    • हमेशा यह सलाह दी जाती है कि प्रजनन हेतु बैलों का उपयोग में किये जाने के बजाय कृत्रिम गर्भाधान का इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि प्राकृतिक प्रजनन प्रक्रिया में बैल और गाय दोनों ही तापीय दबाव के कारण बाँझपन का शिकार हो सकते हैं।
  • शीतलन प्रणाली:  
    • पानी के छिड़काव की सुविधा के साथ ही पंखे लगाए जा सकते हैं लेकिन पानी के अत्यधिक छिड़काव से बचना चाहिये क्योंकि इससे ज़मीन अधिक गीली हो सकती है और पशुओं को मास्टिटिस तथा अन्य बीमारियों का खतरा हो सकता है। पशुशाला में हवा का बाधा मुक्त प्रवाह होना चाहिये।
  • आहार प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव वाले पशुओं में प्रजनन और उत्पादक प्रदर्शन कम होने का खतरा अधिक होता है। 
    • उच्च गुणवत्ता वाला चारा और संतुलित आहार प्रदान किये जाने से तापीय दबाव के प्रभाव कुछ कम हो सकते हैं और पशु प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है।  
  • ऊष्मा सहिष्णु पशुओं का चयन:  
    • गर्मी की सहनशीलता के लिये विशिष्ट आणविक आनुवंशिक मार्करों के आधार पर पशुओं का आनुवंशिक चयन गर्मी सहने वाले पशुओं की पहचान करके मवेशियों और भैंसों में गर्मी के तनाव को कम करने के लिये वरदान हो सकता है।

भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल: 

  • वर्ष 2014-15 से 2020-21 (स्थिर मूल्यों पर) के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा और कुल कृषि GVA  (सकल मूल्य वर्द्धित) में इसका योगदान वर्ष 2014-15 के 24.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1 प्रतिशत रहा।
  • भारत में डेयरी क्षेत्र कृषि में सबसे बड़ा है। यह क्षेत्र  राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत के योगदान के साथ 80 मिलियन डेयरी किसानों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार देता है।

पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल:

आगे की राह  

  • सतत् पशुधन खेती को बढ़ावा देने में एक बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल है जिसमें उचित पशु कल्याण प्रथाओं को लागू करना, टिकाऊ उत्पादन विधियों को अपनाना, अपशिष्ट और उत्सर्जन को कम करना, स्थानीय एवं क्षेत्रीय बाज़ारों को बढ़ावा देना तथा किसानों के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम सुनिश्चित करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कृषि मृदा पर्यावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ती है।
  2. मवेशी अमोनिया को पर्यावरण में छोड़ते हैं।
  3. पोल्ट्री उद्योग प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन यौगिकों को पर्यावरण में छोड़ता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 2  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार और आय प्रदान करने के लिये पशुधन पालन की बड़ी संभावना है। भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु उपयुक्त उपाय सुझाने पर चर्चा कीजिये। (2015) 

स्रोत: द हिंदू