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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मलेरिया के टीके का मानव पर परीक्षण

  • 08 Jul 2017
  • 4 min read

संदर्भ
भारत में मलेरिया का टीका विकसित करने के लिये इंसानों में पहली बार परीक्षण  चलाने की व्यवहार्यता पर चर्चा करने के लिये  भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) इस साल नवंबर में 'नैतिकता बैठक' करने पर विचार कर रहा है।

प्रमुख बिंदु 

  • अब तक किसी भी टीके का परीक्षण  आमतौर पर चूहों और जानवरों के शरीर पर किया जाता है और सुरक्षित पाए जाने पर ही उसे मानव के शरीर पर जाँच किया जाता है ।
  • इस बैठक में दो टीका उम्मीदवारों - जो कि फाल्सीपेरम मलेरिया और हल्के-से-अधिक प्रचलित विवॅक्स का कारण बनता है- का परीक्षण  किया जाएगा। 
  • इस टीके को नई दिल्ली स्थित अंतर्राष्ट्रीय जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी केंद्र ने विकसित किया है।
  • पारंपरिक परीक्षण तरीके में उम्मीदों के मुताबिक नतीजे नहीं आने के कारण समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। इसके अलावा मानव में दवा की खुराक अथवा रोग के फैलने के तरीके में भी कई बार अंतर देखा गया है।
  • दूसरी बात, परीक्षण  के लिये परजीवी को उतनी ही मात्रा में शरीर में प्रवेश कराया जा सकता है, जिनको उपलब्ध औषधियाँ से ठीक किया जा सके। इसके लिये स्वस्थ शरीर वाले मानव स्वयंसेवकों की आवश्यकता होती है।
  • यद्यपि इस तरह के दृष्टिकोण को नियोजित करने की योजना तीन साल पहले हुई थी, लेकिन यह अभी तक पूरी नहीं हुई है। एक अनुमान के अनुसार एक वैक्सीन को विकसित करने की औसत लागत 3000 से 6000 करोड़ रुपए पड़ती है।

मलेरिया के लक्षण

  • मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जो परजीवी रोगाणु के कारण होती है। ये रोगाणु इतने छोटे होते हैं कि हम इन्हें देख नहीं सकते। 
  • मलेरिया के लक्षण हैं बुखार, कंपन, पसीना आना, सिरदर्द, शरीर में दर्द, जी मचलना और उल्टी होना। कभी-कभी इसके लक्षण हर 48 से 72 घंटे में दोबारा दिखाई देते हैं।
  • यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्‍ति को किस परजीवी से मलेरिया हुआ है और वह कब से बीमार है। 

मलेरिया कैसे फैलता है?

  • मलेरिया एक  परजीवी रोगाणु से होता है, जिसे प्लास्मोडियम कहते हैं। ये रोगाणु एनोफेलिज़ जाति के मादा मच्छर में होते हैं और जब यह किसी व्यक्‍ति को काटती है, तो उसके रक्त की नली में मलेरिया के रोगाणु फैल जाते हैं।
  • ये रोगाणु व्यक्‍ति के कलेजे की कोशिकाओं तक पहुँचते हैं और वहाँ इनकी गिनती बढ़ती है। जब कलेजे की कोशिका फटती है, तो ये रोगाणु व्यक्‍ति की लाल रक्‍त कोशिकाओं पर हमला करते हैं। वहाँ भी इनकी गिनती बढ़ती है।
  • जब लाल रक्‍त कोशिका फटती है, तो रोगाणु दूसरी लाल रक्‍त कोशिकाओं पर हमला करते हैं।
  • इस तरह रोगाणुओं का लाल रक्‍त कोशिकाओं पर हमला करने और कोशिकाओं के फटने का सिलसिला जारी रहता है। जब भी लाल रक्‍त कोशिका फटती है, तो व्यक्‍ति में मलेरिया के लक्षण नज़र आते हैं।
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