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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मलेरिया की दवा से ज़ीका वायरस से बचाव

  • 18 Jul 2017
  • 6 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि अमेरिका के सेंट लुइस में स्थित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के अनुसार, सामान्यतः मलेरिया के लिये उपयोग में लाई जाने वाली दवा ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन’ (hydroxychloroquine) ज़ीका वायरस को गर्भनाल के माध्यम से भ्रूण तक पहुँचने से रोक देती है, जिससे भ्रूण के मस्तिष्क पर कोई  नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है| 

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, इस दवा को गर्भवती महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किये जाने को मंज़ूरी मिल चुकी है परन्तु इसका इस्तेमाल केवल अल्प समय के लिये ही किया जा सकता है|
  • विदित हो कि गर्भनाल विकसित भ्रूण को रोगग्रस्त जीवों से सुरक्षित रखने के लिये एक अवरोध के रूप में कार्य करती है|
  • यह दवा अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रणाली के माध्यम से रोगजनकों को भ्रूण तक पहुँचने से रोक देती है| ये रोगजनक कोशिकाओं के कुछ अवयवों को हटा देते हैं| इन रोगजनकों को स्वायत्तजीवी(autophagy) कहा जाता है|
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, ज़ीका वायरस वास्तव में अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रणाली का उपयोग अपने लाभ के लिये करता है| ज़ीका संक्रमण से स्वायत्तजीवियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है| अतः जब हम किसी दवा का उपयोग करके स्वायत्तजीवियों की संख्या में होने वाली वृद्धि को रोक देते हैं तो यह वायरस भ्रूण को प्रभावित नहीं कर पाता है|  

कैसे किया गया था प्रयोग?

  • यह समझने के लिये कि ज़ीका वायरस गर्भनाल तक कैसे पहुँचता है तथा भ्रूण को किस प्रकार प्रभावित करता है, प्रोफेसर मायसोरेकर और उनकी टीम ने मानव की गर्भनाल कोशिकाओं को संक्रमित किया| 
  • उन्होंने पाया कि ज़ीका वायरस स्वायत्तजीवियों से संबंधित जीनों को सक्रिय कर देता है|
  • परन्तु जब कोशिकाओं में इस दवा का प्रयोग किया गया तो इसके परिणामस्वरूप ज़ीका वायरस में संक्रमण के दो दिन पश्चात ही कमी आ गई|
  • इसके पश्चात जब इसी प्रयोग को चूहों पर दोहराया गया तो समान परिणाम प्राप्त हुए|
  • शोधकर्ताओं ने गर्भवती चूहों के दो समूहों को संक्रमित किया| इनमें से पहले समूह में स्वायत्तजीवियों की संख्या कम पाई गई जबकि दूसरे समूह में सामान्य मात्रा में स्वायत्तजीवी पाए गए|
  • पहले वाले समूह में, गर्भनाल में उपस्थित विषाणु 10 गुना कम थे तथा सामान्य चूहों की तुलना में गर्भनाल को भी कम नुकसान पहुँचा था|
  • चूहों के भ्रूण में ज़ीका वायरस की उपस्थिति भी 15 गुना कम पाई गई तथा इसमें स्वायत्तजीवियों की संख्या भी कम थी| हालाँकि, रक्त में पाए गए विषाणु चूहों के दोनों समूहों में समान मात्रा में उपस्थित थे| 
  • ज़ीका वायरस से संक्रमित गर्भवती चूहों को लगातार पाँच दिनों तक यह दवा दी गई तथा उनका परीक्षण किया गया| अब पहले की तुलना में दवा लेने वाले चूहों की  गर्भनाल में सामान्य चूहों की तुलना में कम विषाणु पाए गए| 
  • इन चूहों की गर्भनाल भी अत्यधिक क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी तथा उनके भ्रूण में भी ज़ीका संक्रमण के कम ही लक्षण दिखाई दिये|
  • स्वायत्तजीवियों की संख्या में होने वाली कमी से माता के रक्त में पाए जाने वाले विषाणुओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा जोकि अच्छा था, क्योंकि वैज्ञानिक नहीं चाहते थे कि पूरा शरीर स्वायत्तजीवियों के नुकसान का सामना करे क्योंकि इसके साइड इफेक्ट पड़ते हैं| ज़ीका वायरस युक्त वयस्क इस संक्रमण का सामना आसानी से कर सकते हैं| यह माता से भ्रूण को होने वाला एक प्रकार का संक्रमण है जो भ्रूण के लिये हानिकारक होता है|

निष्कर्ष
वैज्ञानिक इस बात से अवगत नहीं है कि यदि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा का उपयोग लम्बे समय के लिये किया गया तो इससे किस प्रकार के जोखिम हो सकते हैं | इसका भी परीक्षण किया जाना चाहिये जिससे इसके सम्बन्ध में और अधिक जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलेगी|

गर्भवती महिलाओं पर इस तरह का प्रयोग करना एक बड़ी चुनौती होगा| यद्यपि इस दवा को गर्भवती महिलाओं में प्रयोग करने को अनुमति दी जा चुकी है परन्तु ज़ीका संक्रमण के परिणाम भयावह होते हैं अतः इस दिशा में अतिशीघ्र अन्य कदम उठाया जाना चाहियें|

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