फोन पर जाति-सूचक अभद्रता एक अपराध है | 20 Nov 2017
चर्चा में क्यों?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Caste and Scheduled Tribe) के साथ होने वाले अभद्र व्यवहार के संबंध में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया है कि सार्वजनिक स्थान पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के खिलाफ फोन पर जातिवादी टिप्पणियों का प्रयोग एक दंडनीय अपराध (इसके तहत अधिकतम पाँच साल की जेल भी सुनिश्चित की गई है) है।
मुद्दा क्या है?
- कुछ समय पहले एक व्यक्ति द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग की एक महिला के साथ अपमानजनक जातिवादी टिप्पणियाँ करने का मुद्दा प्रकाश में आया था।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाई न करने तथा एफ.आई.आर. रद्द करने के संबंध अस्वीकृति व्यक्त की है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उक्त व्यक्ति को इस परीक्षण (trial) के दौरान यह साबित करना होगा कि उसने सार्वजनिक स्थान पर किसी महिला के साथ फोन पर इस प्रकार की बात नहीं की है।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(s)
- विदित हो कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी भी सदस्य के साथ जाति-सूचक अभद्रता ऐसे स्थान पर करता है, जो कि एक सार्वजनिक स्थान है, तो उसे एक दंडनीय अपराध माना जाएगा।
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की विशेषताएँ
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किये जाने वाले अपराधों में निम्नलिखित शामिल है:
♦ सिर और मूँछ के बालों का मुंडन कराना।
♦समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना ।
♦ सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित रखना।
♦ मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने और लाने-ले जाने के लिये बाध्य करना।
♦ कब्र खोदने के लिये बाध्य करना।
♦ सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उपयोग और अनुमति देना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना ।
♦ जातिसूचक शब्द कहना।
♦ जादू-टोना अत्याचार को बढ़ावा देना।
♦ सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना।
♦ चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्रहरण कर आहत करना ।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को घर-गाँव और आवास छोड़ने के लिये बाध्य करना ।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पूजनीय वस्तुओं को विरूपित करना ।
♦ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार करना।
♦यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना और अभद्र भाषा का उपयोग करना।
सार्वजनिक स्थान की परिभाषित के संबंध में विवाद
- इस मामले में उक्त व्यक्ति की ओर से नियुक्त वकील द्वारा प्रस्तुत तर्कों में सार्वजनिक स्थान की परिभाषा को लेकर प्रश्न उठाए गए हैं। उसके अनुसार, किसी भी कल्पना के आधार पर मोबाइल फोन पर दो व्यक्तियों के बीच हुई एक निजी बातचीत को "सार्वजनिक दृष्टि” की अभिव्यक्ति में शामिल नहीं किया जा सकता है।