आंतरिक सुरक्षा
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’
- 19 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्री ने रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure- DPP) 2016 और रक्षा अधिप्राप्ति नियमावली (Defence Procurement Manual- DPM) 2009 की समीक्षा के लिये महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता में एक समिति के गठन को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- इस समिति को अपनी सिफारिशें पेश करने के लिये 6 महीने का समय दिया गया है।
- इस समिति का उद्देश्य परिसंपत्ति के अधिग्रहण से लेकर लाइफ साइकल सपोर्ट (Life Cycle Support) तक निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करने हेतु प्रक्रियाओं को संशोधित एवं संरेखित करना है।
- रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) 2016 तथा रक्षा अधिप्राप्ति नियमावली (DPM) 2009 में संशोधन किया जाएगा।
- इन प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने से सामान के अधिग्रहण से लेकर लाइफ साइकल सपोर्ट तक निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित होगा और सरकार की मेक इन इंडिया पहल मज़बूत होगी।
- समिति के विचारणीय विषयों में शामिल हैं:
- DPP 2016 और DPM 2009 में दी गई प्रक्रियाओं को संशोधित करना ताकि प्रक्रियात्मक अड़चनों तथा जल्दबाज़ी में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके।
- DPP 2016 और DPM 2009 के प्रावधान, जहाँ भी लागू हों उन्हें अनुकूल तथा मानकीकृत करने का प्रावधान।
- भारतीय उद्योग की अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने और मज़बूत रक्षा औद्योगिक आधार विकसित करने के लिये नीति एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाना।
- जहाँ भी लागू हो नई अवधारणाओं जैसे कि जीवन चक्र लागत, जीवन चक्र सहायता कार्य प्रदर्शन आधारित लॉजिस्टिक्स, ICT, लीज़ अनुबंध, कोडिफिकेशन और मानकीकरण की जाँच करना तथा उन्हें शामिल करना।
- भारतीय स्टार्टअप और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के प्रावधान शामिल करना।
- कोई अन्य पहलू जो अधिग्रहण प्रक्रिया को परिष्कृत करे और ‘मेक इन इंडिया’ पहल का समर्थन करने में योगदान दे।
- समिति को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिये छह महीने का समय दिया गया है।
‘मेक इन इंडिया’ अभियान
- 'मेक इन इंडिया' के तहत सरकार ने वर्ष 2025 तक GDP में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य रखा है।
- इसका उद्देश्य मुख्यतः देश की विनिर्माण क्षमता को मज़बूत करना है और इसके तहत वर्ष 2022 तक 100 मिलियन रोज़गारों के सृजन का लक्ष्य तय किया गया है।
- यह पहल निम्नलिखित चार स्तम्भों पर आधारित है, जिन्हें न केवल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये चिंहित किया गया है:
- नई प्रक्रियाएँ: 'मेक इन इंडिया' उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये 'व्यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business)' के एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में पहचान करता है।
- व्यवसाय के वातावरण को आसान बनाने के लिये पहले ही कई पहलें शुरू की जा चुकी हैं।
- नई अवसंरचना: सरकार औद्योगिक कॉरीडोर और स्मार्ट सिटी का विकास करने, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से युक्त विश्वस्तरीय अवसंरचना और उच्च गति वाली संचार व्यवस्था का निर्माण करने की इच्छुक है।
- तीव्र पंजीकरण प्रणाली और आईपीआर पंजीकरण हेतु बेहतर अवसंरचना के ज़रिये नवप्रयोग और अनुसंधान क्रियाकलापों के लिये सहायता दी जा रही है।
- उद्योग के लिये कौशल की आवश्यकता को पहचाना जाना है तथा तद्नुसार कार्यबल के विकास का कार्य शुरू किया जाना है।
- नए क्षेत्र: रक्षा उत्पादन, बीमा, चिकित्सा उपकरण, निर्माण और रेलवे अवसंरचना को बड़े पैमाने पर एफडीआई के लिये खोला गया है।
- इसी प्रकार बीमा और चिकित्सा उपकरणों में एफडीआई की अनुमति दी गई है।
- नई सोच: देश के आर्थिक विकास में उद्योगों को भागीदार बनाने के लिये सरकार सहायक की भूमिका निभाएगी न कि विनियामक की।