अंतर्राष्ट्रीय संबंध
रक्षा उत्पादन क्षेत्र में “मेक इन इंडिया” पहल को बढ़ावा
- 31 Oct 2017
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चर्चा में क्यों?
- हाल ही में भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने हथियार और गोला-बारूद के उत्पादन को “मेक इन इंडिया” अभियान के तहत बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाने के लिये नियमों को उदार बनाया है।
- इस संबंध में बनाए गए नए नियम गृह मंत्रालय द्वारा छोटे हथियारों के निर्माण के लिये प्रदान किये जाने वाले लाइसेंसों पर लागू होंगे।
- साथ ही ये नियम औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के तहत लाइसेंस प्राप्त करने वाले टैंक, हथियारों से लैस लड़ाकू वाहन, रक्षक विमान, स्पेस क्राफ्ट, युद्ध सामग्री और अन्य हथियारों के पुर्जे तैयार करने वाली इकाईयों पर लागू होंगे।
नियमों को कैसे बनाया गया है उदार?
- उत्पादन के लिये दिया गया लाइसेंस अब हमेशा के लिये वैध होगा।
- प्रत्येक 5 वर्ष के बाद लाइसेंस के नवीकरण की शर्त को हटा दिया गया है।
- हथियार उत्पादकों द्वारा निर्मित छोटे और हल्के हथियारों को केंद्र और राज्य सरकारों को बेचने के लिये गृह मंत्रालय की पूर्व अनुमति की अब ज़रूरत नहीं होगी।
- जितने उत्पादन की अनुमति है अगर उससे 15 फीसदी अधिक तक का उत्पादन ज्यादा किया जाता है तो इसके लिये सरकार से स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी।
- सिर्फ उत्पादक इकाई को लाइसेंस देने वाले प्राधिकरण को सूचना देनी होगी।
क्या होगा प्रभाव?
- नियमों के उदार होने से इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा और “मेक इन इंडिया” अभियान के तहत हथियार प्रणालियों और गोला-बारूद के देश में निर्मित उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
- उदार नियमों के कारण वैश्विक स्तर के देश में ही निर्मित हथियारों के ज़रिये सेना और पुलिस बल की हथियार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।
स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा देना आवश्यक क्यों?
- आयातित अत्याधुनिक शस्त्रों से सेना का आधुनिकीकरण तो होता है, लेकिन नवीनतम तकनीक के बढ़ते मूल्यों के कारण ये आयातित उपकरण प्रायः अधिक खर्चीले होते हैं। साथ ही, उपकरणों को प्राप्त करने में अधिक समय भी लगता है।
- अतः स्वदेश निर्मित उपकरणों, अस्त्र-शस्त्रों एवं स्वदेश में विकसित तकनीकों के माध्यम से सेना का आधुनिकीकरण ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से आज के समय की एक आवश्यकता है और ‘मेक इन इंडिया” का उद्देश्य आत्म-निर्भरता हासिल करना है।