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‘मेक-II’ प्रक्रिया अब हुई आसान : रक्षा उत्पादन में ‘मेक इन इंडिया’ की ओर प्रमुख कदम

  • 19 Jan 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इं‍डिया’ को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्‍यक्षता में रक्षा खरीद परिषद (Defence Acquisition Council) द्वारा 16 जनवरी, 2018 को आयोजित अपनी बैठक में ‘मेक-II’ प्रक्रिया को आसान बनाने को मंज़ूरी दे दी गई है। इस निर्णय से रक्षा उपकरणों की खरीद में उद्योग जगत की और ज़्यादा साझेदारी सुनिश्चित होगी।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस प्रक्रिया से आयात प्रतिस्थापन के साथ-साथ अभिनव समाधानों (innovative solutions) को बढ़ावा देने में काफी मदद मिलेगी।
  • इस सरलीकृत ‘मेक-II’ प्रक्रिया के परिणामस्‍वरूप रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure - DPP)–2016 से जुड़ी मौजूदा ‘मेक प्रक्रिया’ में संशोधन किया जाएगा।

नई ‘मेक-II’ प्रक्रिया की मुख्‍य विशेषताएँ
नई ‘मेक-II’ प्रक्रिया की मुख्‍य विशेषताओं में निम्‍नलिखित बिंदु शामिल हैं-

  • उद्योग जगत विशेषकर उन चीज़ों (आइटम) से संबंधित परियोजनाएँ सुझा सकता है जिनका फिलहाल आयात किया जा रहा है। 
  • इसके अलावा, विभिन्‍न स्‍टार्ट-अप या व्‍यक्ति भी प्रस्‍ताव सुझा सकते हैं। सर्विस मुख्‍यालय भी ऐसी परियोजनाओं की एक सूची प्रस्‍तुत करेगा जिन पर काम नई प्रक्रिया के तहत ‘मेक-II’ परियोजनाओं के रूप में शुरू किया जा सकता है।
  • संभावित ‘मेक-II’ परियोजनाओं को मंज़ूरी सचिव (रक्षा उत्‍पादन) की अध्‍यक्षता वाली एक समिति के अधीनस्‍थ एक कॉलेजिएट (collegiate) द्वारा दी जाएगी जिसमें डीआरडीओ, मुख्‍यालय, रक्षा विभाग शामिल होंगे। 
  • इस समिति द्वारा दी जाने वाली सैद्धांतिक मंज़ूरी के आधार पर संबंधित परियोजनाओं को रक्षा मंत्रालय/रक्षा उत्‍पादन विभाग की वेबसाइट पर डालकर उद्योग जगत को इसमें साझेदारी करने के लिये आमंत्रित किया जाएगा।
  • प्रोटोटाइप के विकास के लिये आमंत्रित अभिरुचि पत्र में अपनी दिलचस्‍पी दिखाने वाली कंपनियों की संख्‍या के लिये कोई सीमा नहीं होगी। हालाँकि, इसके लिये न्‍यूनतम पात्रता मानक को पूरा करना होगा। 
  • प्रोटोटाइप की पेशकश करने के लिये 12 से लेकर 30 हफ्तों का डिज़ाइन एवं विकास समय उद्योग जगत को दिया गया है।
  • इसमें दिलचस्‍पी दिखाने एवं प्रोटोटाइप की पेशकश करने वाली कंपनियों की संख्‍या के लिये कोई सीमा तय नहीं की गई है।
  • इस अवधि के बाद एक वाणिज्यिक आरएफपी (Request For Proposal–RFP) को जारी किया जाएगा। आरएफपी के जारी होने के बाद इसे वापस नहीं लिया जाएगा। इसके तहत बोली जीतने वाली कंपनी को एक ऑर्डर मिलने का आश्वासन दिया जाता है।
  • सर्विस मुख्‍यालय (Service Headquarter-SHQ) इस प्रक्रिया के तहत सहूलियत सुनिश्चित करने के लिये एक परियोजना सुविधा टीम (Project Facilitation Team) का गठन करेगा।
  • किसी उत्‍पाद को विकसित करने वाली कंपनी के पास ही टाइटिल एवं स्वामित्व के साथ-साथ बौद्धिक संपदा से संबंधित अन्‍य सभी अधिकार भी रहेंगे। 
  • हालाँकि, राष्‍ट्रीय सुरक्षा जैसी कुछ विशिष्‍ट परिस्थितियों में लाइसेंस संबं‍धी विशेषाधिकार सरकार के पास ही होंगे।
  • आमतौर पर बहु-विक्रेता (multi-vendor contracts) अनुबंधों में अनुबंध वार्ता समिति (Contract Negotiation Committee -CNC) द्वारा कोई वार्ता नहीं की जाएगी।
  • ‘मेक-II’ प्रक्रिया के तहत सैद्धांतिक मंज़ूरी देने से लेकर ऑर्डर देने तक का कुल समय घटकर आधा हो जाता है। 
  • समूची प्रक्रिया को पूरा करने में लगने वाली अनुमानित अवधि को 103 हफ्तों से घटाकर 69 हफ्ते कर दिया गया है।
  • तीन करोड़ रुपए से कम राशि की विकास लागत वाली परियोजनाओं को सूक्ष्‍म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिये आरक्षित रखा जाएगा। 
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