प्रमुख पर्यावरण आदेश: हड्डा रोड़ी में प्रदूषण | 21 May 2020
प्रीलिम्स के लिये:राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, सतलज नदी मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण एवं अपशिष्ट निपटान से संबंधित मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जसबीर सिंह की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति ने सतलज नदी के पास पंजाब के लुधियाना में हड्डा रोड़ी (Hadda Roddi) में प्रदूषण पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal- NGT) को अपनी रिपोर्ट पेश की।
प्रमुख बिंदु:
- इस समिति ने 13 फरवरी, 2020 को पंजाब के लधोवाल गाँव में शव निपटान स्थल का दौरा किया और निरीक्षण करने पर पाया कि हड्डा रोड़ी स्थल में लुधियाना एवं उसके आसपास के इलाकों से प्रतिदिन लगभग 40-50 मृत पशुओं को लाया जाता है।
- पैनल ने कहा कि लगभग 5.5 एकड़ जमीन पर मृत जानवरों को काटा जाता है और उनके कुछ हिस्सों जैसे- हड्डियाँ, खाल (त्वचा), गोबर, आंत आदि को अलग किया जाता है।
- इन सभी गतिविधियों को सामान्य तरीके से किया जाता है। इसके बाद विनिर्माण इकाइयों द्वारा आगे की प्रक्रिया के लिये खाल, हड्डियाँ एवं आंत को बाज़ार में बेचा जाता है।
- इससे आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रदूषण फैल रहा है तथा गहन निरीक्षण करने पर सतलज के किनारे अपशिष्ट जल में मृत जानवरों के कुछ अंग पाए गए।
- समिति ने शव निस्तारण संयंत्रों के मालिकों के साथ भी चर्चा की तो बताया गया कि उनके पास वर्तमान स्थान पर मृत जानवरों को संसाधित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि आधुनिक एवं वैज्ञानिक शव निपटान संयंत्र लुधियाना के ‘नूरपुर बेट’ में है जो दूर भी है और अभी तक चालू भी नहीं हुआ है।
- समिति का विचार था कि सतलज के तट पर पर्यावरणीय खतरे को ध्यान में रखते हुए वर्तमान स्थानों पर इन गतिविधियों को बंद करने की आवश्यकता है।
- लुधियाना नगर निगम को आधुनिक एवं वैज्ञानिक शवों के निस्तारण संयंत्र को तुरंत पूरा करना चाहिये और इसके लिये पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के प्रावधानों के तहत पहले ही अनापत्ति प्रमाणपत्र दे देना चाहिये था।
- समिति ने सिफारिश की कि यदि नगर निगम (लुधियाना) 31 अगस्त, 2020 तक नूरपुर बेट में वैज्ञानिक शव निपटान संयंत्र को चालू करने में विफल रहता है तो संयंत्र के चालू होने तक प्रति माह एक लाख रुपये की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति उस पर लगाई जानी चाहिये।
- निगरानी समिति की इस रिपोर्ट को 10 मई, 2020 को सार्वजनिक किया गया था।
सतलज नदी:
- सतलज नदी उन पाँच नदियों में से सबसे लंबी है जो उत्तरी भारत एवं पाकिस्तान के पंजाब के ऐतिहासिक क्षेत्र से होकर बहती हैं।
- सतलज नदी को ‘सतद्री’ के नाम से भी जाना जाता है। यह सिंधु नदी की सबसे पूर्वी सहायक नदी है।
- इसका उद्गम सिंधु नदी के स्रोत के 80 किमी. दूर पश्चिमी तिब्बत में मानसरोवर झील के समीप राकसताल झील से होता है।
- सिंधु की तरह यह तिब्बत-हिमाचल प्रदेश सीमा पर शिपकी-ला दर्रे तक एक उत्तर-पश्चिमी मार्ग को अपनाती है। यह शिवालिक श्रंखला को काटती हुई पंजाब में प्रवेश करती है।
- पंजाब के मैदान में प्रवेश करने से पहले यह ‘नैना देवी धार’ में एक गाॅर्ज का निर्माण करती है जहाँ प्रसिद्ध भाखड़ा बाँध का निर्माण किया गया है।
- रूपनगर (रोपड़) में मैदान में प्रवेश करने के बाद यह पश्चिम की ओर मुड़ती है और हरिके नामक स्थान पर ब्यास नदी में मिल जाती है।
- फिरोज़पुर के पास से लेकर फाज़िल्का तक यह भारत और पाकिस्तान के बीच लगभग 120 किलोमीटर तक सीमा बनाती है।
- अपनी आगे की यात्रा के दौरान यह रावी, चिनाब और झेलम नदियों के साथ सामूहिक जलधारा के रूप में मिठानकोट से कुछ किलोमीटर ऊपर सिंधु नदी में मिल जाती है।