भारतीय विरासत और संस्कृति
महावीर जयंती
- 27 Apr 2021
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चर्चा में ?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘महावीर जयंती' (25 अप्रैल, 2021) के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं।
- ‘महावीर जयंती’ जैन समुदाय के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है।
प्रमुख बिंदु:
महावीर जयंती:
- यह दिवस वर्धमान महावीर के जन्म का प्रतीक है। वर्धमान महावीर जैन समुदाय के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्हें 23वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ (Parshvanatha) के उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता है।
- जैन ग्रंथों के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह में चंद्र पक्ष के 13वें दिन (तेरस) हुआ था।
- ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन प्रायः मार्च या अप्रैल माह में आता है।
- उत्सव: इस दिन भगवान महावीर की मूर्ति के साथ एक जुलूस यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसे ‘रथ यात्रा’ (Rath Yatra) कहा जाता है। स्तवन या जैन प्रार्थनाओं (Stavans or Jain Prayers) को करते हुए, भगवान की प्रतिमाओं को औपचारिक स्नान कराया जाता है, जिसे ‘अभिषेक’ (Abhishek) कहा जाता है।
भगवान महावीर:
- भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में ‘वज्जि साम्राज्य’ में कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ और लिच्छवी राजकुमारी त्रिशला के यहाँ हुआ था। वज्जि संघ आधुनिक बिहार में वैशाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
- भगवान महावीर ‘इक्ष्वाकु वंश’ (Ikshvaku dynasty) से संबंधित थे।
- बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था, जिसका अर्थ होता है ‘जो बढ़ता है’।
- उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन को त्याग दिया और 42 वर्ष की आयु में उन्हें 'कैवल्य' यानी सर्वज्ञान की प्राप्ति हुई।
- महावीर ने अपने शिष्यों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुद्धता) तथा अपरिग्रह (अनासक्ति) का पालन करने की शिक्षा दी और उनकी शिक्षाओं को ‘जैन आगम’ (Jain Agamas) कहा गया।
- प्राकृत भाषा के प्रयोग के कारण प्रायः आम जनमानस भी महावीर और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं एवं उपदेशों को समझने में समर्थ थे।
- महावीर को बिहार में आधुनिक राजगीर के पास पावापुरी नामक स्थान पर 468 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में निर्वाण (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हुआ।
जैन धर्म
- जैन शब्द की उत्पत्ति ‘जिन’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘विजेता’।
- ‘तीर्थंकर’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका प्रयोग संसार सागर से पार लगाने वाले ‘तीर्थ’ के प्रवर्तक के लिये किया जाता है।
- जैन धर्म में अहिंसा को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
- यह 5 महाव्रतों (5 महान प्रतिज्ञाओं) का प्रचार करता है:
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय (चोरी न करना)
- अपरिग्रह (अनासक्ति)
- ब्रह्मचर्य (शुद्धता)
- इन 5 शिक्षाओं में, ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य/शुद्धता) को महावीर द्वारा जोड़ा गया था।
- जैन धर्म के तीन रत्नों या त्रिरत्न में शामिल हैं:
- सम्यक दर्शन (सही विश्वास)।
- सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान)।
- सम्यक चरित्र (सही आचरण)।
- जैन धर्म अपनी सहायता स्वयं ही करने पर बल देता है।
- इसके अनुसार, कोई देवता या आध्यात्मिक प्राणी नहीं हैं, जो मनुष्य की सहायता करेंगे।
- यह वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है।
- बाद के समय में, यह दो संप्रदायों में विभाजित हो गया:
- स्थलबाहु के नेतृत्व में ‘श्वेतांबर’ (श्वेत-पाद)।
- भद्रबाहु के नेतृत्व में ‘दिगंबर’ (आकाश-मंडल)।
- जैन धर्म में महत्वपूर्ण विचार यह है कि संपूर्ण विश्व सजीव है: यहाँ तक कि पत्थरों, चट्टानों और जल में भी जीवन है।
- जीवित प्राणियों, विशेष रूप से मनुष्यों, जानवरों, पौधों और कीटों के प्रति अहिंसा का भाव जैन दर्शन का केंद्र बिंदु है।
- जैन शिक्षाओं के अनुसार, जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्मों से निर्धारित होता है।
- कर्म के चक्र से स्वयं और आत्मा की मुक्ति के लिये तपस्या और त्याग की आवश्यकता होती है।
- ‘संथारा’ जैन धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है।
- यह आमरण अनशन की एक अनुष्ठान विधि है। श्वेतांबर जैन इसे ‘संथारा’ कहते हैं, जबकि दिगंबर इसे ‘सल्लेखना’ कहते हैं।