महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण | 21 Feb 2018
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा महानदी जल विवाद के न्यायिक निपटारे के प्रस्ताव को मंजू़री प्रदान की गई है। न्यायाधिकरण संपूर्ण महानदी बेसिन में पानी की उपलब्धता, प्रत्येक राज्य के योगदान, प्रत्येक राज्य में जल संसाधनों के वर्तमान उपयोग और भविष्य के विकास की संभावना के आधार पर जलाशय वाले राज्यों के बीच पानी का बँटवारा निर्धारित करेगा।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद कानून, 1956
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (Inter-State River Water Disputes -ISRWD) कानून, 1956 के प्रावधानों के अनुसार, न्यायाधिकरण में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे, जिन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से मनोनीत करेंगे।
- इसके अलावा, जल संसाधन विशेषज्ञ दो आकलनकर्त्ताओं की सेवाएँ न्यायाधिकरण की कार्यवाही में सलाह देने के लिये प्रदान की जाएंगी। इन आकलनकर्त्ताओं को जल संबंधी संवेदनशील मुद्दों को निपटाने का अनुभव होगा।
- आईएसआरडब्ल्यूडी कानून, 1956 के प्रावधानों के अनुसार. न्यायाधिकरण को अपनी रिपोर्ट और फैसले तीन वर्ष की अवधि के भीतर देने होंगे, जिसे अपरिहार्य कारणों से दो वर्ष के लिये बढ़ाया जा सकता है।
- न्यायाधिकरण द्वारा विवाद के न्यायिक निपटारे के साथ ही महानदी पर ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों के बीच लंबित विवाद का अंतिम निपटारा किये जाने की आशा है।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017
- इस विधेयक में अंतर्राज्यीय जल विवाद निपटारों के लिये अल- अलग अधिकरणों की जगह एक स्थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य शामिल होंगे।
- अध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि को पाँच वर्ष अथवा 70 वर्ष तय किया गया है।
- अधिकरण के उपाध्यक्ष के कार्यकाल की अवधि तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल जल विवादों के निर्णय के साथ सह-समाप्ति आधार पर होगा।
- इसके अतिरिक्त अधिकरण को तकनीकी सहायता देने के लिये आकलनकर्त्ताओं (केंद्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा में सेवारत विशेषज्ञ) की भी नियुक्ति की जाएगी।
- जल विवादों के निर्णय के लिये कुल समयावधि अधिकतम साढ़े चार वर्ष तय की गई है। अधिकरण की पीठ का निर्णय अंतिम होगा और संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होगा। साथ ही, इसके निर्णयों को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी।
नदी जल विवाद से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 में प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 262 (2) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय को इस मामले में न्यायिक पुनर्विलोकन और सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।
- विदित हो कि अनुच्छेद 262 संविधान के भाग 11 का हिस्सा है जो केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रकाश डालता है।
- अनुच्छेद 262 के आलोक में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 को लाया गया। इस अधिनियम के तहत संसद को अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे हेतु अधिकरण बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसका निर्णय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बराबर महत्त्व रखता है।
नदी जल विवाद से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत
- हर्मन डॉक्ट्रिन या प्रादेशिक अखंडता का सिद्धांत (1896): इसमें ऊपरी तटीय देशों/राज्यों की नदी जल पर प्रादेशिक संप्रभुता होने की बात कही गई थी।
- संपूर्ण प्रादेशिक अखंडता का सिद्धांत (1941): यह सिद्धांत, नदी जल के प्राकृतिक बहाव को अवरुद्ध करने का विरोध करता है।
- न्यायसंगत विभाजन का सिद्धांत: इसमें ज़रूरत के मुताबिक नदी जल की प्राथमिकता तय करने की बात की गई है, उदाहरण के लिये- भारत के संदर्भ में सिंधु, कृष्णा एवं गोदावरी नदियों के जल का बँटवारा इसी आधार पर किया गया है।परमित क्षेत्रीय संप्रभुता का सिद्धांत (1997): इसमें माना गया है कि नदी जल बहाव वाले समस्त तटीय देशों/राज्यों का नदियों पर समान अधिकार है।
महानदी की भौगोलिक स्थिति
- यह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। इस नदी को महानन्दा एवं नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है।
- महानदी का प्रवाह दक्षिण दिशा से उत्तर की ओर है।
- महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के रायपुर के समीप अवस्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी (धमतरी ज़िला) से होता है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह पैरी और सोंदुर नदियों से जल ग्रहण कर विशाल रूप धारण कर करती है।
- इसके बाद यह आरंग और सिरपुर से बहती हुई शिवरी नारायण में पहुँचती है, यहाँ यह अपने नाम के अनुरूप महानदी बन जाती है।
- शिवरी नारायण (एक धार्मिक नगर) से यह दक्षिण से उत्तर की ओर बहने की बजाय पूर्व दिशा की ओर बहने लगती है।
- संभलपुर ज़िले में प्रवेश करने के साथ यह ओडिशा में बहने लगती है तथा बलांगीर और कटक होते हुए बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। महानदी के समस्त प्रवाह का सबसे अधिक भाग छत्तीसगढ़ में बहता है।
- महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चंपारण, आरंग और सिरपुर आदि नगर बसे हुए हैं।
- पैरी, सोंदुर के अलावा शिवनाथ, हंसदेव, अरपा, जोंक और तेल आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं।
- इतना ही नहीं इस पर हीराकुण्ड, रुद्री और गंगरेल जैसे महत्त्वपूर्ण प्रमुख बांधों का भी निर्माण हुआ हैं।
समाधान
- इसके लिये ज़रूरी है कि समय-समय पर अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम की समीक्षा की जाए तथा इसे तत्कालीन समस्याओं के समयानुकूल बनाया जाए।
- इस विषय को समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिये ताकि जल संरक्षण एवं इसके उपयोग के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा प्रभावकारी कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। इसका कारण यह है कि नदी जल को राज्य सूची की प्रविष्टि-17 में रखा गया है, जबकि नदी घाटी के नियमन और विकास को संघीय सूची की प्रविष्टि-56 में स्थान दिया गया है।
- नदियों के जल-स्तर को बढ़ाने संबंधी प्रयास किये जाने चाहिये ताकि नदियों के उद्गम क्षेत्र से लेकर बहाव क्षेत्र वाले समस्त राज्यों में पानी की भरपूर उपलब्धता संभव हो सके।
- नदियों के जल के आधे से अधिक भाग का उपयोग सिंचाई कार्यों में किया जाता है। अतः आवश्यक है कि सिंचाई के पारम्परिक उपायों के स्थान पर ड्रिप सिंचाई अथवा फाउंटेन सिंचाई जैसी सिंचाई तकनीकों का प्रयोग किया जाए।