मद्रास उच्च न्यायालय: मंदिर के पुजारियों की नियुक्तियों में जाति से ऊपर योग्यता | 30 Jun 2023
प्रिलिम्स के लिये:धर्म शास्त्र, धर्म सिद्धांत, अनुच्छेद 15 मेन्स के लिये:मंदिर पुजारी की नियुक्तियों में परंपरा बनाम आधुनिकता, भारत में मंदिर के पुजारियों की नियुक्तियों से संबंधित कानूनी पहलू |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया है जो मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में योग्यता और समानता के महत्त्व पर बल देता है।
- न्यायालय का निर्णय वर्ष 2018 में दायर एक रिट याचिका के जवाब में आया है जिसमें श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर, सेलम (तमिलनाडु) में अर्चक/स्थानिगर (मंदिर पुजारी) के पद के लिये नौकरी की घोषणा को चुनौती दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता ने मंदिर के आगम ग्रंथों में उल्लिखित पारंपरिक दिशा-निर्देशों तथा लंबे समय से सेवा करने वाले पुजारियों के वंशानुगत अधिकारों के आधार पर नियुक्तियों का तर्क दिया।
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के दावे को खारिज करते हुए योग्यता आधारित नियुक्तियों के पक्ष में निर्णय सुनाया।
मंदिर पुजारी की नियुक्ति से जुड़े कानूनी और ऐतिहासिक पहलू:
- कानूनी पहलू:
- अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
- इसमें कहा गया है कि राज्य रोज़गार या सार्वजनिक स्थानों तक पहुँच के मामलों में इन आधारों पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
- साथ ही राज्यों के पास मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति सहित धार्मिक संस्थानों और उनके मामलों को विनियमित करने का अधिकार है। राज्य कानून ऐसी नियुक्तियों के लिये योग्यता, प्रक्रिया तथा पात्रता मानदंड निर्धारित करते हैं।
- अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
- ऐतिहासिक पहलू:
- कई हिंदू मंदिरों में वंशानुगत नियुक्तियों की परंपरा प्रचलित है, जहाँ मंदिर के पुजारी की नियुक्ति विशिष्ट परिवारों या जातियों से की जाती है।
- मंदिर अक्सर आगम ग्रंथों का पालन करते हैं जो मंदिर के अनुष्ठानों और प्रथाओं के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
- यह प्रथा अक्सर पैतृक ज्ञान और वंश की शुद्धता में विश्वास पर आधारित होती है।
- हालाँकि कुछ क्षेत्रों में प्रतियोगिताएँ अथवा योग्यता के आधार पर भी चयन का प्रचलन है।
- कई हिंदू मंदिरों में वंशानुगत नियुक्तियों की परंपरा प्रचलित है, जहाँ मंदिर के पुजारी की नियुक्ति विशिष्ट परिवारों या जातियों से की जाती है।
मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:
- सेशम्मल और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य (1972):
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अर्चक (मंदिर पुजारी) की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और पुजारियों द्वारा धार्मिक सेवा का प्रदर्शन धर्म का एक अभिन्न अंग है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक पहलुओं को पृथक बताते हुए कहा कि आगम (ग्रंथों) द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था केवल धार्मिक सेवा कार्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- किसी भी व्यक्ति को जाति अथवा पंथ की परवाह किये बिना अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है यदि वह योग्य है और आगमों तथा मंदिर में पूजा के लिये आवश्यक अनुष्ठानों की अच्छी समझ रखता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के आधार पर मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया कि यदि चुना गया व्यक्ति निर्दिष्ट मानकों को पूरा करता है, तो अर्चक की नियुक्ति में जाति-आधारित वंशावली की कोई भूमिका नहीं होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अर्चक (मंदिर पुजारी) की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और पुजारियों द्वारा धार्मिक सेवा का प्रदर्शन धर्म का एक अभिन्न अंग है।
- एन. अदिथायन बनाम त्रावणकोर देवासम बोर्ड (2002):
- सर्वोच्य न्यायलय ने इस पारंपरिक दावे को अस्वीकृत कर दिया कि केवल ब्राह्मण (इस मामले में मलयाला ब्राह्मण) ही मंदिरों में अनुष्ठान कर सकते हैं।
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उचित तरीके से पूजा करने वाले योग्य प्रशिक्षित व्यक्ति अनुष्ठान कर सकते हैं।
- सर्वोच्य न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कुछ मंदिरों में केवल ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान करने का नियम ऐतिहासिक कारणों से था, जैसे वैदिक साहित्य और पवित्र दीक्षा तक सीमित पहुँच।
आगम शास्त्र:
- आगम शास्त्र हिंदू धर्म में पूजा, अनुष्ठान और मंदिरों के निर्माण के लिये एक नियमावली है। संस्कृत में आगम का अर्थ है "परंपरा द्वारा सौंपा गया" और शास्त्र एक टिप्पणी या ग्रंथ को संदर्भित करता है।
- आगम विभिन्न विषयों की व्याख्या करते हैं और उन्हें हिंदू प्रथाओं की एक विशाल शृंखला का मार्गदर्शक कहा जा सकता है। वे निम्न हैं:
- देव पूजा, धार्मिक समारोहों, त्योहारों आदि के लिये नियमावली।
- मोक्ष प्राप्ति के उपाय, योग
- देवता, यंत्र
- विभिन्न मंत्रों का प्रयोग
- मंदिर निर्माण, नगर नियोजन
- अर्थमिति
- घरेलू प्रथाएँ और नागरिक संहिताएँ
- सामाजिक/सार्वजनिक उत्सव
- पवित्र स्थान
- ब्रह्मांड, सृजन और विघटन के सिद्धांत
- आध्यात्मिक दर्शन
- संसार
- तपस्या
- आगम सिद्धांत मंदिर की पवित्रता और आध्यात्मिक प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिये उच्चकोटि के अनुष्ठानों और प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्त्व पर बल देते हैं।
- आगम ग्रंथों को आधिकारिक माना जाता है तथा मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण में उनका अधिक महत्त्व है।