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मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर में वृद्धि

  • 18 Feb 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

नवजात शिशु मृत्यु दर से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये:

भारत में नवजात शिशु मृत्यु दर

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार मध्य प्रदेश में नवजात शिशु मृत्यु दर में एक अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। स्टाफ की कमी, कम सामुदायिक रेफरल आदि इसके प्रमुख कारक के रूप में बताए गए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार, वर्ष 2017 के बाद से देश भर में पिछले तीन वर्षों में सरकार द्वारा संचालित बीमार शिशु देखभाल इकाइयों में कुल नवजातों के प्रवेश के मुकाबले मध्य प्रदेश में 11.5% नवजातों की मृत्यु दर्ज की गई।
  • हालाँकि राज्य में नवजात शिशुओं (28 दिनों से कम) के प्रवेश में अप्रैल 2017 से दिसंबर 2019 के बीच गिरावट आई है जो कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की तुलना में अभी भी कम है।
  • मध्य प्रदेश में नवजात मृत्यु (28 दिनों से कम) का प्रतिशत 12.2% है जो बिहार के पिछले वर्ष के आँकड़े से अधिक है।
  • अप्रैल 2017 से दिसंबर 2019 के बीच पश्चिम बंगाल में 34,344 नवजातों की मौत हुई जो देश में सबसे अधिक थीं। हालाँकि 2017 के 9.2% के स्तर के मुकाबले 2019 में वहाँ नवजात मृत्यु दर 8.9% के स्तर पर आ चुकी है।

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नवजात शिशु मृत्यु के मुख्य कारण:

  • स्टाफ की कमी
  • कम सामुदायिक रेफरल
  • स्वास्थ्य केंद्रों के लिये एक विशेष नवजात परिवहन सेवा की अनुपस्थिति
  • अंतिम उपाय के रूप में शहरों में इकाइयों पर निर्भरता
  • संस्थागत प्रसव के लिये पर्याप्त इकाइयों की अनुपलब्धता ने मृत्यु के प्रतिशत में अधिक योगदान दिया है।
  • अस्पतालों में पाँच सर्जन, गायनोकोलॉजिस्ट, चिकित्सकों और बाल रोग विशेषज्ञों के स्थान पर केवल एक की ही उपलब्धता है (82% की कमी)।
  • जहाँ गर्भवती महिलाओं को दूरदराज के क्षेत्रों से अस्पतालों तक ले जाने के लिये एक समर्पित सेवा मौजूद है वहीं नवजात शिशुओं के लिये इस प्रकार के किसी विशेष वाहन की व्यवस्था नहीं है साथ ही इन्हें अस्पताल ले जाने के लिये ज़्यादातर 108 एम्बुलेंस सेवा का ही प्रयोग होता है।
  • मध्यप्रदेश में बालिका नवजातों के बीमार होने पर अस्पताल में उनके प्रवेश का औसत 663 (लड़कियों की संख्या 1,000 लड़कों के मुकाबले तीन साल में) है जो के देश के औसत 733 के मुकाबले कम है। हालाँकि 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश का लिंग अनुपात 931 था।
  • नमूना पंजीकरण प्रणाली के अनुसार, भारत में नवजात मृत्यु के कारण और उनसे होने वाली मौतों का प्रतिशत:
    • समय से पहले जन्म और कम वज़न के साथ जन्म (35.9%)
    • निमोनिया (16.9%)
    • जन्म के समय बर्थ एसफिक्सिया और जन्म के समय आघात (9.9%)
    • अन्य गैर-संचारी रोग (7.9%)
    • डायरिया (6.7%)
    • जन्मजात विसंगतियाँ (4.6%)
    • संक्रमण (4.2%)

कुछ अन्य तथ्य:

  • मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में, तीन सालों में एक यूनिट (अस्पताल या अन्य कोई स्वास्थ्य केंद्र) में भर्ती होने वाले हर पाँच बच्चों में से एक नवजात की मृत्यु हो गई। राज्य में 19.9% की उच्चतम मृत्यु दर, NHM के 2% से नीचे के अनिवार्य प्रमुख प्रदर्शन संकेतक से दस गुना अधिक है।
  • रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में ऐसी मौतों का प्रतिशत अधिक है क्योंकि वे तृतीयक देखभाल प्रदान करते हैं, साथ ही आस-पास के ज़िलों के कई गंभीर मामलों को स्वीकार करते हैं।
  • प्रदेश के 51 ज़िलों में से 31 में खासतौर पर आदिवासी इलाकों में जहाँ पोषण और मातृ स्वास्थ्य निम्न स्तर पर हैं, वहाँ नवजात मृत्यु दर 10% से अधिक है।
  • एनएचएम के चाइल्ड हेल्थ रिव्यू 2019-2020 में अंडर-रिपोर्टिंग के मामले को उजागर किया गया है। 43 ज़िलों में सरकारी अधिकारियों ने पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की 50% से अधिक मौतें दर्ज नहीं की हैं जिससे उनके स्कोर को गलत तरीके से बढ़ाया गया है।
  • नवजात मृत्यु दर की स्थिति में सुधार दिखाने के लिये, कई कुख्यात अस्पताल स्वस्थ रोगियों को भर्ती कर लेते हैं ताकि रिपोर्ट में सब कुछ सही दिखे।
  • वर्ष 2018 में जीवन के पहले महीने में वैश्विक रूप से 2.5 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो गई।

नवजात शिशु मृत्यु दर: भारत की स्थिति

  • नेचर पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 0.75 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु होती है, जो दुनिया के किसी भी देश से अधिक है।
  • नवजात मृत्यु दर वर्ष 1990 में 52 प्रति 1000 जीवित जन्मों से घटकर वर्ष 2013 में 28 प्रति 1000 जीवित जन्म हो गई, लेकिन इस गिरावट की दर बेहद धीमी रही है।
  • यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार भारत में प्रति हज़ार जन्म लेने वाले नवजातों पर मृत्यु की संख्या 23 है।
  • देश में नवजात मृत्यु दर 7% है।

आगे की राह:

  • नवजात शिशुओं की उत्तरजीविता और स्वास्थ्य में सुधार के लिये गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल, जन्म के समय कुशल देखभाल, माँ और बच्चे के जन्म के बाद की देखभाल और छोटे तथा बीमार नवजात शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाओं के उच्च कवरेज़ को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • आशा (महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) की सहायता से ग्रामीण समुदायों में नवजातों के स्वास्थ्य की निगरानी तथा सामुदायिक रेफरल प्रणाली का बेहतर प्रयोग किया जाना सुनिश्चित होना चाहिये।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जन्म के समय और जीवन के पहले सप्ताह के आसपास नवजात शिशुओं की देखभाल पर अधिक ध्यान देने से शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी।
  • गर्भावस्था से लेकर प्रसवोत्तर अवधि तक मातृ और नवजात शिशु की देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना होगा।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के सिद्धांतों के अनुसार असमानता को कम करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
  • प्रत्येक नवजात शिशु और प्रसव को ट्रैक करने की बेहतर प्रणाली का विकास कर स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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