मदन मोहन मालवीय जयंती | 26 Dec 2020
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने पंडित मदन मोहन मालवीय को उनकी 159वीं जयंती (25 दिसंबर, 2020) पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
- जन्म: पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर, 1861 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था।
- संक्षिप्त परिचय
- वे महान शिक्षाविद्, बेहतरीन वक्ता और एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय नेता थे।
- उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों, उद्योगों को बढ़ावा देने, देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने, शिक्षा, धर्म, सामाजिक सेवा, हिंदी भाषा के विकास और राष्ट्रीय महत्त्व से संबंधित कई अन्य गतिविधियों में हिस्सा लिया।
- महात्मा गांधी ने उन्हें 'महामना' की उपाधि दी थी और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने उन्हें 'कर्मयोगी' का दर्जा दिया था।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
- गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक दोनों का ही अनुयायी होने के कारण उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में क्रमशः उदारवादी और राष्ट्रवादी तथा नरमपंथी और गरमपंथी दोनों के बीच की विचारधारा का नेता माना जाता था।
- वर्ष 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, तो उन्होंने इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और गिरफ्तार भी हुए।
- काॅन्ग्रेस में भूमिका
- उन्हें वर्ष 1909, वर्ष 1918, वर्ष 1932 और वर्ष 1933 में कुल चार बार काॅन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
- योगदान
- मालवीय जी को ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिये याद किया जाता है।
- ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा बंधुआ मज़दूरी प्रथा का ही एक रूप है, जिसे वर्ष 1833 में दास प्रथा के उन्मूलन के बाद स्थापित किया गया था।
- ‘गिरमिटिया मज़दूरों’ को वेस्टइंडीज़, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश कालोनियों में चीनी, कपास तथा चाय बागानों और रेल निर्माण परियोजनाओं में कार्य करने के लिये भर्ती किया जाता था।
- हरिद्वार के भीमगोड़ा में गंगा के प्रवाह को प्रभावित करने वाली ब्रिटिश सरकार की नीतियों से आशंकित मालवीय जी ने वर्ष 1905 में गंगा महासभा की स्थापना की थी।
- वे एक सफल समाज सुधारक और नीति निर्माता थे, जिन्होंने 11 वर्ष (1909-1920) तक 'इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल' के सदस्य के रूप में कार्य किया।
- उन्होंने 'सत्यमेव जयते' शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालाँकि यह वाक्यांश मूल रूप से ‘मुण्डकोपनिषद’ से है। अब यह शब्द भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है।
- मालवीय जी के प्रयासों के कारण ही देवनागरी (हिंदी की लिपी) को ब्रिटिश-भारतीय अदालतों में पेश किया गया था।
- उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव से संबंधित विषयों पर भाषण देने के लिये जाना जाता था।
- जातिगत भेदभाव और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर अपने विचार व्यक्त करने के लिये उन्हें ब्राह्मण समुदाय से बाहर कर दिया गया था।
- उन्होंने वर्ष 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
- मालवीय जी ने वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की भी स्थापना की थी।
- मालवीय जी को ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ प्रथा को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिये याद किया जाता है।
- पत्रकार
- एक पत्रकार के रूप में उन्होंने वर्ष 1907 में एक हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ की शुरुआत की, जिसे वर्ष 1915 में दैनिक बना दिया गया, इसके अलावा उन्होंने वर्ष 1910 में हिंदी मासिक पत्रिका ‘मर्यादा’ भी शुरू की थी।
- उन्होंने वर्ष 1909 में एक अंग्रेज़ी दैनिक अखबार ‘लीडर’ भी शुरू किया था।
- मालवीय जी हिंदी साप्ताहिक ‘हिंदुस्तान’ और ‘इंडियन यूनियन’ के संपादक भी थे।
- वे कई वर्ष तक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के निदेशक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।
- मृत्यु: 12 नवंबर, 1946 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
- पुरस्कार और सम्मान
- वर्ष 2014 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने मालवीय जी के सम्मान में वाराणसी-नई दिल्ली ‘महामना एक्सप्रेस’ शुरू की थी।