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सामाजिक न्याय

हाथीपाँव रोग

  • 10 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हाथीपाँव रोग 

मेन्स के लिये:

हाथीपाँव रोग से संबंधित मुद्दे और रोग के उन्मूलन हेतु भारतीय एवं वैश्विक कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हाथीपाँव (Lymphatic Filariasis) के उन्मूलन के लिये एक दवा अभियान शुरू किया है और कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद इस दवा अभियान  को फिर से शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • हाथीपाँव, जिसे आमतौर पर एलिफेंटियासिस (Elephantiasis) के रूप में जाना जाता है एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) के रूप में माना जाता है। मानसिक स्वास्थ्य के बाद यह दूसरी सबसे अधिक अक्षम करने वाली बीमारी है।
  • यह लसीका प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकता है और शरीर के अंगों के असामान्य विस्तार को जन्म दे सकता है, जिससे दर्द, गंभीर विकलांगता और सामाजिक कलंक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • लसीका तंत्र वाहिकाओं और विशेष ऊतकों का एक नेटवर्क है जो समग्र द्रव संतुलन, अंगों एवं अंगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये आवश्यक है तथा महत्त्वपूर्ण रूप से शरीर की प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली का एक प्रमुख घटक है।
  • हाथीपाँव एक वेक्टर जनित रोग है, जो फाइलेरियोइडिया (Filarioidea) कुल के नेमाटोड (राउंडवॉर्म) के रूप में वर्गीकृत परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है। हाथीपाँव रोग का कारण धागेनुमा आकार के निम्नलिखित तीन प्रकार के फाइलेरियल परजीवी होते हैं-
    • वुचेरेरिया बैनक्रोफ्टी (Wuchereria Bancrofti) हाथीपाँव के लगभग 90% मामलों के लिये उत्तरदायी होता है।
    • ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi) अधिकाँश मामलों के लिये उत्तरदायी है।
    • ब्रुगिया तिमोरी (Brugiya Timori) भी इस रोग का कारण है।

औषधीय उपचार:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हाथीपाँव के वैश्विक उन्मूलन में तेज़ी लाने के लिये तीन औषधीय उपचारों की सिफारिश करता है।
    • उपचार, जिसे आईडीए (IDA) के रूप में जाना जाता है, में आइवरमेक्टिन (Ivermectin), डायथाइलकार्बामाज़िन  साइट्रेट (Diethylcarbamazine Citrate) और एल्बेंडाज़ोल (Albendazole) का संयोजन शामिल है।
    • इन औषधियों को लगातार दो वर्षों तक दिया जाता है। वयस्क कृमि का जीवनकाल लगभग चार वर्षों का होता है, इसलिये वह व्यक्ति को कोई नुकसान पहुँचाए बिना स्वाभाविक रूप से मर जाता है।

भारतीय परिदृश्य:

  • हाथीपाँव भारत के लिये गंभीर खतरा है। 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुमानित 650 मिलियन भारतीयों को हाथीपाँव होने का खतरा है।
  • विश्व में हाथीपाँव के 40% से अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं।
  • हाथीपाँव रोग के उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में ‘हाथीपाँव रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis- APELF) नामक पहल शुरू की थी।
  • भारत ने इस रोग के उन्मूलन के लिये दोहरी रणनीति अपनाई है। इसके तहत हाथीपाँव निरोधक दो दवाओं (ईडीसी तथा एल्बेन्डाज़ोल- EDC and Albendazole) का प्रयोग, अंग विकृति प्रबंधन (Morbidity Management) और दिव्यांगता रोकथाम शामिल है।
  • केंद्र सरकार दिसंबर 2019 से ट्रिपल ड्रग थेरेपी (Triple Drug Therapy) को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत है।

वैश्विक प्रयास:

  • 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप: यह रोडमैप वर्ष 2030 तक 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की रोकथाम, उन्हें नियंत्रित करने और उन्मूलन करने के लिये है।
  • हाथीपाँव उन्मूलन के लिये वैश्विक कार्यक्रम (GPELF):
    • वर्ष 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Mass Drug Administration- MDA) के साथ संक्रमण को रोकने के लिये GPELF की स्थापना की ताकि रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता रोकथाम (MMDP) के माध्यम से बीमारी से प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम किया जा सके।
    • GPELF द्वारा विश्व स्तर पर हाथीपाँव को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करने का लक्ष्य वर्ष 2020 तक हासिल नहीं किया गया है । कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न समस्या के बावजूद WHO वर्ष 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये काम में तेज़ी लाएगा।

स्रोत: द हिंदू

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