गाँठदार त्वचा रोग | 14 Jan 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के गौवांशों (Bovines) में गाँठदार त्वचा रोग या ‘लंपी स्किन डिजीज़’ (Lumpy Skin Disease- LSD) के संक्रमण के मामले देखने को मिले हैं।
- गौरतलब है कि भारत में इस रोग के मामले पहली बार दर्ज किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
संक्रमण का कारण:
- मवेशियों या जंगली भैंसों में यह रोग ‘गाँठदार त्वचा रोग वायरस’ (LSDV) के संक्रमण के कारण होता है।
- यह वायरस ‘कैप्रिपॉक्स वायरस’ (Capripoxvirus) जीनस के भीतर तीन निकट संबंधी प्रजातियों में से एक है, इसमें अन्य दो प्रजातियाँ शीपपॉक्स वायरस (Sheeppox Virus) और गोटपॉक्स वायरस (Goatpox Virus) हैं।
लक्षण:
- यह पूरे शरीर में विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन (मादा मवेशी की स्तन ग्रंथि) और जननांगों के आसपास दो से पाँच सेंटीमीटर व्यास की गाँठ के रूप में प्रकट होता है।
- यह गाँठ बाद में धीरे-धीरे एक बड़े और गहरे घाव का रूप ले लेती है।
- इसके अन्य लक्षणों में सामान्य अस्वस्थता, आँख और नाक से पानी आना, बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आदि शामिल है।
प्रभाव:
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, इस बीमारी के मामलों में मृत्यु दर 10% से कम है।
वेक्टर:
- यह मच्छरों, मक्खियों और जूँ के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है।
रोकथाम:
- गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम चार रणनीतियों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं - 'आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन), टीकाकरण, संक्रमित पशुओं का वध और प्रबंधन'।
उपचार:
- वायरस का कोई इलाज नहीं होने के कारण टीकाकरण ही रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है।
- त्वचा में द्वितीयक संक्रमणों का उपचार गैर-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-Steroidal Anti-Inflammatories) और एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है
वैश्विक प्रसार:
- गाँठदार त्वचा रोग, अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों में होने वाला स्थानीय रोग है, जहाँ वर्ष 1929 में पहली बार इस रोग के लक्षण को देखे गए थे।
- दक्षिण पूर्व एशिया (बांग्लादेश) में इस रोग का पहला मामला जुलाई 2019 में सामने आया था।
- भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक (लगभग 303 मिलियन) मवेशी हैं, में बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल गई है।
- भारत में इसका पहला मामला मई 2019 में ओडिशा के मयूरभंज में दर्ज किया गया था।
निहितार्थ:
- इससे देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यहाँ के अधिकांश डेयरी किसान या तो भूमिहीन हैं या सीमांत भूमिधारक हैं तथा उनके लिये दूध सबसे सस्ते प्रोटीन स्रोतों में से एक है।