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जैव विविधता और पर्यावरण

लुधियाना गैस रिसाव त्रासदी

  • 03 May 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), न्यूरोटॉक्सिक गैसें, रासायनिक आपदाओं के मामलों में उपलब्ध अन्य कानूनी सुरक्षा उपाय

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण: शक्तियाँ; रासायनिक आपदाओं से सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पंजाब के लुधियाना ज़िले में गैस रिसाव के कारण 11 लोगों की मौत की जाँच के लिये आठ सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति का गठन किया है।

लुधियाना में हुई त्रासदी:

  • पृष्ठभूमि:
    • लुधियाना के ग्यासपुरा इलाके में गैस रिसाव ने 11 लोगों की जान ले ली है।
    • पुलिस को संदेह है कि इलाके में आंशिक रूप से खुले मैनहोल से ज़हरीली गैस निकली होगी और आस-पास की दुकानों तथा घरों में फैल गई।
      • गैस रिसाव के कारणों की जाँच की जा रही है।
    • पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि मौतें "इनहेलेशन पॉइज़निंग" के कारण हुई हैं।
      • फोरेंसिक विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन सल्फाइड को त्रासदी के लिये ज़िम्मेदार होने का संदेह व्यक्त किया है जो कि एक न्यूरोटॉक्सिक गैस है।
      • एक विशेषज्ञ के अनुसार, संभवतः कुछ अम्लीय अपशिष्ट सीवर में फेंके गए थे जिसने मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य सीवरेज गैसों के साथ प्रतिक्रिया कर हाइड्रोजन सल्फाइड उत्पन्न की।
  • न्यूरोटॉक्सिन:
    • न्यूरोटॉक्सिन ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो सीधे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
      • ये पदार्थ स्नायु या तंत्रिका कोशिकाओं, जो कि मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के अन्य भागों में संकेतों को प्रसारित करने तथा संसाधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, को बाधित या मार भी सकते हैं।
    • न्यूरोटॉक्सिक गैसें:
      • मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड आम न्यूरोटॉक्सिक गैसें हैं।
      • मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड गंधहीन गैसें हैं, लेकिन हाइड्रोजन सल्फाइड में तीखी गंध होती है जिसकी उच्च सांद्रता मनुष्यों हेतु घातक हो सकती है।
        • हाइड्रोजन सल्फाइड इतनी ज़हरीली होती है कि इसमें साँस लेने से किसी व्यक्ति की जान जा सकती है।

भारत में रासायनिक आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा उपाय:

  • पृष्ठभूमि: भोपाल गैस त्रासदी से पहले IPC 1860 ऐसी आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाला एकमात्र कानून था, हालाँकि त्रासदी के तुरंत बाद सरकार ने पर्यावरण को विनियमित करने एवं सुरक्षा उपायों तथा दंडों को निर्धारित करने व निर्दिष्ट करने वाले कई कानून बनाए। कुछ कानून निम्नलिखित हैं:
    • भोपाल गैस रिसाव (दावों की प्रक्रिया) अधिनियम, 1985 ने केंद्र सरकार को भोपाल गैस त्रासदी से उत्पन्न होने वाले या उससे जुड़े दावों को सुरक्षित करने की शक्तियाँ प्रदान कीं।
      • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसे दावों को शीघ्रता और समान रूप से निपटाया जाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act- EPA), 1986 केंद्र सरकार को पर्यावरण में सुधार के उपाय और मानक निर्धारित करने एवं औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण करने की शक्ति देता है।
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 खतरनाक पदार्थों को प्रबंधित करने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने हेतु एक बीमा है।
  • खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन संचालन और सीमा पार संचलन) नियम, 1989 के तहत उद्योगों को प्रमुख दुर्घटना खतरों की पहचान, निवारक उपाय करने एवं नामित अधिकारियों को रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
  • खतरनाक रसायनों के निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 के तहत आयातकों को संपूर्ण उत्पाद सुरक्षा जानकारी सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करनी होती है, साथ ही संशोधित नियमों के अनुसार आयातित रसायनों का परिवहन करना आवश्यक है।
  • रासायनिक दुर्घटनाएँ (आपातकाल, योजना निर्माण, तैयारी और प्रतिक्रिया) नियम, 1996 के तहत केंद्रीय सरकार को रासायनिक दुर्घटनाओं के प्रबंधन के लिये एक केंद्रीय आपदा समूह का गठन करना अनिवार्य है; साथ ही आपदा चेतावनी प्रणाली के रूप में जाने जानी वाली त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करना भी इसी के अंतर्गत आता है।
  • प्रत्येक राज्य को एक संकट समूह स्थापित करने और इसके कार्य के बारे में रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम, 1997: इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण विशिष्ट सुरक्षा उपायों के अधीन उन स्थानों पर EPA1986 के प्रतिबंधों के बारे में अपील पर विचार कर सकता है जिसमें कुछ उद्योग, संचालन, प्रक्रियाएँ संचालित हो सकती हैं अथवा नहीं हो सकती हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal):

  • परिचय:
    • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    • NGT की स्थापना के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद भारत एक विशेष पर्यावरण अधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा देश बन गया, ऐसा करने वाला भारत पहला विकासशील देश है
    • NGT को प्राप्त आवेदनों अथवा अपीलों को दाखिल करने के 6 महीने के भीतर पूरी तरह से निपटान करना अनिवार्य है।
    • अधिकरण की प्रधान बैठक नई दिल्ली में और अन्य चार बैठकें भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई में होंगी।
  • शक्तियाँ:
    • किसी भी पर्यावरणीय कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े सभी नागरिक मामले इस अधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
    • यह पर्यावरणीय मामलों का स्वत: संज्ञान ले सकता है।
    • आवेदन दाखिल करने पर मूल अधिकार क्षेत्र के अलावा NGT के पास न्यायालय (ट्रिब्यूनल) के रूप में अपील सुनने के लिये अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है।
    • NGT, CPC 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, लेकिन 'प्राकृतिक न्याय' के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
    • ट्रिब्यूनल का आदेश/निर्णय/अवार्ड सिविल कोर्ट की डिक्री के रूप में निष्पादन योग्य है।
    • NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय का निष्पादन न्यायालय के आदेश के रूप में करना होता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से कैसे अलग है? (2018)

  1. NGT की स्थापना एक अधिनियम द्वारा की गई है जबकि CPCB सरकार के एक कार्यकारी आदेश द्वारा बनाई गई है।
  2. NGT पर्यावरणीय न्याय प्रदान करता है और उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाज़ी के बोझ को कम करने में मदद करता है, जबकि CPCB धाराओं और कुओं की स्वच्छता को बढ़ावा देता है तथा इसका उद्देश्य देश में हवा की गुणवत्ता में सुधार करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: b

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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