भारतीय राजव्यवस्था
संविधान की नौवीं अनुसूची
- 13 Jun 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लियेसंविधान की नौवीं अनुसूची मेन्स के लियेन्यायिक समीक्षा का महत्त्व, नौवीं अनुसूची की प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका पर कार्यवाही करने से इंकार करते हुए स्पष्ट किया कि ‘आरक्षण एक मौलिक अधिकार’ नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के साथ ही आरक्षण संबंधी कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार पुनः चर्चा में आ गई है।
पृष्ठभूमि
- ध्यातव्य है कि तमिलनाडु के तमाम राजनीतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर राज्य के मेडिकल पाठ्यक्रम में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अभ्यर्थियों को 50 प्रतिशत आरक्षण ने देने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। साथ ही याचिका में संबंधित अभ्यर्थियों के लिये आरक्षण की मांग भी की गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद-32 का उपयोग केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में किया जा सकता है। साथ ही न्यायालय ने प्रश्न किया कि मौजूदा मामले में किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है?
- सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद आरक्षण संबंधी प्रावधानों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने से संबंधित मांग की जा रही है, ताकि उन्हें न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्रदान किया जा सके।
संविधान की 9वीं अनुसूची
- 9वीं अनुसूची में केंद्र और राज्य कानूनों की एक ऐसी सूची है, जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती। वर्तमान में संविधान की 9वीं अनुसूची में कुल 284 कानून शामिल हैं, जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है अर्थात इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
- 9वीं अनुसूची को वर्ष 1951 में प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। यह पहली बार था, जब संविधान में संशोधन किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31B के तहत संरक्षण प्राप्त होता है।
- ध्यातव्य है कि नौवीं अनुसूची प्रकृति में पूर्वव्यापी (Retrospective) है, अर्थात न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित होने के बाद भी यदि किसी कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो वह उस तारीख से संवैधानिक रूप से वैध माना जाएगा।
- पहले संविधान संशोधन के माध्यम से नौवीं अनुसूची में कुल 13 कानून शामिल किये गए थे, जिसके पश्चात् विभिन्न संविधान संशोधन किये गए और अब कानूनों की संख्या 284 हो गई है।
9वीं अनुसूची की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची ऐतिहासिक रूप से भारत में हुए भूमि सुधार कानूनों से जुड़ी हुई है। भूमि सुधार का तात्पर्य भूमि के स्थायित्त्व और प्रबंधन के मौजूदा पैटर्न को बदलने हेतु किये गए संस्थागत सुधारों से है।
- जब भारत में भूमि सुधार शुरू हुए तो उन्हें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के न्यायालयों में चुनौती दी गई, जिसमें से बिहार में न्यायालय ने इसे अवैध घोषित कर दिया था।
- इस विषय परिस्थिति से बचने और भूमि सुधारों को जारी रखने के लिये सरकार ने प्रथम संविधान संशोधन करने का फैसला किया।
- 8 मई, 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अनंतिम संसद में प्रथम संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया, जिसके पश्चात् 16 मई, 1951 को यह विधेयक चयन समिति को भेज दिया गया।
- चयन समिति की रिपोर्ट के बाद 18 जून, 1951 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ ही यह विधेयक अधिनियम बन गया।
समीक्षा के दायरे में नौवीं अनुसूची
- 24 अप्रैल, 1973 को सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंद भारती मामले में आए निर्णय के बाद संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किये गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
- न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि नौवीं अनुसूची के तहत कोई भी कानून यदि मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है तो उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी।
- इस संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि किसी भी कानून को बनाने और इसकी वैधानिकता तय करने की शक्ति किसी एक संस्था पर नहीं छोड़ी जा सकती।
- संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या न्यायपालिका को करनी है और उनकी वैधानिकता की जाँच संसद के बजाय न्यायालय ही करेगा।
- हालाँकि न्यायिक समीक्षा तभी संभव है जब कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा या फिर संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो।