शासन व्यवस्था
लोकपाल स्थापना दिवस
- 16 Jan 2025
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:लोकपाल, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAC), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC), ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, लोक लेखा समिति (PAC), प्रवर्तन निदेशालय (ED) मेन्स के लिये:भ्रष्टाचार-रोधी ढाँचे में लोकपाल की भूमिका और महत्त्व, लोकपाल का सुदृढ़ीकरण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
16 जनवरी 2025 को लोकपाल स्थापना दिवस के अवसर पर सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एन. संतोष हेगड़े और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को सम्मानित किया जाएगा।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, 16 जनवरी 2014 को प्रभावी हुआ।
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नोट: पहला लोकपाल दिवस 16 जनवरी 2025 को दिल्ली कैंट में मनाया जाएगा, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) मुख्य अतिथि होंगे।
लोकपाल क्या है?
- परिचय: लोकपाल एक स्वतंत्र सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत सार्वजनिक कार्यालयों में भ्रष्टाचार की रोकथाम करने और लोक पदाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये की गई है।
- वे "लोकपाल" का कार्य करते हैं और विशिष्ट लोक पदाधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों और संबंधित मामलों की जाँच करते हैं।
- अधिनियम में राज्यों के लिये लोकायुक्त की स्थापना का भी प्रावधान किया गया।
- उत्पत्ति: लोकपाल/लोकायुक्त की अवधारणा स्कैंडिनेवियाई देशों की लोकपाल प्रणाली से उत्पन्न हुई है।
- भारत में, प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने केंद्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की स्थापना की अनुशंसा की थी।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अधिनियमित होने से पहले, कई राज्यों ने राज्य कानूनों के माध्यम से लोकायुक्त संस्था का गठन कर लिया था।
- महाराष्ट्र इस मामले में प्रथम था, जहाँ 1971 में लोकायुक्त निकाय की स्थापना की गई थी।
- वेतन और भत्ते: अध्यक्ष का वेतन और भत्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होते हैं, जबकि सदस्यों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान लाभ मिलते हैं।
- लोकपाल की कार्यवाही:
- शिकायत मिलने पर, लोकपाल अपनी अन्वेषण शाखा के माध्यम से प्रारंभिक जाँच शुरू कर सकता है या मामलों को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसे अभिकरणों को अग्रेषित कर सकता है।
- CVC समूह A और B के अधिकारियों के संबंध में लोकपाल को रिपोर्ट करता है, जबकि यह CVC अधिनियम, 2003 के तहत समूह C और D के संबंध में स्वतंत्र कार्रवाई करता है।
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लोकायुक्त
- परिचय: यह भारत में एक राज्य स्तरीय भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण है, जिसे लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों और आरोपों की जाँच के लिये स्थापित किया गया है।
- नियुक्ति: राज्यपाल राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता से परामर्श के बाद लोकायुक्त व उपलोकायुक्त की नियुक्ति करता है।
- कार्यकाल: अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 65 वर्ष की उम्र तक, जो भी पहले हो, निर्धारित है।
- पुनर्नियुक्ति की अनुमति नहीं है।
- पदच्युति; एक बार नियुक्त होने के बाद लोकायुक्त को सरकार द्वारा बर्खास्त या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है तथा उसे केवल राज्य विधानसभा द्वारा पारित महाभियोग प्रस्ताव के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।
लोकपाल संस्था का क्या महत्त्व है?
- भ्रष्टाचार का मुकाबला: लोकपाल और लोकायुक्तों का उद्देश्य सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जाँच के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करके प्रणालीगत भ्रष्टाचार को दूर करना है, जिससे भ्रष्ट आचरण को रोका जा सके तथा नैतिक शासन को बढ़ावा मिले।
- जवाबदेही बढ़ाना: ये संस्थाएँ सार्वजनिक अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहराकर जवाबदेही बढ़ाती हैं, जिससे सरकार में जनता का विश्वास बहाल करने में सहायता मिलती है।
- नागरिकों को सशक्त बनाना: यह अधिनियम नागरिकों को भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार देता है तथा उन्हें शक्तिशाली अधिकारियों द्वारा प्रतिशोध से सुरक्षा प्रदान करता है।
- सुशासन को बढ़ावा देना: लोकपाल और लोकायुक्तों द्वारा स्वतंत्र निगरानी सार्वजनिक संसाधनों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करती है और अधिकारियों को जनता के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
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अन्य देशों में समान वैश्विक प्रथाएँ
- लोकपाल (स्कैंडिनेवियाई देश): स्वतंत्र प्राधिकारी सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच करते हैं तथा निष्पक्ष व्यवहार और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं
- भ्रष्टाचार विरोधी आयोग (हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर): ICAC (हॉन्गकॉन्ग) एवं CPIB (सिंगापुर) जैसी एजेंसियाँ सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की जाँच और मुकदमा चलाती हैं।
- पब्लिक प्रोटेक्टर (दक्षिण अफ्रीका): सार्वजनिक अधिकारियों के कुप्रशासन और भ्रष्टाचार की जाँच करता है तथा उन्हें जवाबदेह ठहराता है।
- संघीय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ब्राज़ील): उच्च पदस्थ अधिकारियों पर मुकदमा चलाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए भ्रष्टाचार जाँच की देखरेख करना।
लोकपाल से संबंधित सीमाएँ क्या हैं?
- शिकायत दर्ज करने की सीमा अवधि: लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत, सरकारी अधिकारियों के खिलाफ शिकायत कथित भ्रष्टाचार के 7 वर्ष के भीतर या जब शिकायतकर्त्ता को इसकी जानकारी हो, तब दर्ज की जानी चाहिये।
- इस समय-बद्ध प्रतिबंध के कारण भ्रष्टाचार के पुराने मामले, विशेषकर वे मामले जो बहुत बाद में पता चले, छूट सकते हैं।
- झूठी शिकायतों के लिये कठोर दंड: झूठी शिकायतें दर्ज करने पर कठोर दंड का प्रावधान, उचित होने पर भी, व्यक्तियों को शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित कर सकता है।
- स्वतंत्रता के मुद्दे: लोकपाल और लोकायुक्तों को अपनी स्वतंत्रता के संबंध में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि राजनीतिक प्रभाव के कारण उनकी निष्पक्ष रूप से कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
- भ्रष्टाचार से निपटने में अप्रभावीता: वर्ष 2019-20 और 2023 के बीच, लोकपाल को 8,703 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 5,981 का समाधान किया गया, जो भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से निपटने में इसकी अक्षमता को दर्शाता है।
- हालाँकि, इसने भ्रष्टाचार के लिये किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा शुरू नहीं किया है, जैसा कि अप्रैल, 2023 की संसदीय समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।
- अपवाद: प्रधानमंत्री लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंध, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित मुद्दे इससे बाहर रखे गए हैं, जिससे संवेदनशील मामलों पर इसका अधिकार सीमित हो गया है।
- कोई निरीक्षण तंत्र नहीं: लोकपाल की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करने के लिये कोई व्यापक तंत्र नहीं है, जिससे इसकी जवाबदेही को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
आगे की राह:
- समीक्षा सीमा अवधि: विलंबित मामलों को समायोजित करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिये शिकायत दर्ज करने की 7 वर्ष की अवधि को बढ़ाना या उसमें लचीलापन प्रदान करना।
- संतुलित दंड: दुरुपयोग को रोकने के लिये झूठी शिकायतों के लिये आनुपातिक दंड लागू तथा वैध शिकायतों को प्रोत्साहित करना।
- स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: राजनीतिक प्रभाव के विरुद्ध सुरक्षा उपायों को मज़बूत, चयन प्रक्रियाओं में सुधार करना तथा स्वायत्तता बनाए रखने के लिये संस्थागत समर्थन प्रदान करना।
- सरकार को द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करना चाहिये, जो लोकपाल की जवाबदेहिता सुनिश्चित करने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा इसकी समग्र परिचालन दक्षता में सुधार लाने पर केंद्रित है।
- अन्य एजेंसियों के साथ स्पष्ट संबंध: CBI पर लोकपाल की पर्यवेक्षी शक्तियों का स्पष्ट चित्रण, साथ ही प्रवर्तन निदेशालय और CVC जैसी एजेंसियों के साथ सुपरिभाषित समन्वय तंत्र, क्षेत्राधिकार संबंधी विवादों से बचने तथा अंतर-एजेंसी सहयोग को बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCAC) के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं, विशेष रूप से मज़बूत व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानूनों वाले देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को एकीकृत करना चाहिये।
- इससे नागरिकों को प्रतिशोध के भय के बिना भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में भ्रष्टाचार से निपटने में लोकपाल की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। इसके समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं तथा इसकी प्रभावशीलता को कैसे बढ़ाया जा सकता है? चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 'ट्रान्स्पेरेन्सी इन्टरनेशनल' के ईमानदारी सूचकांक में, भारत काफी नीचे के पायदान पर है। संक्षेप में उन विधिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों पर चर्चा कीजिये, जिनके कारण भारत में सार्वजनिक नैतिकता का ह्रास हुआ है। (2016) प्रश्न. 'राष्ट्रीय लोकपाल कितना भी प्रबल क्यों न हो, सार्वजनिक मामलों में अनैतिकता की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।' विवेचना कीजिये। (2013) |