नो-डिटेंशन पालिसी समाप्ति विधेयक | 19 Jul 2018
चर्चा में क्यों?
लोकसभा ने हाल ही में नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2017 पारित कर दिया है जो कक्षा पाँच और आठ में छात्रों को फेल किये बिना उनकी प्राथमिक शिक्षा पूरी कराने वाली नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करना चाहता है| यह कानून 1.4 मिलियन प्राथमिक विद्यालयों के 180 मिलियन से अधिक छात्रों को प्रभावित करेगा।
प्रमुख बिंदु
- दरअसल 22 राज्यों ने इस पॉलिसी के कारण शिक्षा का स्तर गिरने की बात कहते हुए इसे समाप्त करने की मांग केंद्र सरकार से की थी। इसके बाद संशोधन का फैसला लिया गया था।
- संशोधित बिल के तहत अब पाँचवीं और आठवीं कक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले छात्रों को एक और मौका दिया जाएगा। इस परीक्षा में भी अगर छात्र स्तरीय प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं तो उन्हें फेल घोषित कर दोबारा उसी कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा।
- इस विधेयक के पास होने पर प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आने की उम्मीद है|
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, चार या पाँच राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्य नो-डिटेंशन पालिसी ख़त्म करने के पक्ष में हैं|
- आरटीई संशोधन विधेयक के अनुसार, छात्रों को परीक्षा उत्तीर्ण करने के दो मौके दिये जाएंगे और अगर वे दोनों प्रयासों में विफल हो जाएंगे तो उन्हें फेल घोषित कर दोबारा उसी कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा।
- छात्रों के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा, लेकिन अगर वे सीखने के स्तर तक पहुँचने में नाकाम रहते हैं तो स्कूल के अधिकारियों के पास छात्रों को उसी कक्षा में प्रवेश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा|
- हालाँकि, बिल में राज्यों को स्कूल, ज़िला या राज्य स्तर पर परीक्षाओं का चयन या संचालन करने के लिये नो-डिटेंशन पालिसी जारी रखने की अनुमति देने का प्रावधान है।
- अप्रैल 2010 में आरटीई अधिनियम की शुरुआत के बाद से पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक कोई भी छात्र फेल नहीं हुआ था, लेकिन इस अभ्यास ने शिक्षा के खराब स्तर के लिये इसे आलोचना का शिकार बना दिया।
- गैर-लाभकारी संगठन ‘प्रथम’ द्वारा प्रकाशित ग्रामीण भारत के लिये शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (ASER) के अनुसार, पाँचवी कक्षा के सभी छात्रों का अनुपात जो कि कक्षा दो के स्तर की पाठ्य पुस्तक पढ़ सकते थे, 2014 में 48.1% से गिरकर 2016 में 47.8% हो गया| अंकगणित और अंग्रेज़ी विषय में भी यही स्थिति देखी गई।
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) समेत विभिन्न दलों के कई सांसदों ने छात्रों के खराब प्रदर्शन के लिये शिक्षकों पर जवाबदेही तय करने की मांग की।
- शिक्षा के अधिकार के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, छात्रों को 8वीं कक्षा तक फेल होने के बाद भी अगली कक्षा में प्रवेश दे दिया जाता है, इसे ही हम 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' के नाम से जानते हैं।
नो-डिटेंशन पॉलिसी समाप्त करने वाला विधेयक लोकसभा से पारित | 19 Jul 2018
चर्चा में क्यों?
लोकसभा ने हाल ही में नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2017 पारित कर दिया है जो कक्षा पाँच और आठ में छात्रों को फेल किये बिना उनकी प्राथमिक शिक्षा पूरी कराने वाली नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करना चाहता है| यह कानून 1.4 मिलियन प्राथमिक विद्यालयों के 180 मिलियन से अधिक छात्रों को प्रभावित करेगा।
प्रमुख बिंदु
- दरअसल 22 राज्यों ने इस पॉलिसी के कारण शिक्षा का स्तर गिरने की बात कहते हुए इसे समाप्त करने की मांग केंद्र सरकार से की थी। इसके बाद संशोधन का फैसला लिया गया था।
- संशोधित बिल के तहत अब पाँचवीं और आठवीं कक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले छात्रों को एक और मौका दिया जाएगा। इस परीक्षा में भी अगर छात्र स्तरीय प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं तो उन्हें फेल घोषित कर दोबारा उसी कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा।
- इस विधेयक के पास होने पर प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आने की उम्मीद है|
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, चार या पाँच राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्य नो-डिटेंशन पालिसी ख़त्म करने के पक्ष में हैं|
- आरटीई संशोधन विधेयक के अनुसार, छात्रों को परीक्षा उत्तीर्ण करने के दो मौके दिये जाएंगे और अगर वे दोनों प्रयासों में विफल हो जाएंगे तो उन्हें फेल घोषित कर दोबारा उसी कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा।
- छात्रों के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा, लेकिन अगर वे सीखने के स्तर तक पहुँचने में नाकाम रहते हैं तो स्कूल के अधिकारियों के पास छात्रों को उसी कक्षा में प्रवेश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा|
- हालाँकि, बिल में राज्यों को स्कूल, ज़िला या राज्य स्तर पर परीक्षाओं का चयन या संचालन करने के लिये नो-डिटेंशन पालिसी जारी रखने की अनुमति देने का प्रावधान है।
- अप्रैल 2010 में आरटीई अधिनियम की शुरुआत के बाद से पहली से लेकर आठवीं कक्षा तक कोई भी छात्र फेल नहीं हुआ था, लेकिन इस अभ्यास ने शिक्षा के खराब स्तर के लिये इसे आलोचना का शिकार बना दिया।
- गैर-लाभकारी संगठन ‘प्रथम’ द्वारा प्रकाशित ग्रामीण भारत के लिये शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति (ASER) के अनुसार, पाँचवी कक्षा के सभी छात्रों का अनुपात जो कि कक्षा दो के स्तर की पाठ्य पुस्तक पढ़ सकते थे, 2014 में 48.1% से गिरकर 2016 में 47.8% हो गया| अंकगणित और अंग्रेज़ी विषय में भी यही स्थिति देखी गई।
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) समेत विभिन्न दलों के कई सांसदों ने छात्रों के खराब प्रदर्शन के लिये शिक्षकों पर जवाबदेही तय करने की मांग की।
- शिक्षा के अधिकार के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, छात्रों को 8वीं कक्षा तक फेल होने के बाद भी अगली कक्षा में प्रवेश दे दिया जाता है, इसे ही हम 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' के नाम से जानते हैं।
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