चलनिधि समायोजन सुविधा | 29 Oct 2022
प्रिलिम्स के लिये:चलनिधि (तरलता) समायोजन सुविधा (LAF), मौद्रिक नीति, नरसिंहम समिति मेन्स के लिये:चलनिधि समायोजन सुविधा (LAF) |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अक्तूबर 2022 में बैंकिंग प्रणाली में तरलता को बढ़ावा देने के लिये 72,860.7 करोड़ रुपए का निवेश किया। त्योहारी सीज़न के दौरान क्रेडिट की अधिक मांग के चलते तरलता की स्थिति सख्त होने के बाद यह अप्रैल 2019 के बाद से सबसे अधिक है।
- रुपए की अस्थिरता को कम करने के लिये यह विदेशी मुद्रा बाज़ार में केंद्रीय बैंक का हस्तक्षेप है।
तरलता:
- बैंकिंग प्रणाली में तरलता आसानी से उपलब्ध नकदी को संदर्भित करती है जिससे बैंक अल्पकालिक व्यापार और वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
- किसी निश्चित दिन पर यदि बैंकिंग प्रणाली तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत RBI से एक शुद्ध उधारकर्त्ता है, तो इसे तरलता के घाटे की स्थिति कहा जाता है और यदि बैंकिंग प्रणाली RBI के लिये एक शुद्ध ऋणदाता है तो इसे तरलता अधिशेष कहा जाता है।
तरलता समायोजन सुविधा (LAF):
- LAF भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के तहत प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौतों, रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से ऋण प्राप्त करने या रिवर्स रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से RBI को ऋण प्रदान करने की अनुमति प्रदान करता है।
- इसे वर्ष 1998 के बैंकिंग क्षेत्र सुधारों पर नरसिंहम समिति के परिणाम के एक भाग के रूप में पेश किया गया था।
- तरलता समायोजन सुविधा के दो घटक रेपो (पुनर्खरीद समझौता) और रिवर्स रेपो हैं। जब बैंकों को अपनी दैनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिये तरलता की आवश्यकता होती है, तो वे रेपो के माध्यम से RBI से उधार लेते हैं। जब बैंकों के पास धन की अधिकता होती है, तो वे रिवर्स रेपो प्रणाली के माध्यम से रिवर्स रेपो दर पर RBI को उधार देते हैं।
- इससे मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाकर व घटाकर अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का प्रबंधन किया जा सकता है।
- LAF का उपयोग बैंकों को आर्थिक अस्थिरता की अवधि के दौरान या उनके नियंत्रण से परे होने वाले उतार-चढ़ाव की स्थिति में अल्पकालिक नकदी की कमी को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- विभिन्न बैंक रेपो समझौते के माध्यम से पात्र प्रतिभूतियों को बंधक के रूप में उपयोग करते हैं और अपनी अल्पकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये धन का उपयोग करते हैं, इस प्रकार इनकी स्थिरता बनी रहती है।
- इस सुविधा को दिन-प्रतिदिन के आधार पर लागू किया जाता है क्योंकि बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास ओवरनाइट बाज़ार में पर्याप्त पूंजी है।
- चलनिधि समायोजन सुविधाओं का लेन-देन नीलामी के माध्यम से दिन के एक निर्धारित समय पर होता है।
मौद्रिक नीति:
- मौद्रिक नीति का तात्पर्य निर्दिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्रीय बैंक द्वारा अपने नियंत्रण में मौद्रिक साधनों का उपयोग करना है।
- RBI की मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य, विकास को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।
- सतत् विकास के लिये मूल्य स्थिरता एक आवश्यक पूर्व शर्त है।
- संशोधित RBI अधिनियम, 1934 में हर पाँच साल में एक बार रिज़र्व बैंक के परामर्श से भारत सरकार द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति लक्ष्य (4% + -2%) रखने का भी प्रावधान है।
- मौद्रिक नीति के उपकरण:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न: क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि स्थिर GDP वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अच्छी स्थिति प्रदान की है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |