अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एक उदार सरोगेसी कानून की ज़रूरत
- 12 Aug 2017
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चर्चा में क्यों ?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर 31 सदस्यीय संसद की स्थायी समिति ने सरोगेट के बारे में सरकार के विचारों को देखते हुए इस विषय पर और अधिक उदार नियमों की सिफारिश की है ताकि साथ-साथ रहने वाले (लिव-इन) जोड़ों, तलाकशुदा महिलाओं और विधवाओं को भी सरोगेट्स चुनने की अनुमति मिल सके। सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016 को लोक सभा में 21 नवंबर, 2016 को पेश किया गया था और 12 जनवरी, 2017 को राज्य सभा के अध्यक्ष द्वारा स्थायी समिति को भेजा गया था।
इस कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
- यह कानून सरोगेसी का प्रभावी विनियमन, वाणिज्यिक सरोगेसी की रोकथाम और ज़रूरतमंद दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित करेगा।
- नैतिक लाभ उठाने की चाह रखने वाले सभी भारतीय विवाहित बांझ दंपतियों को इससे फायदा मिलेगा। इसके अलावा सरोगेट माता और सरोगेसी से उत्पन्न बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित होंगे।
- यह कानून देश में सरोगेसी सेवाओं को विनियमित करेगा । हालाँकि मानव भ्रूण और युग्मकों की खरीद-बिक्री सहित वाणिज्यिक सरोगेसी पर निषेध होगा, लेकिन कुछ खास उद्देश्यों के लिये निश्चित शर्तों के साथ ज़रूरतमंद बांझ दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
- इस प्रकार यह सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करेगा, सरोगेसी के वाणिज्यिकरण पर रोक लगेगी और सरोगेट माताओं एवं सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों के संभावित शोषण पर रोक लगेगी।
सरोगेसी के केंद्र के रूप में भारत
- भारत विभिन्न देशों की दंपतियों के लिये सरोगेसी केंद्र के तौर पर उभरा है और यहाँ अनैतिक गतिविधियों, सरोगेट माताओं के शोषण, सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को त्यागने और मानव भ्रूणों एवं युग्मकों की खरीद-बिक्री में बिचौलिये के रैकेट से संबंधित घटनाओं की सूचनाएँ मिली हैं।
- पिछले कुछ वर्षों से भारत में चल रही वाणिज्यिक सरोगेसी की व्यापक निंदा करते हुए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अभियान चलाया जा रहा है जिसमें वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाने और नैतिक परोपकारी सरोगेसी को अनुमति दिये जाने की ज़रूरतों को उजागर किया गया है।
- भारत के विधि आयोग की 228वीं रिपोर्ट में भी उपयुक्त कानून बनाकर वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाने और ज़रूरतमंद भारतीय नागरिकों के लिये नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति की सिफारिश की गई है।
- यह विधेयक जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू होगा।
मौजूदा सरोगेसी बिल में क्या कमी है ?
- संसद की स्थायी समिति ने भारतीय समाज में मौजूद असमान लिंग शक्ति समीकरण की आलोचना करते हुए, जो कि महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, सरोगेसी के मामले में परोपकारिता के बजाय मुआवज़ा दिये जाने को रेखांकित किया है।
- समिति ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016 में मौजूद विवाहित जोड़ो के लिये परोपकारी-सरोगेसी प्रावधान की खिंचाई की है तथा इस कानून के दायरे से लिव-इन जोड़ों को बाहर रखने की भी आलोचना की है।
- इसने यह सिफारिश की है कि लिव-इन रिश्तों में शामिल उन जोड़ों को परिवार के अंदर और बाहर दोनों ओर से सरोगेट चुनने की अनुमति दी जानी चाहिये। पैनल के अनुसार परोपकारी सरोगेसी शोषण के समान है क्योंकि इसमें सरोगेट महिला को भुगतान नहीं किया जाता है।
दुनिया भर के उदाहरण
- विश्व के अन्य उदाहरणों को रेखांकित करते हुए, समिति ने कहा कि सरोगेट को मुआवज़ा प्रदान करना ही सभी जगह प्रचलन में है और सरकार को परोपकारिता पर ज़ोर देने की बजाय सरोगेट के लिये मुआवज़े को ठीक करने का एक तरीका तैयार करना चाहिये।
- समिति ने किसी महिला के जीवनकाल में केवल एक बार सरोगेट को सीमित करने के सरकार के फैसले का समर्थन किया है।
- यह भारत में सरोगेसी सेवाओं का लाभ लेने से विदेशियों पर रोक लगाने के निर्णय के पक्ष में है।