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जैव विविधता और पर्यावरण

यमुना नदी में प्रदूषण पर निगरानी समिति की रिपोर्ट

  • 11 Dec 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?


यमुना नदी की सफाई की देखरेख के लिये नियुक्त एक निगरानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी का एक छोटा सा हिस्सा ही इस नदी के अधिकांश प्रदूषण लिये ज़िम्मेदार है।

प्रमुख बिंदु

  • उत्तराखंड के यमुनोत्री से प्रयाग तक यमुना नदी की कुल लंबाई 1370 किमी. है। दिल्ली में यह नदी केवल 54 किमी. के क्षेत्र (पल्ला से बदरपुर के बीच) से होकर गुज़रती है।
  • निगरानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी का 22 किमी. का हिस्सा (नदी की कुल लंबाई का 2% से भी कम) सबसे ज़्यादा प्रदूषित है और नदी के कुल प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान इस क्षेत्र का है।
  • वजीराबाद से ओखला के बीच ऐसे कई स्थान हैं जहाँ नदी 9 माह तक सूखी रहती है।
  • जब तक नदी में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित नहीं किया जाता तब तक इस नदी का पुनरुद्धार संभव नहीं है।
  • समिति ने पल्ला और वजीराबाद में यमुना के पानी की गुणवत्ता के परीक्षण के लिये ऑनलाइन प्रणाली की व्यवस्था करने हेतु DPCC (Delhi Pollution Control Committee) और CPCB (Central Pollution Control Board) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की है।

प्रदूषण का कारण

  • नदी के इस क्षेत्र में प्रदूषण का प्रमुख कारण नदी में गैर-शोधित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों का निपटान है।
  • समिति की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में दूषित जल उपचार संयंत्रों (CETP) के उपयोग की क्षमता भी कम है। दिल्ली में 28 औद्योगिक क्लस्टर हैं और इनमें से 17 क्लस्टर 13 CETP से जुड़े हुए हैं। शेष 11 क्लस्टर किसी भी CETP से नहीं जुड़े हैं।
  • प्रदूषण का एक और कारण नदी में औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों का प्रत्यक्ष एवं अनियमित निपटान है क्योंकि घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्टों के आपस में मिल जाने के बाद उनका शोधन संभव नहीं हो पाता है।

समिति के बारे में

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने सेवानिवृत्त विशेषज्ञ सदस्य बी.एस सजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की सदस्यता वाली निगरानी समिति का गठन किया था और 31 दिसंबर, 2018 तक नदी की सफाई पर एक कार्ययोजना व विस्तृत रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण

  • पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत 18 अक्तूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
  • यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों के निपटान के लिये आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है।
  • यह अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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