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भारतीय राजनीति

विधान परिषद

  • 19 May 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना का निर्णय लिया है

  • परिषद की स्थापना के लिये एक विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत करना होता है और उसके बाद राज्यपाल की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। वर्ष 1969 में पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु:

गठन का आधार:

  • भारत में विधायिका की द्विसदनीय प्रणाली है।
  • जिस प्रकार संसद के दो सदन होते हैं, उसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार राज्यों में विधानसभा के अतिरिक्त एक विधान परिषद भी हो सकती है।

विधान परिषद वाले छह राज्य: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक।

  • वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया। अंततः परिषद को समाप्त करने के लिये भारत की संसद द्वारा इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जानी बाकी है।
  • वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया।

अनुच्छेद 169 (गठन और उन्मूलन):

  • संसद एक विधान परिषद को (जहाँ यह पहले से मौजूद है) का विघटन कर सकती है और (जहाँ यह पहले से मौजूद नहीं है) इसका गठन कर सकती है। यदि संबंधित राज्य की विधानसभा इस संबंध में संकल्प पारित करे। इस तरह के किसी प्रस्ताव का राज्य विधानसभा द्वारा पूर्ण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है।
  • विशेष बहुमत का तात्पर्य:
    • विधानसभा की कुल सदस्यता का बहुमत और
    • विधानसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत।

संरचना:

  • संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत, किसी राज्य की विधान परिषद में राज्य विधानसभा की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक और 40 से कम सदस्य नहीं होंगे
  • राज्य सभा के समान विधान परिषद एक सतत् सदन है, अर्थात् यह एक स्थायी निकाय है जिसका विघटन नहीं होता। विधान परिषद  के एक सदस्य (Member of Legislative Council- MLC) का कार्यकाल छह वर्ष का होता है, जिसमें एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं।

निर्वाचन पद्धति:

  • एक तिहाई MLC राज्य के विधायकों द्वारा चुने जाते हैं,
  • इसके अलावा 1/3 सदस्य स्थानीय निकायों जैसे- नगरपालिका और ज़िला बोर्डों आदि द्वारा चुने जाते हैं,
  • 1/12 सदस्यों का निर्वाचन 3 वर्ष से अध्यापन कर रहे लोग चुनते हैं तथा 1/12 सदस्यों को राज्य में रह रहे 3 वर्ष से स्नातक निर्वाचित करते हैं।
  • शेष सदस्यों का नामांकन राज्यपाल द्वारा उन लोगों के बीच से किया जाता है जिन्हें साहित्य, ज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का विशेष ज्ञान तथा व्यावहारिक अनुभव हो।  

राज्य सभा की तुलना में विधान परिषद:

  • परिषदों की विधायी शक्ति सीमित है। राज्यसभा के विपरीत, जिसके पास गैर-वित्तीय विधान को आकार देने की पर्याप्त शक्तियाँ हैं, विधान परिषदों के पास ऐसा करने के लिये संवैधानिक जनादेश नहीं है।
  • विधानसभाएँ, परिषद द्वारा कानून में किये गए सुझावों/संशोधनों को रद्द कर सकती हैं।
  • इसके अलावा राज्यसभा सांसदों के विपरीत, MLCs, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है जबकि परिषद का अध्यक्ष परिषद के किसी एक सदस्य को ही चुना जाता है।

विधान परिषद की भूमिका:

  • यह उन व्यक्ति विशेष की स्थिति को सुनिश्चित कर सकती है जिन्हें चुनाव के माध्यम से नहीं चुना जा सकता है परंतु वे विधायी प्रक्रिया (जैसे कलाकार, वैज्ञानिक, आदि) में योगदान करने में सक्षम हैं।
  • यह विधानसभा द्वारा जल्दबाजी में लिये गए फैसलों पर नज़र रख सकती है।

विधान परिषद के खिलाफ तर्क:

  • यह विधि निर्माण की प्रक्रिया में देरी कर सकता है, साथ ही इसे राज्य के बजट पर बोझ माना जाता है।
  • इसका उपयोग उन नेताओं को संगठित करने के लिये भी किया जा सकता है जो चुनाव नहीं जीत पाए हैं।

स्रोत: द हिंदू

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