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जुए को कानूनी वैधता प्रदान करने पर नैतिक द्वंद की स्थिति में विधि आयोग

  • 31 May 2017
  • 7 min read

संदर्भ
हाल ही में विधि आयोग ने ‘जुए’ (gambling) और सट्टेबाज़ी (betting) के संदर्भ में जनता तथा इसके सभी हितधारकों से अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा है।  दरअसल, इस समय आयोग इस विषय में नैतिक द्वंद का सामना कर रहा है।  

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, जुआ देश भर में खेला जाता है, यहाँ तक कि यह कई परिवारों की बर्बादी का कारण भी है। अतः इस संदर्भ में जनता की राय जानना ज़रूरी है, इसके लिये सर्वप्रथम यह जानना उचित होगा कि जनता जुए एवं सट्टेबाज़ी को कानूनी वैधता दिए जाने के पक्ष में है अथवा नहीं?  
  • इसके पश्चात जनता की इन टिप्पणियों को एक रिपोर्ट में दर्ज किया जाएगा और इस रिपोर्ट को सरकार को सौंप दिया जाएगा।  विदित हो कि जुआ और सट्टेबाज़ी के संबंध में यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोग से आई.पी.एल. सट्टेबाज़ी कांड में सट्टेबाज़ी को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान करने की संभावना पर अध्ययन करने के पश्चात् उठाया गया है। 
  • वस्तुतः जुए पर बने कानून कई वर्षों से विवाद का विषय रहे हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि जुए को एक पुराने कानून ‘सार्वजानिक जुआ अधिनियम,1867’ के अंतर्गत परिभाषित किया गया है। यद्यपि संविधान में सभी राज्यों को उनके स्वयं के जुआ कानून को लागू करने की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन विभिन्न राज्यों के कानूनों में कोई समरूपता नहीं होती है और इनमें से अधिकांश कानून भौतिक गैंबलिंग (ऑनलाइन अथवा दृश्य गैंबलिंग के लिये नहीं) के संबंध में ही बनाए गए हैं जिसे अपराध, भ्रष्टाचार और धन शोधन के मार्ग के रूप में देखा जाता है। 
  • स्पष्ट है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत ऑनलाइन संप्रेषण और ऐसी सामग्री पर प्रतिबंध लगाया गया है जो लोगों को भ्रष्ट बनाती है। 

जुआ और सट्टेबाज़ी के दुष्परिणाम

  • वर्तमान में जुआ और सट्टेबाज़ी से कारण कई घर नीलाम हो रहे हैं और कई लोग जेल में हैं।  ऑनलाइन जुआ खेलना और सट्टेबाज़ी एक ऐसा क्षेत्र है जिससे छुटकारा पाना आसान नहीं है। ऐसा माना जाता है कि गैर-कानूनी जुआ कारोबार में अवैध तरीके से कमाया हुआ धन लगाया जाता है जिससे लगभग एक समानांतर अर्थव्यवस्था (parallel economy) का सृजन हो रहा है जिसमें वैध तरीके से प्राप्त की गई आय को काले धन में बदला जा रहा है। इस काले धन का उपयोग अन्य देशों के जुआ ऑपरेटरों को बर्बाद करने के लिये भी किया जा रहा है। 
  • जुआ और सट्टेबाज़ी का एक-दूसरे से निकट संबंध है। जुआ और सट्टेबाज़ी के विरुद्ध बनाए गए सख्त नियम भी मुश्किल से ही ऐसी गुप्त गतिविधियों से बचाव करेंगे। 
  • वर्तमान में विभिन्न गतिविधियों की वैधता (जिनमें घुड़सवारी पर सट्टेबाज़ी और ताश खेलना शामिल हैं) से संबंधित मुद्दे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आ रहे हैं।  
  • के.आर. लक्ष्मण बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि घुड़सवारी ‘मौके की बजाय कौशल का खेल’(game of skill rather than chance) है। 
  • आंध्र प्रदेश राज्य बनाम के. सत्यनारायण एवं ओर्स मामले में न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि रूमी (ताश) कौशल का खेल है तथा यह मौके पर पूर्णरूप से निर्भर नहीं है। 

आयोग ने निम्नलिखित प्रश्नों पर जनता और हितधारकों से उनके विचार प्रस्तुत करने को  कहा है --

  • क्या सट्टेबाज़ी और जुए को वैधता प्रदान करने से गैर- क़ानूनी गतिविधियों से छुटकारा पाया जा सकता है?
  • क्या जुए एवं सट्टेबाज़ी को लाइसेंस देने से सरकार के राजस्व में वृद्धि तथा रोज़गारों का सृजन होगा?
  • क्या भारतीय परिस्थितियों में सट्टेबाज़ी और जुए को वैधता प्रदान करना नैतिक दृष्टि से उचित होगा?
  • वह संभावित मॉडल क्या हो सकता है जिसके माध्यम से इस प्रकार की गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों को दिवालिया होने से बचाया जा सके?
  • यदि जुए और सट्टेबाज़ी को कानूनी वैधता प्रदान की जाती है तो क्या विदेशी सट्टेबाज़ी और जुआ कंपनियों को देश से बाहर कर दिया जाएगा?

क्या है ‘जुआ’?
जुआ खेलने से तात्पर्य किसी अवसर पर किसी व्यक्ति (जिसे हितधारक कहा जाता है) द्वारा धन और कीमती सामान की बाजी लगाने से है जिसमें व्यक्ति पहले से ही यह अपेक्षा रखता है कि वह धन या कीमती सामान को जीत लेगा। इसके लिये तीन अवयवों की उपस्थिति अनिवार्य होती है यथा- विचार, मौका और पुरस्कार। 

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 
इसे आई.टी.ए. 2000 अथवा आई.टी. अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत सरकार का एक अधिनियम है जिसे 17 अक्तूबर, 2000 को अधिसूचित किया गया था। यह भारत का ऐसा प्राथमिक कानून है जो साइबर अपराध और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य से संबंधित है।

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