विधि आयोग एक साथ चुनावों के पक्ष में | 18 Apr 2018
चर्चा में क्यों?
भारत के विधि आयोग द्वारा एक ‘श्वेत पत्र’ मसौदा जारी कर 2019 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने की सिफारिश की गई है। ध्यातव्य है कि ‘श्वेत पत्र’ में आयोग की "संभावित सिफारिशों" की एक श्रृंखला है।
पृष्ठभूमि
- हमारे देश का पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था।
- आयोग का कहना है कि 1967 तक स्वतंत्रता के पहले दो दशकों के दौरान देश में एक साथ चुनाव हुए थे।
- 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं तथा लोकसभा के विघटन के बाद एक साथ चुनावों के संचालन में रुकावट हुई।
भारत का विधि आयोग (Law Commission of India ) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गठित विधि आयोग आज़ादी से पूर्व
स्वतंत्र भारत में गठित विधि आयोग
आयोग की संरचना
कार्यप्रणाली
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श्वेत-पत्र मसौदे में निहित प्रमुख सिफारिशें
- पहला सुझाव यह है कि संविधान के लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा तथा विधानसभाओं के नियमों में संशोधन करके देश में एक साथ चुनावों को बहाल किया जा सकता है।
- यह सिफारिश करता है कि 2019 में चरणबद्ध तरीके से चुनाव हो सकते हैं-
♦ पहले चरण में 2019 में लोकसभा के साथ समकालिक चुनावों में विधायकों का चुनाव एक साथ मिलकर किया जा सकता है।
♦ जबकि शेष राज्यों का चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनाव के साथ किया जा सकता है।
♦ आयोग ने गैर-विश्वास प्रस्ताव और सदन के समयपूर्व विघटन को एक साथ चुनावों के लिये प्रमुख बाधाओं के रूप में माना है और आयोग का कहना है कि ऐसी पार्टियाँ जो अविश्वास प्रस्ताव पेश करती हैं, उन्हें वैकल्पिक सरकार के लिये भी सुझाव देना चाहिये। - संसद या विधानसभा की स्थिति में लोकसभा या विधानसभा में गतिरोध को रोकने के लिये दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून की कठोरता में छूट की सिफारिश भी की गई है।
- आयोग का सुझाव है कि मध्यावधि चुनाव के मामले में, नई लोकसभा या विधानसभा केवल पिछली लोकसभा/विधानसभा की शेष अवधि के लिये ही सेवा करेगी, न कि पाँच साल की अवधि के लिये।
- आयोग का कहना है कि केंद्र को संविधान में संशोधन करना चाहिये, यदि सहमति हो, तो सभी राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि होनी चाहिये ताकि किसी भी चुनौती से बचा जा सके।
- आयोग का सुझाव है कि प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री का निर्वाचन लोकसभा अध्यक्ष की तरह पूरे सदन की अगुवाई में होना चाहिये।