केरल में नवपाषाण काल की सबसे बड़ी कुल्हाड़ी | 18 Jul 2017
संदर्भ
केरल में प्राप्त एक 3,000 साल पुरानी नवपाषाणकालीन कुल्हाड़ी को राज्य के एक संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया है। राज्य के अन्य हिस्सों से भी ग्रेनाइट व बेसाल्ट की कुल्हाड़ियों की खोज की जा चुकी है जिससे वहाँ नवपाषाणकालीन संस्कृति के प्रचलन का पता चलता है।
प्रमुख बिंदु
- केरल में नवपाषाण काल की अब तक की सबसे बड़ी खोजी गई 3000 वर्ष पुरानी पत्थर की कुल्हाड़ी को नया जीवन मिला है।
- पिछले दो सालों से कासारगोड ज़िले के एक गाँव के कार्यालय में 1.48 किलोग्राम भार तथा 22 सेंटीमीटर लंबी ग्रेनाइट की इस कुल्हाड़ी को आखिरकार कोझीकोड के ईस्ट हिल में स्थित पझासी राजा पुरातत्त्व संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया है।
- राज्य में अब तक प्राप्त कुल्हाड़ियों की लम्बाई 12 से 16 सेंटीमीटर के बीच है, जबकि इसकी लम्बाई 22 सेंटीमीटर है।
- इस कुल्हाड़ी में कुछ निशान हैं, संभवतः इसका अर्थ यह है कि यह एक लकड़ी के हैंडल पर लगाई गई थी। निश्चित रूप से, इस उपकरण का इस्तेमाल वनों को साफ करने के लिये किया गया होगा।
- केरल में एक समृद्ध नवपाषाण संस्कृति का साक्ष्य उभर रहा है, अतः इसके आगे के अध्ययनों का आयोजन किया जाना चाहिये।
पाषाण काल
- पाषाण काल को तीन भागों में बाँटा जाता है – पुरापाषण काल (palaeolithic) मध्यपाषाण काल (Mesolithic), नवपाषाण काल (Neolithic)।
- पुरापाषण काल का समय – 25 से 20 लाख वर्ष से लेकर 12000 वर्ष पूर्व तक।
- मध्यपाषण काल का समय – 12000 वर्ष पूर्व से 10000 ई.पू. तक।
- नवपाषाण काल का समय - 9000 ई.पू. से 5000 ई.पू. तक।
नवपाषाण काल
- नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारो एवं हथियारों का प्रयोग करते थे। इस काल के लोग विशेष रूप से पत्थर की बनी कुल्हाड़ियों का प्रयोग करते थे। ऐसी कुल्हाड़ियाँ देश के पहाड़ी इलाकों के अनेक भागों में विशाल मात्रा में पाई गई हैं।
- इस काल की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ – कृषि एवं पशुपालन का विकास, मृदभांड का निर्माण, पत्थर के पॉलिशदार उपकरणों का निर्माण एवं स्थायी निवास।