मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड | 16 Nov 2019
प्रीलिम्स के लिये:
मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड।
मेन्स के लिये:
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश परियोजनाएँ।
चर्चा में क्यों?
भारतीय रेलवे ने मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड (Madhepura Electric Locomotive Pvt. Ltd.-MELPL) के साथ खरीद-सह-रखरखाव समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। यह भारतीय रेलवे और मेसर्स अल्सटॉम का एक संयुक्त उद्यम है।
परियोजना से संबंधित प्रमुख बिंदु
- किसी भी रेलवे द्वारा दुनिया में पहली बार बड़ी लाइनों के नेटवर्क पर इतनी अधिक हॉर्स पावर वाले लोकोमोटिव का परीक्षण किया जा रहा है।
- इस परियोजना के तहत बिहार के मधेपुरा में टाउनशिप के साथ यह फैक्टरी स्थापित की गई है, जहाँ प्रति वर्ष 120 लोकोमोटिव का निर्माण करने की क्षमता है।
- एक रखरखाव डिपो भी पहले ही सहारनपुर में स्थापित किया जा चुका है।
- नागपुर में दूसरे डिपो की स्थापना काम शुरू हो चुका है।
प्रमुख विशेषताएँ
- भारत और फ्राँस के 300 से भी अधिक अभियंता इस परियोजना पर बेंगलुरू, मधेपुरा और फ्राँस में काम कर रहे हैं।
- दो वर्षों की अवधि में 90 प्रतिशत से भी अधिक कलपुर्जों को भारत में निर्मित किया जाएगा। यह पूर्ण रूप से एक स्वदेशी परियोजना है। यह सही मायनों में ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना है और यहाँ तक कि पहले लोकोमोटिव की असेम्बलिंग भी मधेपुरा फैक्टरी में हुई है।
- इस परियोजना से देश में 10,000 से भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होंगे।
- इस परियोजना से मधेपुरा में फैक्टरी की स्थापना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास में भी तेज़ी आ रही है। कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) की पहल के तहत मधेपुरा में कौशल केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं, ताकि स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया जा सके।
- इस फैक्टरी में 50 प्रतिशत से भी अधिक स्थानीय लोगों की भर्ती की गई है। पूरी तरह से कार्यरत ‘चलते-फिरते हेल्थ क्लीनिक’ का संचालन मधेपुरा के आस-पास के गाँवों में किया जा रहा है।
परियोजना के लाभ
- भारतीय रेलवे ने 22.5 टन के एक्सल लोड से युक्त और 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली 12,000 हॉर्स पावर के ट्विन बो-बो डिजाइन वाले लोकोमोटिव (Bo-Bo design Locomotive) को हासिल करने का निर्णय लिया है, जिसे बढ़ाकर 25 टन तक किया जा सकता है।
- यह लोकोमोटिव समर्पित माल-ढुलाई गलियारे के लिये कोयला चालित ट्रेनों की आवाजाही के लिये गेम चेंजर साबित होगा।
- इस परियोजना के सफल होने पर भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को काफी बढ़ावा मिलेगा।
- इससे लोकोमोटिव (रेल-इंजन) के कलपुर्जों के लिये सहायक इकाइयों (यूनिट) का और भी तेज़ी से विकास होगा।
- इस परियोजना से भारी माल वाली रेलगाडि़यों की त्वरित एवं सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित होगी।
- यह 100 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति से 6000T ट्रेनें चलाएगा।
- शत-प्रतिशत विद्युतीकरण होने से नया लोकोमोटिव न केवल रेलवे की परिचालन लागत कम करेगा, बल्कि भारतीय रेलवे को भीड़-भाड़ से भी मुक्ति दिलाएगा।
- इसका उपयोग कोयला एवं लौह अयस्क जैसी चीजों से युक्त भारी रेलगाडियों को चलाने में किया जाएगा।
पृष्ठभूमि
- भारतीय रेलवे की सबसे बड़ी FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) परियोजना के तहत रेल मंत्रालय और अल्सटॉम ने भारत में भारी माल की ढुलाई से जुड़े परिदृश्य में व्यापक बदलाव लाने के लिये आपस में समझौता किया था।
- माल ढुलाई तथा इससे संबंधित रखरखाव हेतु 800 इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के निर्माण के लिये 3.5 अरब यूरो के एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।