भूगोल
नई पनबिजली नीति
- 08 Mar 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक नई पनबिजली नीति को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य ऐसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना है, जिसमें बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के अंतर्गत नवीकरणीय/अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता (Renewable Purchase Obligation-RPO) की घोषणा भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- नई नीति के अनुसार, बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को भी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के रूप में नामित किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि अभी तक केवल 25 मेगावाट से कम क्षमता वाली छोटी परियोजनाओं को ही अक्षय ऊर्जा के रूप में वर्गीकृत किया जाता था।
- इन उपायों की अधिसूचना के बाद शुरू की गई बड़ी पनबिजली योजनाओं में गैर-सोलर अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता के तहत पनबिजली योजनाएँ शामिल होंगी (लघु पनबिजली परियोजनाएँ पहले से ही इनमें शामिल हैं)।
- पनबिजली क्षेत्र में अतिरिक्त परियोजना क्षमता के आधार पर विद्युत मंत्रालय द्वारा बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के वार्षिक लक्ष्यों के बारे में अधिसूचित किया जाएगा।
- बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के संचालन के लिये शुल्क नीति और शुल्क नियमन में आवश्यक संसोधन किये जाएंगे।
- परियोजना काल को 40 वर्ष तक बढ़ाने के बाद शुल्ककी बैक लोडिंग द्वारा शुल्क निर्धारित करने के लिये डेवलपरों को लचीलापन प्रदान करने, ऋण भुगतान की अवधि को 18 वर्ष तक बढ़ाने और 2 प्रतिशत शुल्क बढ़ाने सहित शुल्क को युक्तिसंगत बनाना।
- मामले के आधार पर पनबिजली परियोजनाओं में फ्लड मोडरेशन घटक वित्तपोषण के आधार पर बजटीय सहायता प्रदान करना।
- सड़कों और पुलों जैसी आधारभूत सुविधाओं के निर्माण के मामले में आर्थिक लागत पूरी करने के लिये बजटीय सहायता देना। मामले के आधार पर यह वास्तविक लागत प्रति मेगावाट 1.5 करोड़ रूपए की दर से अधितकम 200 मेगावाट क्षमता वाली परियोजनाओं और प्रति मेगावाट 1.0 करोड़ रूपए की दर से 200 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं के लिये हो सकती है।
प्रमुख प्रभाव
- अधिकांश पनबिजली परियोजनाएँ हिमालय की ऊँचाई वाले और पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं, इससे विद्युत क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोज़गार मिलने से इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा।
- इससे परिवहन, पर्यटन और अन्य छोटे कारोबारी क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रोज़गार/उद्यमिता के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
- इसका एक अन्य लाभ यह होगा कि सौर और पवन जैसे ऊर्जा स्रोतों से वर्ष 2022 तक लगभग 160 गीगावॉट क्षमता का एक स्थायी ग्रिड उपलब्ध हो जाएगा।
पृष्ठभूमि
- भारत में लगभग 1,45,320 मेगावाट पनबिजली क्षमता की संभावना है, लेकिन अब तक लगभग 45,400 मेगावाट का ही इस्तेमाल हो रहा है।
- पिछले 10 वर्षों में पनबिजली क्षमता में केवल लगभग 10,000 मेगावाट की वृद्धि की गई है। फिलहाल पनबिजली क्षेत्र एक चुनौतीपूर्ण चरण से गुज़र रहा है और कुल क्षमता में पनबिजली की हिस्सेदारी वर्ष 1960 के 50.36 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में लगभग 13 प्रतिशत रह गई है।
स्रोत - PIB