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जैव विविधता और पर्यावरण

भूमि उपयोग परिवर्तन

  • 18 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

पशुजन्य रोग, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय, मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस तथा थीम

मेन्स के लिये:

भू- निम्नीकरण के कारण तथा समाधान, भूमि उपयोग परिवर्तन तथा इसे प्रतिवर्तित करने की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के अनुसार, भूमि उपयोग परिवर्तन, जो COVID-19 जैसे पशुजन्य रोगों (Zoonoses) का कारण बनता है, को प्रतिवर्तित कर देना चाहिये। 

प्रमुख बिंदु

  • भूमि उपयोग परिवर्तन:
    • भूमि उपयोग परिवर्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक परिदृश्य को प्रत्यक्ष रूप से बस्तियों, वाणिज्यिक एवं आर्थिक उपयोग तथा वानिकी गतिविधियों जैसे मानव-प्रेरित भूमि उपयोग के लिये परिवर्तित कर दिया जाता है।
    • यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि क्षरण और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में समग्र वातावरण को प्रभावित करता है।
  • डेटा विश्लेषण:
    • भूमि उपयोग परिवर्तन वायुमंडल में CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) के संकेंद्रण का एक कारक हो सकता है, इस प्रकार यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
      • कुल वैश्विक उत्सर्जन में इसका प्रतिनिधित्त्व लगभग 25% है।
    • जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी मंच (Intergovernmental Platform on Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) के अनुसार, विश्व में फिलहाल सभी प्राकृतिक, बर्फ रहित भूमि का 70% से अधिक हिस्सा मानव उपयोग से प्रभावित है।
      • वर्ष 2050 तक यह बढ़कर 90% तक पहुँच सकता है।
    • भू-निम्नीकरण (Land Degradation) विश्व भर में लगभग 3.2 बिलियन लोगों को प्रभावित करता है।
    • भू-निम्नीकरण के कारण वार्षिक रूप से 10.6 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की वन, कृषि तथा घास भूमि, पर्यटन आदि जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ नष्ट हो जाती हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization) के अनुसार, वर्ष 2050 तक वैश्विक रूप से खाद्य संबंधी मांग को पूरा करने के लिये 500 मिलियन हेक्टेयर से अधिक नई कृषि भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होगी।
  • संभावित कारण:
    • जनसंख्या वृद्धि: तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और उसके परिणामस्वरूप संसाधनों पर उच्च दबाव भूमि क्षेत्र के मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
    • भूमि का अतिक्रमण: भोजन की मांग में लगातार वृद्धि के कारण वन, झाड़ी और आर्द्रभूमि सहित गैर-कृषि क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर फसल क्षेत्र का विस्तार किया गया है।
    • वन संसाधनों का उपयोग: विशेष रूप से निर्माण, ईंधन के लिये वानिकी संसाधनों के निरंतर उपयोग के कारण वनों की सघनता में व्यापक कमी तथा कृषि उपकरणों के कारण कृषि योग्य भूमि का क्षरण हुआ है।
    • खेतों में चराई: किसान प्रायः मिट्टी की उर्वरता में गिरावट की स्थिति में खेती की भूमि को छोड़ चराई के लिये छोड़ देते हैं। 
    • आर्द्रभूमियों का नष्ट होना: आर्द्रभूमि/वेटलैंड को खेती और आवास भूमि में बदलने से आर्द्र्भूमियों का विनाश होता है।
  • समाधान:
    • जलवायु-स्मार्ट भूमि प्रबंधन पद्धति: भूमि उपयोग पर IPCC की एक रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य उत्पादकता में वृद्धि, फसलभूमि प्रबंधन में सुधार, पशुधन प्रबंधन, कृषि-वानिकी, मृदा के कार्बनिक घटक में वृद्धि और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने से पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा भूमि को पुनः बहाल करने में मदद मिलेगी।
      • प्रबंधन की ये पद्धतियाँ फसल के उत्पादन में 1.4 ट्रिलियन डॉलर तक का योगदान कर सकती हैं।
    • वन प्रबंधन: बेहतर अग्नि प्रबंधन और चराई भूमि में सुधार से भूमि बहाली में मदद मिल सकती है।
    • पुनर्स्थापन और पुनर्वास: भू-निम्नीकरण तटस्थता (सतत् विकास लक्ष्य लक्ष्य 15.3) को प्राप्त करने के लिये, भूमि उपयोग क्षेत्र में अतिरिक्त प्रतिबद्धताओं अर्थात् प्रति वर्ष 12 मिलियन हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि के पुनर्स्थापन और पुनर्वास से वर्ष 2030 तक उत्सर्जन अंतराल को 25% तक कम करने में मदद मिल सकती है।
    • भविष्य में पशुजन्य संक्रमणों से बचने के लिये बेहतर निर्माण के हिस्से के रूप में इन क्षेत्रों की बहाली से एक अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह होगा कि इन प्रयासों से जलवायु परिवर्तन में विशेष रूप से कमी होगी। 

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय

United Nations Convention to Combat Desertification (UNCCD)

  • वर्ष 1994 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) कानूनी रूप से बाध्यकारी एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण तथा विकास को सतत् भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
  • यह रियो सम्मेलन (Rio Convention) के एजेंडा-21 की प्रत्यक्ष सिफारिशों पर आधारित एकमात्र अभिसमय है।
  • अभिसमय के तहत फोकस वाले क्षेत्र: यह अभिसमय विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों के समाधान से संबंधित है, जहाँ कुछ सर्वाधिक सुभेद्य पारिस्थितिक तंत्र और प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत की तरफ से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) इस अभिसमय हेतु नोडल मंत्रालय है।

मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2020

World Day to Combat Desertification and Drought 2020

  • 17 जून को पूरे विश्व में मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • वर्ष 2020 के लिये इस दिवस की थीम “Food, Feed, Fibre” है जो खाद्य उपभोग के प्रभाव को कम करने के लिये व्यक्तियों को शिक्षित करने का आह्वान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस 2020, उपभोग और भूमि के बीच संबंध पर केंद्रित है।
  • इस वर्ष के 'वैश्विक अवलोकन कार्यक्रम' को कोरिया वन सेवा द्वारा वर्चुअल माध्यम में आयोजित किया गया।

पशुजन्य रोग (Zoonoses)

  • यह ऐसा रोग या संक्रमण है जो स्वाभाविक रूप से कशेरुकी (Vertebrate) प्राणियों से मनुष्यों तक पहुँचता है।
  • इस प्रकार प्रकृति में पशुजन्य/ज़ूनोटिक संक्रमण को बनाए रखने में पशु एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं।
  • पशुजन्य रोग जीवाणुजनित, विषाणुजनित या परजीवी जनित हो सकता है।

आगे की राह

  • भूमि उपयोग परिवर्तन को धीमा और प्रतिवर्तित करने की तत्काल आवश्यकता को अत्युक्तिपूर्ण नहीं माना जा सकता है क्योंकि भूमि जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • ग्लोबल वार्मिंग को 2°C तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भूमि उपयोग क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, जैव-विविधता संरक्षण, भूमि उपयोग आधारित अनुकूलन और कई छोटे पैमाने के किसानों की आजीविका में सुधार के लिये एक सक्षम वातावरण प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदारीपूर्ण भूमि प्रशासन महत्त्वपूर्ण है।
  • UNCCD के पक्षकारों के लिये यह भू-निम्नीकरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality) के लिये भूमि जोत पर एक महत्त्वाकांक्षी संकल्प को अपनाने का अवसर है। उन्हें इस अवसर का उपयोग समुदायों को सशक्त करने के लिये करना चाहिये ताकि वे जलवायु आपातकाल के प्रभावों के अनुकूल हो सकें।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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