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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भूमि पुनर्स्थापन और सतत् विकास लक्ष्य

  • 26 Sep 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

2-13 सितंबर, 2019 को नई दिल्ली में आयोजित संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification-UNCCD) के COP-14 के अवसर पर ‘सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भूमि पुनर्स्थापन’ (Land Restoration for Achieving the Sustainable Development Goals) नामक रिपोर्ट जारी की गई थी।

पृष्ठभूमि

  • इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन मानव समुदाय की संधारणीयता को बनाए रखने हेतु भूमि की क्षमता को कम कर रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संसाधन पैनल (International Resource Panel-IRP) के एक नए अध्ययन के अनुसार, भूमि पुनर्स्थापन में जलवायु परिवर्तन को सीमित करने और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करने की काफी क्षमता है।
  • IRP ने भूमि पुनर्स्थापन के संभावित परिणामों की जाँच करने पर पाया है कि इससे सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी जिन पर संपूर्ण वैश्विक समुदाय ने सहमति जताई है।

IRP के अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • भूमि पुनर्स्थापन और पुनर्वास सभी सतत् विकास लक्ष्यों के लिये महत्वपूर्ण सह-लाभ प्रदान करा सकते हैं।
  • भूमि पुनर्स्थापन के सह-लाभ, संभावित जोखिम और सामंजस्य की सीमा लक्ष्य और संबंधित उपलक्ष्यों के अनुसार व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं।
  • भूमि पुनर्स्थापन प्रक्रिया के सह-लाभ अक्सर पुनर्स्थापित भूमि से बहुत भिन्न होते हैं और विभिन्न स्थानिक पैमानों पर परिणाम देते हैं।
  • एक एकीकृत भू-परिदृश्य दृष्टिकोण, जिसमें निवेश को लक्षित करना शामिल है, भूमि पुनर्स्थापन निवेश पर अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • IRP भूमि पुनर्स्थापना प्रक्रिया और सतत् विकास लक्ष्यों के बीच सकारात्मक सहसंबंधों और सामंजस्य को दर्शाने हेतु कई उदाहरण प्रस्तुत करता है और अनपेक्षित परिणामों से बचने के लिये किसी भी तरह के निवेश से पहले प्रणालीगत विश्लेषण की सिफारिश करता है।
  • उदाहरण के लिये, एकल कृषि (Monoculture) सतत् विकास लक्ष्य-15 (भूमि पर जीवन) के तहत उल्लिखित मृदा उत्पादकता की बहाली के उद्देश्य के साथ ही कार्बन अधिग्रहण (Carbon Sequestration) के माध्यम से क्लाइमेट एक्शन (लक्ष्य-13) के लिये भी कुछ लाभ प्रदान कर सकता है, लेकिन जैव विविधता संरक्षण (लक्ष्य-15) को संबोधित करने में विफल हो सकता है।

भूमि पुनर्स्थापन की आवश्यकता क्यों?

  • भू-परिदृश्य पुनर्स्थापन (Landscape Restoration) से जलवायु, जैव-विविधता और आजीविका के स्तर पर कई लाभ होंगे और प्रकृति के बुनियादी ढांचे में निवेश करने से पृथ्वी की संधारणीयता भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
  • सुनियोजित भू-परिदृश्य पुनर्स्थापन से न केवल भूमि अवक्रमण (Land Degradation) में कमी आती है बल्कि कई अन्य सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त होते हैं।
  • IRP द्वारा मार्च 2019 में जारी वैश्विक संसाधन आउटलुक (Global Resources Outlook) रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि 90% तक जैव विविधता की हानि और जल तनाव के साथ ही विश्व के आधे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्रयोग के तरीकों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • अत: अधिक संसाधन दक्षता सुनिश्चित करने में भी भूमि पुनर्स्थापन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD)

  • UNCCD मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • इस समझौते को जून 1994 में पेरिस में अपनाया गया।
  • भारत वर्ष 1994 में इसका हस्ताक्षरकर्त्ता देश बन गया और उसने 1996 में इसकी पुष्टि की।
  • UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है। मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।
  • कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) UNCCD का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। COP की बैठकें वर्ष 2001 से प्रत्येक 2 वर्ष में आयोजित की जाती हैं।

भारतीय संदर्भ

Land in trouble

  • भारत ‘बॉन चैलेंज’ (Bonn Challenge) नामक स्वैच्छिक पहल का भी सदस्य है जो कि 2020 तक विश्व की 150 मिलियन हेक्टेयर और 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित भूमि का पुनर्स्थापन सुनिश्चित करने हेतु एक वैश्विक प्रयास है।
  • इसी COP-14 में भारत ने 2030 तक अपने 21 मिलियन हेक्टेयर के भूमि पुनर्स्थापन लक्ष्य को बढ़ाकर 26 मिलियन हेक्टेयर करने का निर्णय लिया है।

भूमि अवक्रमण और पुनर्स्थापन

  • जलवायविक कारकों अथवा मानवीय हस्तक्षेप के कारण भूमि अथवा मृदा की उत्पादक क्षमता में कमी आना भूमि अवक्रमण कहलाता है।
  • वर्तमान में दुनिया की लगभग एक-चौथाई भूमि का अवक्रमण हो चुका है। इससे जैव विविधता और पारिस्थिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ूता है।
  • प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में अतिक्रमण किये बिना सीमांत भूमि या पहले से अवक्रमित भूमि को उत्पादक कार्यों में प्रयोग लाना और उत्पादक क्षेत्रफल का विस्तार करना भूमि पुनर्स्थापन कहलाता है।
  • 2021-2030 के दशक को पारितंत्र पुनर्स्थापन का दशक (United Nations Decade of Ecosystem Restoration) घोषित करने के संयुक्त राष्ट्र के निर्णय में यह माना गया है कि 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर से अधिक अवक्रमित भूमि के पुनर्स्थापन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता होगी।
  • वर्तमान से 2030 के बीच 350 मिलियन हेक्टेयर के पुनर्स्थापन से 9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर मूल्य की पारितंत्र सेवाओं का सृजन हो सकता है और 13-26 गीगाटन अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल से बाहर निकाला जा सकता हैं।

स्रोत : UNEP वेबसाइट, द हिंदू

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