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लैंड पूलिंग पालिसी –आवास निर्माण और रोजगारों के सृजन को बढ़ावा देने का माध्यम

  • 27 May 2017
  • 10 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि इस माह के आरंभ में दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग (Urban Development Department) ने एक अधिसूचना जारी की थी जिसके तहत 95 ग्रामीण गाँवों में से 89 गाँवों को ‘शहरी गाँव’(urban villages) घोषित कर दिया गया| इसके साथ ही सरकार ने दिल्ली में दो वर्षों से लंबित पड़ी ‘लैंड पूलिंग नीति’(Land Pooling Policy) के संचालान को भी स्वीकृति दे दी है| 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस अधिसूचना के पश्चात अनुमानित 55,000-57,000 हेक्टेयर भूमि को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया जाएगा तथा उसका विकास किया जाएगा| एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस नीति के परिणामस्वरूप आर्थिक रूप से पिछड़े लगभग 2.9 मिलियन लोगों के लिये आवासों (औसत आकार 30 वर्ग मीटर) तथा 6 मिलियन से अधिक अन्य आवासीय इकाइयों (औसत आकर 1,000 वर्ग फीट अथवा 93 वर्ग फीट) का निर्माण किया जाएगा|
  • दरअसल, सरकार द्वारा जारी की गई इस अधिसूचना का मध्यावधि व दीर्घावधि प्रभाव सकारात्मक होगा| इसके अतिरिक्त, इस नीति से आवास निर्माण को भी बढ़ावा मिलेगा| आवास निर्माण में होने वाली वृद्धि से निर्माण क्षेत्र (construction sector) में रोज़गारों का सृजन होगा| 
  • अनुमान है कि इस नीति के तहत 59,835 हेक्टेयर से 73,750 हेक्टेयर क्षेत्र का विकास किया जाएगा| विदित हो कि आवास निर्माण में विकास की काफी संभावनाएँ विद्यमान हैं| ध्यातव्य है कि अधिक आवासों का निर्माण होने से आम आदमी के लिये आवास प्राप्त करना वहनीय बन जाएगा क्योंकि इन आवासों की कीमत की समय-समय पर जाँच की जाती रहेगी| 
  • भूमियों का इस प्रकार से उपयोग करने पर लगभग 9 मिलियन आवासीय इकाइयों का विकास किया जा सकता है| लगभग 2.9 मिलियन आवासीय इकाइयों (इनका आकार 30 वर्ग मीटर होगा) का निर्माण आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये किया जाएगा| यदि शेष बची इकाइयों को 1,000 वर्ग फीट का माना जाए तो भविष्य में अतिरिक्त 6.2 मिलियन आवासीय इकाइयों का विकास किया जा सकता है|
  • यह माना जा रहा है कि अवसंरचनात्मक विकास रियल एस्टेट क्षेत्र में भी किया जा सकता है| भागीदारी विकास, रोज़गार सृजन, आवास स्टॉक में वृद्धि और अचल संपत्ति की कीमतों का युक्तिकरण जैसी कई सकारात्मक पहलों से युक्त लैंड पूलिंग नीति का दिल्ली के रियल एस्टेट क्षेत्र पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा| इसके सकारात्मक पक्षों को देखते हुए यह आशा की जा रही हैं कि कि इससे कुल निवेशों और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा| इसके अतिरिक्त, यह केंद्र सरकार के लक्ष्य “वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास”(Housing for All by 2022) को भी सार्थक करने में सहायक सिद्ध होगी| 
  • हालाँकि, इसकी सकारात्मकता के विपरीत इससे कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं| विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति के क्रियान्वयन का तरीका अपेक्षित लाभों की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा| वास्तव में किसी क्षेत्र का विकास करना और वहाँ आवास का निर्माण करना एक दीर्घकालीन प्रकिया है| अतः छोड़ी गई भूमि का अधिग्रहण, राजनीतिक जोखिम, निष्पादन जोखिम, भूमि का मूल्य वर्द्धन और प्राधिकरण द्वारा अवसंरचनात्मक निर्माण में हुई देरी भी इसके मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं| 
  • इस माह के आरम्भ में सरकार द्वारा जारी की गई यह अधिसूचना शहरी विकास मंत्रालय द्वारा मई 2015 में लैंड पूलिंग नीति को अधिसूचित किये जाने के दो वर्ष पश्चात जारी की गई है| इस नीति के पीछे यह विचार था कि वे आम लोग जो किराये के घरों में रहते हैं उन्हें भी वहनीय कीमत पर आवास उपलब्ध कराया जा सके| ध्यातव्य है कि वर्ष 2015 से दिल्ली विकास प्राधिकरण दिल्ली सरकार से अधिसूचना मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि वह प्रस्तावित शहरी एक्सटेंशन (urban extensions) के अंतर्गत आने वाले कृषि क्षेत्रों को भी ‘शहरी’ घोषित कर सके| अतः जारी की गई नवीनतम अधिसूचना के आधार पर दिल्ली विकास प्राधिकरण लैंड पूलिंग नीति का संचालन करने में सक्षम होगा|
  • हालाँकि शहरी विकास मंत्रालय की कई प्राथमिकताएँ हैं जैसे-निजी निवेशकों की भागीदारी और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये आवास, डीडीए लैंड पूलिंग नीति जिसका प्रारूप वर्ष 2013 में तैयार किया जा चुका था तथा इसे शहरी विकास मंत्रालय से मई 2015 में स्वीकृति प्राप्त हुई थी| इसमें फर्श-क्षेत्रफल अनुपात में भी वृद्धि किये जाने को अनुमति प्रदान कर दी गई है| जिससे इस क्षेत्र का उर्ध्वाधर विकास किया जा सकेगा| चूँकि इसमें निजी क्षेत्रों की भागीदारी को अनुमति दी गई है अतः भूमि का अतिक्रमण नहीं किया जा सकेगा| इसके अतिरिक्त इसके अंतर्गत प्रत्येक आवास के लिये अच्छी सड़कें और सीवेज उपचार संयंत्रों का विकास किया जाएगा जिससे किसानों को भी लाभ प्राप्त होगा|

लैंड पूलिंग नीति

  • इस नीति के अनुसार, लैंड पूलिंग की दो श्रेणियाँ हैं : 

→ श्रेणी एक में भूमि के उन स्वामियों को शामिल किया जाता है जिनके पास 20 हेक्टेयर से अधिक की भूमि होती है|
→ श्रेणी दो में भूमि के उन स्वामियों को शामिल किया जाता है जिनके पास दो हेक्टेयर से 20 हेक्टेयर के मध्य भूमि होती है| 

  • प्राधिकरण द्वारा भूमि पर अवसंरचनात्मक निर्माण कर लेने के पश्चात् श्रेणी एक के अंतर्गत आने वाले लोगों को जमा की गई भूमि का 60% प्राप्त होगा और शेष बची हुई भूमि को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकार में ले लिया जाएगा| श्रेणी दो के अंतर्गत आने वाले लोगों को विकसित भूमि का 48% प्राप्त होगा| जमा की गई भूमि के शेष भाग का उपयोग डीडीए करेगा ताकि इसका अवसंरचनात्मक निर्माण सार्वजानिक और अर्ध सार्वजानिक स्थानों के लिये किया जा सके|

लैंड पूलिंग कैसे कार्य करता है?

  • लैंड पूलिंग नीति के अंतर्गत भूमि के स्वामियों का एक समूह अपनी भूमियों के छोटे-छोटे हिस्सों को एक साथ मिलाएँगे और अवसंरचनात्मक विकास के लिये इस जमा की गई भूमि को दिल्ली विकास प्राधिकरण को सौंप देंगे| 
  • कोई भी व्यक्ति जिसके पास 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि है वह इस नीति से लाभ प्राप्त कर सकता है तथा एक विकास इकाई(developer entity’-DE) बन सकता है| विकास इकाई बनने के पश्चात सबसे पहले वह अपनी भूमि को डीडीए को देगा तथा इसके पश्चात् यह एजेंसी इसका अवसंरचनात्मक विकास(जैसे-सड़कें,पार्क,बिजली आपूर्ति और सीवेज उपचार संयंत्र) करके इस भूमि का 48-60% उनके स्वामियों को वापस कर देगी|
  • इसके अतिरिक्त, यदि भूमि को एक बार आवासों  के निर्माण के लिये विकास इकाई को पुनः लौटा दिया जाता है तो यह संस्था को इसके फर्श-क्षेत्रफल अनुपात(floor area ratio) में 400 गुना वृद्ध करने की अनुमति प्रदान कर दी जाएगी| फर्श-क्षेत्रफल अनुपात का तात्पर्य किसी निश्चित स्थान में निर्मित कुल क्षेत्र से है| यह उर्ध्वाधर वृद्धि में सहायक होगा और इससे एक ही स्थान पर होने वाले लोगों के जमाव में भी कमी आएगी| इस नीति के अंतर्गत 20 मंजिल तक के भवनों का भी निर्माण किया जा सकता है परन्तु विकास इकाई को अपनी भूमि का 15 % हिस्सा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुहैया कराना होगा|
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