भूमि संघर्ष और उसका प्रभाव | 29 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:लैंड कंफ्लिक्ट वॉच मेन्स के लिये:भूमि संघर्ष से संबंधित मुद्दे, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
28 फरवरी, 2020 को लैंड कंफ्लिक्ट वॉच (Land Conflict Watch- LCW) नामक अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भूमि संघर्ष एवं उसका विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव को प्रकाशित किया गया है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- यह रिपोर्ट तीन वर्ष में किये गए शोध पर आधारित है जिसमें भूमि संघर्ष के क्षेत्रों एवं उससे प्रभावित लोगों की गणना की गई है।
- रिपोर्ट में भूमि के संघर्ष को 6 व्यापक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है जिसमें बुनियादी ढाँचा, बिजली, संरक्षण और वानिकी, भूमि उपयोग, खनन तथा उद्योग शामिल हैं।
- पूरे भारत में भूमि संघर्ष से लगभग 6.5 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण भूमि संघर्ष से सबसे अधिक क्षेत्र प्रभावित है। ध्यातव्य है कि बुनियादी ढांचे पर भूमि संघर्ष से 15,62,362.59 हेक्टेयर भूमि प्रभावित है जो लगभग नगालैंड के आकार के बराबर है।
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अंतर्गत रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में संघर्ष के सबसे अधिक 68 मामले सामने आए हैं।
- इसके बाद बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के अंतर्गत सड़क परियोजनाओं (63), बागानों (51) और संरक्षित क्षेत्रों (44) में भूमि संघर्ष से संबंधित मामले सामने आए हैं तथा रेलवे परियोजनाओं (22) तथा पर्यटन क्षेत्र (19) में सबसे कम संघर्ष संबंधी मामले हैं।
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के बाद सबसे ज़्यादा भूमि संघर्ष के मामले खनन क्षेत्र से संबंधित हैं।
- कुल प्रलेखित भूमि संघर्ष के मामलों में से सबसे अधिक 43% या 300 मामले बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के तहत थे।
- दूसरी सबसे अधिक संख्या 15% या 105 मामले संरक्षण और वानिकी परियोजनाओं से संबंधित थे।
- खनन क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या बुनियादी ढाँचा क्षेत्र की अपेक्षा अधिक है, ध्यातव्य है कि खनन क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 21,312 है तथा बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में भूमि संघर्ष से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 12,354 है।
- अध्ययन के अनुसार सभी प्रकार के भूमि संघर्ष में प्रत्येक से औसतन 10,688 लोग प्रभावित होते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, भूमि संघर्ष को ऐसे किसी भी उदाहरण के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें दो या दो से अधिक पार्टियाँ भूमि और उससे जुड़े संसाधनों पर पहुँच या नियंत्रण का प्रयास करती हैं।
- गौरतलब है कि ये टकराव भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्याप्त हैं।
भूमि संघर्ष के कारण
- भूमि कानूनों में व्याप्त अनियमितताएँ विभिन्न क्षेत्रों के संदर्भ में भूमि संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है।
- इसके अतिरिक्त लोगों की बढती महत्त्वाकांक्षाएँ भी भूमि संघर्ष के कारणों में से एक हैं।
- भूमि अधिग्रहण संबंधी डेटा का अभाव एवं भूमि संबंधी विवरण में अनियमितताएँ भी भूमि संघर्ष को बढ़ावा देती हैं।
- भूमि संबंधी मामलों में नियमों एवं विनियमों का लचीला होना।
भूमि संघर्ष के प्रभाव
- भूमि संघर्ष के कारण विभिन्न प्रकार की परियोजनाएँ लंबित रह जाती हैं जिससे परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती है और देश को आर्थिक नुकसान होता है।
- भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्याएँ निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित करती हैं फलस्वरूप देश का विकास बाधित होता है।
भूमि संघर्ष को कम करने के उपाय
- भूमि कानूनों में व्याप्त अनियमितताओं को दूर किया जाना चाहिये तथा पुराने कानून जो विनियमन में बाधा डालते हैं उन्हें समाप्त किया जाना चाहिये।
- भूमि अधिग्रहण संबंधी डेटा का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये जिससे कि लोगों को आसानी से भूमि से संबंधित जानकारियाँ एवं विवरण प्राप्त हो सकें।
- इसके अतिरिक्त भूमि संबंधी नियमों एवं विनियमों को सख्त किये जाने की आवश्यकता है साथ ही इन नियमों के उल्लंघन पर कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा भूमि संबंधी डेटा को डिजिटल माध्यम में उपलब्ध कराया जा रहा है। अतः इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों में भी भूमि संबंधित डेटा का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये।
- साथ ही, मौजूदा सभी भूमि अभिलेखों को यह सुनिश्चित करने हेतु अद्यतन किया जाना चाहिये कि वे किसी भी प्रकार के भार से मुक्त हैं।