निर्जन लक्षद्वीप के लुप्तीकरण से जुड़े पक्ष | 09 Sep 2017
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, लक्षद्वीप (Lakshadweep) के समृद्ध जैव-विविधता वाले द्वीपों में से एक द्वीप परली अथवा पराली-I (Parali I) गायब हो गया है। इसके अतिरिक्त चार अन्य क्षेत्र भी सिकुड़ रहे हैं। ध्यातव्य है कि परली अथवा पराली-I द्वीप, बंगारम एटोल (Bangaram atoll) का हिस्सा है।
मुख्य तथ्य
- इस अध्ययन के अंतर्गत इस क्षेत्र के लगभग सभी द्वीपों में अपरदन की एक सामान्य प्रवृत्ति पाई गई। परली अथवा पराली-I समूह के द्वीपों में इस तरह की घटनाओं की प्रवृत्ति अधिक पाई गई, जिसका परिणाम इस द्वीप में गंभीर अपरदन तथा अंततः पूर्ण जलप्लावन के रुप में सामने आया है।
- परली-I के अलावा ऐसे और भी कई द्वीप हैं जिनमें अपरदन की दर निरंतर बढ़ती जा रही है। इन द्वीपों में प्रमुख हैं - परली-II (80%), तिनकाड़ा (14.38%), परली-III (11.42%) तथा बंगारम (9.968%)।
- परली-I द्वीप का पूरी तरह से अपरदित होकर जलप्लावित होना एटोल के सभी द्वीपों की गंभीर पर्यावरणीय स्थिति की तरफ इशारा करता है।
इस संबंध में क्या किये जाने की आवश्यकता है?
- इस अध्ययन के अनुसार, परली-I के पूरी तरह से अपरदित होकर जलप्लावित होने के बाद इस क्षेत्र के विषय में गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है, ताकि समय रहते इस संबंध में आवश्यक उपाय किये जा सकें।
- उक्त अध्ययन के अंतर्गत इस समस्या के संदर्भ में यह अनुशंसा की गई है कि परंपरागत भौतिक सुरक्षा उपायों को अपनाए जाने के साथ-साथ यहाँ मैंग्रोव आदि का उपयोग करके जैव संरक्षण रणनीति की व्यवहार्यता की जाँच की जा सकती है।
आगे का रास्ता
- जैसा की हम सभी जानते हैं कि इस अवधारणा को अब व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त की जा चुकी है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होगी, वैसे-वैसे महासागरों के जल स्तर में भी वृद्धि होती जाएगी। इसका परिणाम द्वीपों एवं समुद्री तटीय क्षेत्रों में अपरदन की बढ़ती गति और बाढ़ के रुप में सामने आएगा।
- यदि भारत के संदर्भ में बात करें तो यहाँ के समुद्र तटों और द्वीप क्षेत्रों में घनी आबादी निवास करती है। हालाँकि इन सभी क्षेत्रों की स्थिति बहुत कमज़ोर है।
- समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होने संबंधी भविष्यवाणी को ध्यान में रखते हुए हमें भी अपनी तटरेखाओं और द्वीपों को सुरक्षित करने के लिये तैयारी शुरू कर देनी चाहिये।