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बुज़ुर्गों के लिये बुनियादी अधिकारों की कमी

  • 14 Dec 2018
  • 4 min read

संदर्भ


हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वरिष्ठ नागरिकों और बुज़ुर्गों को प्रदान किये गए अपर्याप्त कल्याणकारी अधिकारों की जवाबदेही में सरकार ‘आर्थिक बजट’ का बहाना नहीं बना सकती है। देश में बुज़ुर्गों की बढ़ती आबादी को देखते हुए भी उनके अधिकारों को संविधान में नई परिस्थितियों के अनुरूप परिभाषित नहीं किया गया है।

मौजूदा अधिकार

  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गरिमा, स्वास्थ्य और आश्रय हर वरिष्ठ नागरिक का वैधानिक अधिकार है।
  • गरिमा, स्वास्थ्य और आश्रय तीन ऐसे महत्त्वपूर्ण घटक हैं जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार को भी संदर्भित करते हैं।
  • गौरतलब है कि 2007 के अधिनियम के अनुसार प्रत्येक ज़िले में एक ऐसे वृद्धाश्रम की स्थापना की जाएगी, जिसमें कम-से-कम 150 ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को आवास की सुविधा दी जा सकेगी, जो गरीब हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जस्टिस मदन बी. लोकुर की खंडपीठ ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रत्येक ज़िले में वृद्धाश्रमों की संख्या के बारे में ‘आवश्यक जानकारी’ प्राप्त करने हेतु केंद्र सरकार को आदेश दिया है तथा 31 जनवरी तक रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को प्रत्येक ज़िले के वरिष्ठ नागरिकों हेतु उपलब्ध चिकित्सा और देखभाल सुविधाओं के बारे में राज्यों से विवरण प्राप्त करने का भी आदेश दिया है।
  • वृद्धाश्रम और आवास की अनुपस्थिति में बुज़ुर्गों दुर्घटनाओं और अन्य अप्रत्याशित घटनाओं हेतु सुभेद्य हो जाते हैं।

पेंशन

  • अदालत ने निर्देश दिया कि कम-से-कम केंद्र को कम-से-कम 2007 के अधिनियम के प्रावधानों को लागू करे और यह सुनिश्चित करे कि राज्य सरकारें भी कानून के प्रावधानों को लागू करें।
  • पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार द्वारा दायर याचिका के आधार पर अदालत के फैसले में वरिष्ठ नागरिकों और बुज़ुर्गों को पेंशन के रूप में भुगतान किये जाने वाले मामूली भत्ते पर आश्चर्य जताया गया है।
  • बुज़ुर्गों की आबादी 1951 में 1.98 करोड़ थी जो 2001 में बढ़कर 7.6 करोड़ तथा 2011 में 10.38 करोड़ हो गई। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 60 वर्ष से ज़्यादा की उम्र वाले लोगों की आबादी 2021 में 14.3 करोड़ और 2026 में 17.3 करोड़ हो जाएगी।
  • ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरणपोषण तथा कल्याण के लिये संविधान के अधीन गारंटीकृत और मान्यताप्राप्त उपबंधों का और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये पूर्व के अधिनियमों में निर्दिष्ट प्रावधानों को लागू किया जाए तथा आवश्यकतानुसार संशोधन के द्वारा उक्त उपबंधों को सुदृढ़ करते हुए वरिष्ठ नागरिकों को सशक्त बनाया जाए।

स्रोत- द हिंदू

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