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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

घरेलू श्रमिकों के वेतन में वृद्धि हेतु राष्ट्रीय नीति का पुनरुत्थान

  • 26 Apr 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने घरेलू श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिये राष्ट्रीय नीति को पुनर्जीवित किया है। इस नीति के तहत न्यूनतम मज़दूरी और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देने संबंधी प्रमुख मुद्दों पर भी विचार किया गया है।

आवश्यकता क्यों?

  • ध्यातव्य है कि भारत में घरेलू श्रमिकों की संख्या करीब 5 मिलियन है, जिनमें लगभग 3.5 मिलियन महिलाएँ भी शामिल हैं।
  • घरेलू श्रमिक ऐसे कार्य करते हैं जिन्हें ‘काम’ के रूप में नहीं पहचाना जाता है, इसके साथ ही इस  क्षेत्र में पर्याप्त कानून भी नहीं हैं।
  • इस क्षेत्र में कानून की अनुपस्थिति ने अवैध निजी प्लेसमेंट एजेंसियों को बढ़ावा दिया है।
  • ये एजेंसियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और पिछड़े वर्गों को आकर्षित करती हैं जो उन्हें आकर्षक वेतन, अच्छी जीवनशैली और लाभ के नाम पर शारीरिक हिंसा, यौन हमले, बेगार जैसे मामलों में वृद्धि करते हैं।

 नीति में निहित प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय एक केंद्रीय बोर्ड/ट्रस्ट स्थापित करने की योजना बना रहा है, जहाँ नियोक्ता नौकरानी (maid), ​​ड्राइवर और अन्य सभी घरेलू कामगारों को पंजीकृत करेंगे।
  • इसके माध्यम से उनके द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर समान रूप से भुगतान किया जाएगा।
  • यह नियोक्ता और कर्मचारियों दोनों की बीच सौदेबाजी को समाप्त करने में मदद करेगा।

  • इस महत्त्वपूर्ण कदम से आशा व्यक्त की जा रही है कि देश में करीब 5 मिलियन घरेलू श्रमिकों को फायदा होगा जिनमें 3 मिलियन महिलाएँ भी शामिल हैं।
  • मंत्रालय इस नीति के तहत एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कोड तैयार करने की कोशिश कर रहा है।
  • इस नीति द्वारा ऐसे घरेलू श्रमिकों को भी कवर किया जाएगा जो चिकित्सा बीमा, पेंशन, मातृत्व और अनिवार्य छुट्टी जैसे लाभों से वंचित हैं।
  • श्रम मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक यह राष्ट्रीय नीति स्पष्ट रूप से अंशकालिक, पूर्णकालिक और लाइव-इन श्रमिकों (live-in workers) नियोक्ताओं और निजी नियुक्ति एजेंसियों को परिभाषित करेगी।
  • इसके अलवा इस नीति से श्रमिकों को राज्य श्रम विभागों में स्वयं को पंजीकृत कराने का अधिकार मिलेगा।
  • इस नीति का मुख्य लक्ष्य न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करना, दुर्व्यवहार/उत्पीड़न और हिंसा से सुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और वृद्धावस्था पेंशन जैसे सामाजिक लाभों को सुनिश्चित करना है।
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