भारतीय राजनीति
कुरुबा समुदाय: कर्नाटक
- 10 Feb 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक में कुरुबा समुदाय द्वारा एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था। इस रैली में समुदाय के लोगों द्वारा राज्य सरकार से मांग की गई कि राज्य सरकार कुरुबा समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने हेतु केंद्र सरकार को अपनी संस्तुति भेजे।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- देश की स्वतंत्रता के बाद से ही कुरुबा समुदाय को एसटी का दर्जा प्राप्त था। परंतु वर्ष 1977 में पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एल.जी. हावनूर ने कुरुबा समुदाय को एसटी सूची से 'अति पिछड़ा वर्ग' की श्रेणी शामिल कर दिया।
- हालाँकि आयोग ने इसमें एक क्षेत्र विशेष की शर्त भी जोड़ दी और कहा कि बीदर, यादगीर, कालाबुरागी तथा मदिकेरी क्षेत्र में कुरुबा समानार्थी शब्द के साथ रहने वाले लोग एसटी श्रेणी का लाभ उठा सकते हैं।
कुरुबा समुदाय का संक्षिप्त परिचय:
- कर्नाटक का कुरुबा समुदाय एक पारंपरिक भेड़ पालक समुदाय है।
- वर्तमान में कुरुबा समुदाय की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 9.3% है और ये पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आते हैं।
- कुरुबा कर्नाटक में लिंगायत, वोक्कालिगा और मुसलमानों के बाद चौथी सबसे बड़ी जाति है।
- अन्य राज्यों में कुरुबा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है - जैसे महाराष्ट्र में धनगर, गुजरात में रबारी या राईका, राजस्थान में देवासी और हरियाणा में गडरिया।
संबंधित मुद्दे:
- लिंगायत समुदाय की मांगें: तीन वर्ष पहले कर्नाटक में लिंगायत समुदाय ने एक अलग अल्पसंख्यक धर्म के रूप में मान्यता दिये जाने की मांग की थी।
- लिंगायत उप-पंथ पंचमासाली से जुड़े लोगों ने भी अपने समुदाय को पिछड़ा वर्ग की 2A श्रेणी में शामिल किये जाने की मांग की है, जिसके तहत पिछड़ी जातियों को वर्तमान में 15% आरक्षण प्रदान किया जाता है।
- न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग:
- न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग का गठन एससी समुदाय के लिये मौजूदा आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% करने और एसटी के लिये इसे 3% से 7% तक किये जाने की प्रक्रिया की निगरानी के लिये किया गया था जिससे उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1992 के निर्णय के अनुसार, यह कुल 50% आरक्षण कोटे से अधिक न होने पाए।
- अगर कुरुबा को उनकी मांग के अनुसार एसटी घोषित किया जाता है, तो एसटी कोटे को भी आनुपातिक रूप से बढ़ाना होगा।
- न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग का गठन एससी समुदाय के लिये मौजूदा आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% करने और एसटी के लिये इसे 3% से 7% तक किये जाने की प्रक्रिया की निगरानी के लिये किया गया था जिससे उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1992 के निर्णय के अनुसार, यह कुल 50% आरक्षण कोटे से अधिक न होने पाए।
- चुनौतियाँ:
- सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कर्नाटक राज्य पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% सीमा तक पहुँच चुका है और इसमें किसी भी प्रकार की वृद्धि एक बड़ी चुनौती होगी।
कर्नाटक में वर्तमान आरक्षण कोटा:
- कर्नाटक ने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1992 के आदेश का पालन करते हुए आरक्षण को 50% तक सीमित कर दिया है, इसके तहत पिछड़े वर्गों के लिये 32% आरक्षण निर्धारित है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई और जैन शामिल हैं, एससी के लिये 15% और एसटी के लिये 3% आरक्षण निर्धारित है।
- इस आरक्षण कोटे को आगे कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है: श्रेणी 1 (4%), श्रेणी 2 ए (15%), श्रेणी 2 बी (4%), श्रेणी 3 ए (4%), श्रेणी 3 बी (5%), एससी (15%) और एसटी (3%)।
अनुसूचित जनजाति:
परिचय:
- अनुच्छेद 366 (25): अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों से है, जिन्हें भारतीय संविधान के प्रयोजन के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
- अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया गया है।
- अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है।
मौलिक विशेषताएँ:
- किसी समुदाय को एक अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित किये जाने के मानदंडों के संदर्भ में संविधान में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है। हालाँकि अनुसूचित जनजाति समुदायों को अन्य समुदायों से अलग करने वाले कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:
- पिछड़ापन/आदिमता (Primitiveness)
- भौगोलिक अलगाव (Geographical Isolation)
- संकोची स्वभाव (Shyness)
- सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन।
विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह
(Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG)
- देश में कुछ ऐसी जनजातियाँ (कुल ज्ञात 75) हैं जिन्हें ‘विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG) के रूप में जाना जाता है, इन समूहों को (i) पूर्व-कृषि स्तर की प्रौद्योगिकी, (ii) स्थिर या घटती जनसंख्या, (iii) बेहद कम साक्षरता और (iv) आर्थिक निर्वाह स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।