बयाद-ए-गालिब समारोह | 22 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:मिर्ज़ा गालिब मेन्स के लिये:मिर्ज़ा गालिब का ऊर्दू साहित्य और शायरी नामक विधा में अभूतपूर्व योगदान |
चर्चा में क्यों?
मिर्ज़ा गालिब द्वारा अपनी पेंशन के बारे में पता लगाने के लिये कोलकाता आने के लगभग 190 वर्ष बाद 21 फरवरी, 2020 से कोलकाता में बयाद-ए-गालिब नामक समारोह आयोजित किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु:
- इस समारोह को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) के अवसर पर प्रारंभ किया गया है।
- मिर्ज़ा गालिब 20 फरवरी, 1828 से 1 अक्तूबर, 1829 के बीच कोलकाता में किराएदार के रूप में रहे।
- मिर्ज़ा गालिब ने गवर्नर हाउस, राइटर बिल्डिंग और राष्ट्रीय पुस्तकालय सहित महत्त्वपूर्ण स्थलों का दौरा किया, जो वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारियों का निवास स्थान हुआ करता था।
कार्यक्रम का आयोजन:
- पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा इस अवसर पर आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में उन स्थानों का भ्रमण किया जाएगा जहाँ गालिब का निवास स्थान था और जहाँ वे आते-जाते रहते थे, जिनमें शिमला बाज़ार और मध्य कोलकाता स्थित कथल बागान शामिल थे।
- मिर्ज़ा गालिब की कोलकाता यात्रा की जानकारी को जन-सामान्य तक पहुँचाने के लिये एक स्मारक टिकट जारी किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम में गालिब को केंद्रीय विषय के रूप में रखते हुए पाँच नाटकों का मंचन किया जाएगा।
- इन पाँच नाटकों के मंचन में ‘गालिब और कोलकाता मुशायरा’ नामक नाटक को भी शामिल किया जाएगा जो वर्ष 1828 में कलकत्ता मदरसा में आयोजित किये गए एक मुशायरे पर आधारित है जिसमें मिर्ज़ा गालिब ने भाग लिया था।
- इस समारोह में शिक्षाविदों से लेकर छात्रों और आम लोगों को सम्मिलित किया जाएगा।
मिर्ज़ा गालिब की रचनाओं का बांग्ला में अनुवाद:
- इस अवसर पर आयोजित अन्य कार्यक्रमों में बनारस में गालिब द्वारा लिखित चराग-ए डायर (Charagh-e Dair) के बांग्ला अनुवाद और उर्दू एवं बंगाली के आठ लघु कथाकारों को प्रस्तुत किया जाएगा, जिन्होंने लघु कथाओं के रूप में गालिब के जीवन का काल्पनिक संस्करण पेश किया है।
मिर्ज़ा गालिब:
- मिर्ज़ा गालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को तुर्की वंश के एक अभिजात परिवार में आगरा में हुआ था।
- मिर्ज़ा गालिब का मूल नाम मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग खान था, गालिब नाम को उन्होंने बाद में अपनाया। उन्होंने इस नाम के साथ अत्यधिक प्रसिद्धि हासिल की।
- मिर्ज़ा गालिब का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था।
- मिर्ज़ा गालिब बहादुर शाह ज़फर II के दरबार के महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक थे।
- मुगल सम्राट जो कि उनका छात्र भी था, ने गालिब को डब्बर-उल-मुल्क (Dabber-ul-Mulk) और नज्म-उद-दौला (Najm-ud-Daulah) के शाही खिताब से सम्मानित किया।
- उन्होंने 11 साल की उम्र में अपनी पहली शायरी लिखी थी और वे उर्दू, फारसी एवं तुर्की आदि कई भाषाओं के जानकार थे।
- 15 फरवरी, 1869 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई।
- मिर्ज़ा असदउल्लाह बेग खान 'गालिब' का स्थान उर्दू के सर्वोच्च शायर के रूप में सदैव अक्षुण्ण रहेगा।
- उन्होंने उर्दू साहित्य को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। उर्दू और फारसी के एक बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली तथा अरब एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यंत लोकप्रिय हुए।
- गालिब की शायरी में बेहतरीन भाषाई पकड़ मिलती है जो सहज ही पाठक के मन को छू लेती है।