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भारतीय राजव्यवस्था

असंसदीय भाषा एवं आचरण के विरुद्ध नियम

  • 10 Feb 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

अनुच्छेद 105(2), नियम 380 व 381 के अंतर्गत प्रावधान

मेन्स के लिये

असंसदीय शब्दावली निषेध संबंधी पुस्तक का कालानुक्रम, उदहारण तथा प्रभाव

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में संसद में बहस के दौरान असंसदीय भाषा एवं आचरण (Unparliamentary Speech and Conduct) के विरुद्ध नियमों के अनुपालन और उनकी प्रासंगिकता के संदर्भ में चर्चा हुई।

प्रमुख बिंदु:

  • संविधान के अनुच्छेद 105(2) के अनुसार, संसद में या किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिये गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
  • एक संसद सदस्य जो कुछ भी कहता है वह संसद के नियमों के अनुशासन, सदस्यों की अच्छी समझ (Good Sense) और पीठासीन अधिकारी द्वारा कार्यवाही के नियंत्रण के अधीन है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि संसद सदस्य सदन के अंदर "अपमानजनक या अभद्र या अनिर्दिष्ट या असंसदीय शब्द" का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
  • लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालक विषयक नियम 380 के अनुसार, "यदि अध्यक्ष की राय है कि बहस में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अपमानजनक या अभद्र या असंसदीय या अनिर्दिष्ट हैं, तो संभव है कि अध्यक्ष विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए इस तरह के शब्दों को सदन की कार्यवाही से बाहर करने का आदेश पारित करें।"
  • लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालक विषयक नियम 381 के अनुसार, "सदन की कार्यवाही का वह भाग जो समाप्त हो गया है, तारांकन द्वारा चिन्हित किया जाएगा और कार्यवाही में एक व्याख्यात्मक टीका (Explanatory Footnote) इस प्रकार डाला जाएगा: 'अध्यक्ष द्वारा आदेशित’।"

असंसदीय शब्दावली निषेध संबंधी पुस्तक

  • इस पुस्तक को पहली बार वर्ष 1999 में संकलित किया गया था। इसमें स्वतंत्रता से पूर्व केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, अंतरिम संसद, लोकसभा तथा राज्यसभा में पहली बार असंबद्ध घोषित किये गए बहस और वाक्यांशों के संदर्भ शामिल किये गए थे।
  • ऐसे असंसदीय वाक्यांश और शब्द जो अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं, को पीठासीन अधिकारी (लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति) संसद के रिकॉर्ड से बाहर रखने का काम करते हैं।
  • इस संदर्भ में सहायता हेतु लोकसभा सचिवालय ने वर्ष 2004 में एक नए संस्करण के अंतर्गत ‘असंसदीय अभिव्यक्तियाँ (Unparliamentary Expressions)’ शीर्षक से एक नियमावली प्रकाशित की।
  • राज्य विधानमंडलों को भी मुख्य रूप से इसी पुस्तक द्वारा निर्देशित किया जाता है।

असंसदीय शब्दावली के उदाहरण

  • जिन शब्दों और वाक्यांशों को असंसदीय माना गया है उनमें स्कंबैग (Scumbag), शिट (Shit), बैड (Bad- जैसे संसद सदस्य एक बुरा आदमी है) और बैंडिकूट (Bandicoot), शब्द शामिल हैं।
  • यदि पीठासीन अधिकारी महिला है तो कोई भी संसद सदस्य उसे "प्रिय अध्यक्ष (Beloved Chairperson)" के रूप में संबोधित नहीं कर सकता है।
  • सरकार या किसी अन्य संसद सदस्य पर "झांँसा देने (Bluffing)" का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
  • रिश्वत, ब्लैकमेल, रिश्वतखोर, चोर, डाकू, लानत, धोखा, नीच, और डार्लिंग जैसे शब्द असंसदीय हैं। इनका प्रयोग संसद सदस्यों के लिये नहीं किया जा सकता।
  • संसद सदस्य या पीठासीन अधिकारियों पर "कपटी (Double Minded)" होने का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है।
  • एक संसद सदस्य को ठग, कट्टरपंथी, चरमपंथी, भगोड़ा नहीं कहा जा सकता। किसी भी सदस्य या मंत्री पर जान-बूझकर तथ्यों को छिपाने, भ्रमित करने या जानबूझकर भ्रमित होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
  • किसी भी अनपढ़ संसद सदस्य को ‘अंँगूठा छाप’ नहीं कहा जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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