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किलाऊआ ज्वालामुखी: हवाई

  • 23 Dec 2020
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हवाई के बिग आईलैंड के किलाऊआ ज्वालामुखी (Kilauea Volcano) में विस्फोट होने के कारण 4.4 तीव्रता का भूकंप आया।

Kilauea-Volcano

प्रमुख बिंदु:

किलाऊआ ज्वालामुखी:

  • किलाऊआ, जिसे माउंट किलाऊआ (हवाई में "अधिक फैलाने वाला") भी कहा जाता है, संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई द्वीप के दक्षिण-पूर्वी भाग पर हवाई ज्वालामुखी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।
    • किलाऊआ के पश्चिमी और उत्तरी ढलान इसके पास के ज्वालामुखी मौनालोआ के साथ विलय होते हैं।
  • इसे विश्व के सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में स्थान प्राप्त है तथा इसका आकार गुंबद के समान है।
  • ज्वालामुखी का 4,090-फुट (1,250-मीटर) शिखर क्षतिग्रस्त हो गया है जिसके कारण लगभग 3 मील (5 किमी) लंबा, 2 मील (3.2 किमी०) चौड़ा तथा 4 वर्ग मील (10 वर्ग किलोमीटर) से अधिक के क्षेत्र वाले एक काल्डेरा का निर्माण हुआ है।
    • काल्डेरा, क्रेटर (यह ज्वालामुखी शंकु के ऊपर सामान्यतः कीपाकार गर्तनुमा आकृति है) का ही विस्तृत रूप है। यह क्रेटर में धँसाव अथवा विस्फोटक उदगार से निर्मित स्थलरूप माना जाता है। क्रेटर के धँसाव से उसका आकार बड़ा हो जाता है व काल्डेरा का निर्माण होता है। 
  • विस्फोट की घटनाएँ: 
    • काल्डेरा 19वीं शताब्दी के दौरान और 20वीं शताब्दी के शुरुआती भाग में लगभग निरंतर सक्रिय रहने वाला स्थल था।
    • किलाऊआ में वर्ष 1952 से अब तक  लगभग 34 बार विस्फोट हो चुका है।
    • ज्वालामुखी के पूर्वी रिफ्ट ज़ोन के साथ वर्ष 1983 से 2018 तक विस्फोट की गतिविधि लगभग जारी रहीं

भारत में ज्वालामुखी:

  • बैरन द्वीप, अंडमान द्वीप समूह (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)
  • नारकोंडम, अंडमान द्वीप समूह
  • बारातांग, अंडमान द्वीप समूह
  • डेक्कन ट्रैप्स, महाराष्ट्र
  • धिनोधर हिल्स, गुजरात
  • धोसी हिल, हरियाणा

ज्वालामुखी:

Volcano

  • ज्वालामुखी का संबंध पृथ्वी के अन्तर्जात बल से उत्पन्न होने वाले आकस्मिक संचलन से है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के  आंतरिक परतों में पेरीडोटाइट के गलन से मैग्मा की उत्पत्ति होती है।
  • जब यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आता है तो उसे लावा कहा जाता है। इस क्रिया के अंतर्गत लावा के अतिरिक्त गैस, राख व तरल पदार्थ भी पृथ्वी की सतह पर आते हैं।
  • इस प्रकार मैग्मा की उत्पत्ति से लेकर उदगार तक की सम्पूर्ण क्रिया को ज्वालामुखीयता (Volcanism) कहा जाता है।
  • ज्वालामुखी क्रिया में सबसे अधिक जलवाष्प गैस निकलती है। इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर  डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसी कई अन्य गैसें भी निकलती हैं।
  • ज्वालामुखीयता के कारण:
    • पृथ्वी की आंतरिक परतों में रेडियोएक्टिव तत्त्वों के विघटन के फलस्वरूप अत्यधिक तापमान के कारण संवहन धाराओं की उत्पत्ति होती है जो प्लेटों के संचलन हेतु प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
    • संवहन धाराओं के प्रभाव से प्लेटों में अपसारी, अभिसारी व समानांतर प्लेट संचलन संपन्न होता है, किंतु ज्वालामुखीयता से केवल अपसारी व अभिसारी प्लेट संचलन का ही संबंध है। 
    • अपसारी प्लेट सीमांत पर प्लेटों के एक-दूसरे के विपरीत संचलन से भ्रंशन की क्रिया के फलस्वरूप दाब में कमी के कारण शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी की क्रिया संपन्न होती है।
      • फलस्वरूप महासागरीय बेसिन पर ही जहाँ बेसाल्ट लावा से महासागरीय कटक का निर्माण होता है, वहीं महाद्वीपीय क्षेत्र पर बेसाल्टिक पठार का विकास होता है।
    • अभिसारी प्लेट सीमांत पर अत्यधिक घनत्त्व वाली प्लेट का कम घनत्त्व वाली प्लेट के नीचे क्षेपण से तापमान व दाब की अधिकता के कारण मैग्मा की उत्पत्ति होती है और यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आ जाता है। 
      • फलस्वरूप महाद्वीपीय क्षेत्र में ज्वालामुखी पर्वत तथा महासागरीय क्षेत्र में ज्वालामुखी द्वीप का निर्माण होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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